महंगाई ने जला डाला बिल बढ़ा, बोझ बढ़ा: ऊर्जा प्रदेश में बिजली की दरों ने जला दिया आम आदमी का बजट?सरकार के खोखले दावे और जनता की जमीनी सच्चाई

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— एक संपादकीय टिप्पणी

Avtar Singh Bisht

11 अप्रैल 2025 | दोपहर 1:11 बजे | रुद्रपुर

उत्तराखंड को कभी ऊर्जा प्रदेश कहा जाता है, कभी संस्कृत प्रदेश, कभी खेल और कभी टूरिज्म प्रदेश। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि जनता के सर पर लादे जा रहे महंगे बिल और खर्चों के बीच प्रदेश आज “महंगाई प्रदेश” बनता जा रहा है।

धामी सरकार ने एक बार फिर से राज्यवासियों को महंगाई का करंट दे मारा है। उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग की संस्तुति पर राज्य सरकार ने बिजली की दरों में वृद्धि कर दी है। अब 100 यूनिट तक बिजली की दर ₹3.40 से बढ़कर ₹3.65 हो गई है, जबकि 101-200 यूनिट की दर ₹4.90 से ₹5.25, 201-400 यूनिट की दर ₹6.70 से ₹7.15 और 400 यूनिट से ऊपर की दर ₹7.35 से ₹7.80 कर दी गई है। यानी बिजली का हर झटका अब जेब पर पहले से ज्यादा भारी पड़ेगा।

महंगाई दर और बिजली की वृद्धि का ग्राफ

अगर हम बीते वर्षों का आंकलन करें, तो बीजेपी सरकार के कार्यकाल में बिजली दरों में 5 बार से ज्यादा बढ़ोतरी की गई है:

  • 2021: बिजली दरों में 4.5% की वृद्धि
  • 2022: 5.25% की बढ़ोतरी
  • 2023: 9.64% की बढ़ोतरी
  • 2024: चुनाव के बाद 7% की वृद्धि
  • 2025: फिर से दरें बढ़ीं — अब ₹3.65 प्रति यूनिट से शुरू

मतलब साफ है, हर साल महंगाई की दर के साथ-साथ बिजली दरें भी उसी अनुपात में ऊपर जा रही हैं। गरीब और मध्यमवर्गीय जनता के बजट में तो जैसे आग लग चुकी है।

बिजली के झटके का सामाजिक असर

बिजली की दरों में वृद्धि का सीधा असर आम आदमी की जिंदगी पर पड़ता है:

  • गरीब वर्ग जो पहले ही दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहा है, अब बिजली के बिल चुकाने के लिए अपनी जरूरतें काटेगा।
  • मध्यम वर्ग के परिवार, जो बच्चों की पढ़ाई, दवाइयों और रोजमर्रा के खर्चों के बीच झूल रहे हैं, उनके लिए यह एक और बोझ है।
  • छोटे व्यापारी और दुकानदारों की लागत बढ़ेगी, जिससे वस्तुओं की कीमतें और भी ऊपर जाएंगी।

सरकार के खोखले दावे और जनता की जमीनी सच्चाई

उत्तराखंड की भाजपा सरकार एक ओर “ऊर्जा प्रदेश” के नाम पर गर्व करती है, लेकिन हकीकत यह है कि जल विद्युत परियोजनाओं से सजी इस भूमि पर जनता को सस्ती बिजली मुहैया नहीं कराई जा रही। ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भर राज्य होते हुए भी यहां की जनता को बाहर से आयातित बिजली के दाम चुकाने पड़ रहे हैं।

सरकार को सोचना होगा — क्या ‘ऊर्जा प्रदेश’ का तमगा केवल राजनीतिक भाषणों तक सीमित रहेगा? या फिर राज्य की प्राकृतिक संपदा का लाभ यहां के आम नागरिकों को भी मिलेगा?

एक नसीहत सत्ता को

सरकार को यह समझना होगा कि जनता हर पाँच साल में केवल वादे नहीं, परिणाम भी चाहती है। अगर बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं भी हर साल महंगी होती रहीं, तो विकास का दावा केवल पोस्टर और विज्ञापनों तक ही सिमट जाएगा।

संविधान में कहा गया है — ‘We, the People’ — यानी सत्ता का मूल स्रोत जनता है। उस जनता को हर साल महंगाई के नाम पर झटका देना न केवल नाइंसाफी है, बल्कि लोकतांत्रिक जिम्मेदारियों से पलायन भी है।
उत्तराखंड की जनता को यह सवाल पूछना चाहिए —

क्या हम उस ऊर्जा प्रदेश में रहते हैं, जहाँ बिजली हमारे जीवन को रोशन करने के बजाय हमारी आशाओं को जला रही है?

अब वक्त है कि उत्तराखंड सरकार बिजली की दरों पर नहीं, अपनी नीतियों की समीक्षा पर जोर दे। वरना वो दिन दूर नहीं जब आम आदमी हर महीने आने वाले बिजली बिल को देखकर यही कहेगा — ‘महंगाई ने जला डाला।’


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