महंगाई गंभीर समस्या बनती जा रही है और बाजार में उतार-चढ़ाव के तौर पर देखी जाने वाली स्थितियां अब आम रहने लगी हैं। एक दौर था, जब लोग कुछ समय तक महंगाई की चुनौतियों का सामना कर लेते थे।

Spread the love

रुद्रपुर,संपादकीय,अब महंगाई में निरंतरता बनी हुई है, खर्च की चादर फैलती जा रही है। ठंड के मौसम में हरी सब्जियां बाजार में दिखती हैं और अमूमन उनकी कीमत ऐसी रहती है कि लोग खर्च कर सकें, लेकिन इस साल ऐसा नहीं है। गोभी, पालक, भिंडी, टमाटर, प्याज, लहसुन, मटर जैसी सब्जियों के दाम ज्यादा होने से आम लोगों का बजट प्रभावित हो रहा है।

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

सब्जी विक्रेताओं के मुताबिक, बड़े कारोबारियों की जमाखोरी के कारण महंगाई की नौबत आई है। विवाह आयोजनों के लिए खरीद हो रही है और छोटे विक्रेताओं तक आवक कम हो रही है। इस बार हरी सब्जियों की पैदावार भी कम हुई है। हकीकत यह है कि पिछले कुछ वर्षों से रोजी-रोजगार की फिक्र में लोग यह भी भूलते जा रहे हैं कि उनकी थाली में न्यूनतम चीजें क्या-क्या होनी चाहिए।

खाने पीने की चीजों में करनी पड़ रही कटौती

यह नौबत आ गई है कि अर्थव्यवस्था के चमकते आंकड़ों की चकाचौंध के बीच बहुत सारे लोगों को खाने-पीने की चीजों में भी कटौती करनी पड़ रही है। यह सोचने की जरूरत है कि आर्थिक विकास के दावों के दायरे में कौन है। क्यों थाली महंगी हो रही है।

जरूरी सामानों के साथ ही खाद्य पदार्थों की बढ़ी हुई कीमतों ने पहले ही आम लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों को प्रभावित करना शुरू कर दिया था। मुश्किल सिर्फ सब्जियों तक नहीं सिमटी है। इसका असर दूसरे खाद्य पदार्थों पर भी पड़ा है और खरीदारी के वक्त भी लोगों को अब थोड़ा रुक कर सोचना पड़ रहा है।

गरीब आबादी के सामने चुनौती

यह दुखद स्थिति है कि आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर कदम बढ़ाने का दावा करने के क्रम में इस पक्ष की अनदेखी की जा रही है कि लोग जीने के लिए जो भोजन कर रहे हैं, उसके लिए उन्हें कितना सोचना पड़ रहा है। देश की गरीब आबादी के सामने किस तरह की चुनौतियां खड़ी हैं, यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है।

रुपए की कीमत लगातार कम होते जाने की वजह से भी महंगाई पर काबू पाने में मुश्किलें आ रही हैं। महंगाई की हकीकत और सरकारी आंकड़ों में विरोधाभास दिख रहा है। दो दिन पहले सरकार का आंकड़ा सामने आया कि महंगाई दर में गिरावट हुई है और दावा किया गया कि खुदरा बाजार में स्थिति संभलने लगी है, लेकिन हकीकत कुछ और है। दरअसल, खुदरा बाजार का तंत्र जरूरी नहीं कि थोक बाजार से ही नियंत्रित हो या उसके जरिए ही संचालित हो। एक बड़ी वजह यह है कि आयात और निर्यात नीति पर संतुलित तरीके से ध्यान नहीं दिया जाता।

हाल में आयात और निर्यात के जो आंकड़े सामने आए हैं, उनसे यह स्पष्ट है। व्यापार घाटा बढ़ा है। इससे महंगाई बढ़ती ही है। महंगाई पर काबू पाने के लिए वस्तुओं के विपणन, भंडारण और आयात पर तर्कसंगत नजरिए से काम होना चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि केंद्रीय बैंक व सरकार के प्रयासों के बावजूद खुदरा महंगाई पर नियंत्रण के लक्ष्य हासिल नहीं हो सके हैं। तमाम उपायों के बावजूद बिचौलियों पर काबू नहीं पाया जा सका है। नीतिगत स्तर पर इसके लिए ठोस उपाय करने होंगे।


Spread the love