(चेतावनीः इस कहानी में कुछ जानकारियां आपको विचलित कर सकती हैं.)
अपनी बैरक के बाहर शोर सुनकर सभी क़ैदियों में सन्नाटा छा गया था.
एक आदमी की आवाज़ आई, “वहां कोई है?” लेकिन डर के मारे किसी की आवाज़ नहीं निकली.”
वर्षों से उन्होंने देखा कि जब भी दरवाज़ा खुलता है पिटाई, बलात्कार और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. लेकिन इस दिन इसका मतलब था आज़ादी.
अल्लाहू अकबर के नारे पर, कोठरियों में बंद सभी लोग जेल के भारी मगर छोटे दरवाज़े के सामने क़तार में खड़े हो गए.
उन्होंने देखा कि जेल रक्षकों की जगह कॉरिडोर में विद्रोही लड़ाके हैं.
तीस साल के क़ासेम अल क़बालानी याद करते हुए बताते हैं, “हमने कहा- हम यहां हैं. हमें आज़ाद करो.”
वो बताते हैं कि जैसे ही दरवाज़ा खुला वो ‘नंगे पैर दौड़ पड़े.’
बाकी क़ैदियों की तरह वो दौड़ते गए और पीछे मुड़कर नहीं देखा.
31 साल के अदनान अहमद ग़नेम ने कहा, “जब वे आए और चिल्लाते हुए हमें बाहर जाने को कहा, मैं जेल के बाहर दौड़ पड़ा लेकिन इतना डरा हुआ था कि पीछे मुड़कर नहीं देखा क्योंकि मुझे लगा कि कहीं वे फिर से बंद न कर दें.”
हालांकि ये क़ैदी तबतक नहीं जान पाए थे कि सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद देश छोड़कर जा चुके हैं और उनकी सरकार गिर गई है. लेकिन जल्द ही ये ख़बर उन तक पहुंच गई.
अदनान याद करते हैं, “मेरी ज़िंदगी का ये सबसे शानदार दिन था. इस अहसास को बयां नहीं किया जा सकता. यह ऐसा था जैसे मौत से बाल बाल बचे हों.”
क़ासेम और अदनान सैडनाया जेल से रिहा हुए उन चार क़ैदियों में से थे जिनसे बीबीसी ने बात की. यह ऐसी जगह है जहां राजनीतिक क़ैदियों को रखा जाता था और इसे ‘इंसानी बूचड़खाना’ का नाम दिया गया था.
इन सभी क़ैदियों ने जेल रक्षकों के हाथों में बुरे बर्ताव और यातनाओं, साथी क़ैदियों की हत्याएं, जेल कर्मचारियों के भ्रष्टाचार और जबरिया कबूलनामे की लगभग एक जैसी बातें बताईं.
एक पूर्व क़ैदी ने हमें जेल के अंदर का मंज़र दिखाया और ऐसी ही बातें उसने भी बताईं. बल्कि सैडनाया जेल में बंद अपने लोगों की तलाश करने वाले परिवारों ने ऐसा ही कुछ बताया.
एक मिलिटरी अस्पताल के शव गृह में विद्रोही लड़ाकों ने कुछ शव ज़ब्त किए थे. माना जाता है कि ये सैडनाया जेल के क़ैदी थे. डॉक्टरों का कहना है कि शवों पर टॉर्चर के निशान थे.
साल 2017 में मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में असद प्रशासन पर हत्याओं और टॉर्चर के आरोप लगाए थे.
एक निर्जन पहाड़ी पर विशाल क्षेत्र में कंटीले तारों से घिरी सैडनाया जेल 1980 के दशक की शुरुआत में बनाई गई थी.
2011 के आंदोलन के बाद से राजनीतिक क़ैदियों की यह मुख्य जेल बनी हुई थी. तुर्की स्थित एसोसिएशन ऑफ़ डिटेनीज़ एंड द मिसिंग इन सैडनाया प्रिज़न का कहना है कि यह ‘डेथ कैंप’ में तब्दील कर दी गई थी.
जिन क़ैदियों से हमने बात की, उन्होंने कहा कि उन्हें सैडनाया में इसलिए बंद किया गया था क्योंकि उन पर फ़्री सीरियन आर्मी विद्रोहियों से जुड़े होने का शक था या फिर असद के विरोधियों के गढ़ वाले इलाक़े में रहने की वजह से उन्हें क़ैद कर लिया गया.
कुछ पर सरकारी सैनिकों के अपहरण और हत्या करने का आरोप था तो कुछ को ‘आतंकी गतिविधियों’ के लिए सज़ा दी गई थी.
सभी ने कहा कि उनसे दबाव डालकर और यातनाएं देकर कबूलनामे पर हस्ताक्षर करवाए गए.
उन्हें मौत की सज़ा और लंबी क़ैद दी जाती थी. एक आदमी ने कहा कि उसे बिना कोर्ट में पेश किए चार सालों से जेल में बंद करके रखा गया.
सरकार विरोधी क़ैदियों के जेल की लाल इमारत में क़ैद कर रखा गया था.
क़ासेम कहते हैं कि 2016 में वो एक चेक पॉइंट को पार कर रहे थे, तब गिरफ़्तार किया गया और फ़्री सीरियन आर्मी के साथ ‘आतंकवाद’ के आरोप लगाकर कई हिरासत केंद्रों से होते हुए सैडनाया जेल भेज दिया गया.
दमिश्क के दक्षिणी हिस्से में अपने घर पर उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, “उस दरवाज़े के बाद, आप मरे हुए इंसान जैसे हैं. यहीं से यातनाओं की शुरुआत होती है.”
उन्होंने याद करते हुए बताया कि उन्हें बिल्कुल निर्वस्त्र किया गया और तस्वीर के लिए खड़ा किया गया था, जहां कैमरे में देखने के लिए उनकी पिटाई हुई थी.
वो कहते हैं कि इसके बाद उन्हें अन्य कैदियों के साथ जंजीर में बांधा गया और एक छोटी काल कोठरी में डाल दिया गया है जहां पांच अन्य आदमी थे. उन्हें पहनने को जेल के कपड़े दिए गए लेकिन कई दिनों तक पानी और खाने से महरूम रखा गया.
इसके बाद उन्हें जेल की मुख्य बैरक में ले जाया गया, जहां कमरों में कोई बिस्तर नहीं थे और एक बल्ब लगा था और कोने में टॉयलेट था.
इसी सप्ताह जब हमने जेल का दौरा किया, हमने कोठरियों के फ़र्श पर कंबल, कपड़े और बिखरा हुआ खाना देखा.
हमारे साथ 2019-2022 के बीच यहां क़ैद रह चुका एक व्यक्ति भी था, जो हमें गाइड कर रहा था.
इस क़ैदी की दो उंगलियां और अंगूठा कटा हुआ था. उसका दावा था कि जेल में यातना के दौरान ऐसा किया गया था.
वो अपनी कोठरी खोजते हुए एक ऐसी जगह पहुंचा जहां दीवार पर खरोंच के निशान थे. उसने दावा किया कि यह उसी के निशान थे और वो बैठ गया और रोना शुरू कर दिया.
पूर्व क़ैदी ने बताया कि एक कमरे में 20 लोग सोते थे, लेकिन एक दूसरे को वो मुश्किल से ही जान पाते थे, क्योंकि वे दबी ज़ुबान में बात करते थे क्योंकि वे जानते थे कि पहरेदारों की उनपर नज़र बनी हुई है और वे सबकुछ सुन रहे हैं.
क़ासेम ने कहा, “यह सबकुछ पर पाबंदी थी. आपको बस खाने, पीने, सोने और मर जाने की इजाज़त थी.”
सैडनाया जेल में सज़ा बहुत बर्बर और लगातार होती रहती थी.
अदनान को 2019 में एक सैनिक के अपहरण और हत्या के मामले में गिरफ़्तार किया गया था. उन्होंने बताया, “वे कोठरी में घुसते ही मारना शुरू कर देते थे. मैं सन्न खड़ा देखता रहता था और अपनी बारी का इंतज़ार करता था.”
“रात को हम अल्लाह का शुक्र मनाते कि हम ज़िंदा हैं. हर सुबह हम प्रार्थना करते कि ईश्वर हमारी आत्मा निकाल लें ताकि हम शांति से मर सकें.”
अदनान और हाल ही में रिहा हुए दो क़ैदियों ने बताया कि पिटाई करने से पहले उन्हें उकड़ू करके टायर में बांध दिया जाता, ताकि हम हिल तक न सकें.
सज़ा के अलग अलग तरीक़े अख़्तियार किए जाते थे.
क़ासेम कहते हैं कि जेल के दो कर्मचारी उन्हें पानी के ड्रम में तब तक उलटा लटकाकर रखते थे जब तक उन्हें ये नहीं लगता था कि ‘सांस रुक जाएगी और मौत हो जाएगी.’
वो कहते हैं, “मैंने अपनी आंखों से मौतें देखी हैं. रात में जगने या ऊंची आवाज़ में बात करने या फिर दूसरे क़ैदियों से कोई समस्या होने पर वे ऐसा ही करते.”
इसी सप्ताह सैडनाया जेल से रिहा हुए दो नए लोगों ने दावा किया कि वे जेल कर्मचारियों द्वारा यौन उत्पीड़न के कई मामलों के गवाह रहे थे.
एक आदमी ने कहा कि अधिक ख़ाना पाने के लिए जेल रक्षकों को क़ैदी सेक्स की पेशकश तक करते थे.
तीन लोगों ने बताया कि उत्पीड़न के लिए गार्ड उनके शरीर पर कूदते थे.
दमिश्क के अस्पताल में हमसे एक 43 साल के व्यक्ति इमाद जमाल से मिलवाया गया.
सैडनाया के बारे में अपने अनुभव बताते हुए उन्होंने अंग्रेज़ी में कहा, “खाना नहीं मिलता था. सोने नहीं दिया जाता. पीटा जाता था. झगड़े होते थे. लोग बीमार थे. कुछ भी सामान्य नहीं था.”
उन्हें 2021 में गिरफ़्तार किया गया था. उन्होंने दावा किया कि यह एक राजनीतिक गिरफ़्तारी थी.
वो फिर से अरबी में बात करने लगे और कहा कि उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई क्योंकि उन्हें उकड़ू बैठाकर एक गार्ड उनके ऊपर कूद गया था.
इमाद ने अपने दोस्त के लिए कुछ दवा चोरी की थी. उसे इसी की सज़ा दी जा रही थी.
लेकिन इमाद के लिए जेल में सबसे बड़ी मुसीबत ठंड थी. वो कहते हैं, “यहां दीवारें तक ठंडी थीं. मैं ज़िंदा लाश बन गया था.”
तीस साल के रकान मोहम्मद अल सईद ने बताया कि उन्हें 2020 में गिरफ़्तार किया गया था. उनपर अपहरण और हत्या के आरोप लगाए गए थे लेकिन कभी भी अदालती सुनवाई नहीं हुई.
वो कहते हैं, “जब भी हम नहाते, या कोई मिलने आता, या धूप सेंकते या फिर जब भी हम अपनी कोठरी छोड़ते थे, हमें सज़ा दी जाती.”
अपने टूटे हुए दांत दिखाते हुए वो कहते हैं कि एक गार्ड ने डंडे से उनके मुंह पर मार दिया था.
जिन सभी लोगों से हमने बात की उनका मानना था कि उनकी कोठरी के लोगों की हत्या कर दी गई थी.
गार्ड कोठरी में आते थे, नाम पुकारा जाता और उन्हें बाहर ले जाया जाता. उसके बाद वो फिर कभी नहीं दिखते.
अदनान कहते हैं, “हमारे सामने ही लोगों को मार दिया जाता. जब भी वो 12 बजे रात को पुकारते, हमें पता चल जाता कि लोगों को मारा जाने वाला है.”
बाकियों ने भी ऐसी कहानियां सुनाईं और बताया कि उन लोगों के साथ क्या हुआ ये जानने का कोई तरीक़ा नहीं था.
क़ासेम के पिता और अन्य रिश्तेदारों ने बताया कि उनकी हत्या रोकने के लिए जेल के अधिकारियों को 10,000 डॉलर देने पड़े थे. पहले उनकी सज़ा आजीवन कारावास में बदली गई फिर 20 साल की सज़ा में.
क़ासेम का कहना है कि इस घटना के बाद से जेल के रक्षकों का उनके प्रति रवैया थोड़ा सुधर गया.
परिवारों का कहना है कि वो जेल में अपने लोगों के लिए कुछ पैसे भेजते थे ताकि वो ठीक से खा सकें लेकिन भ्रष्ट अधिकारी उसे अपने पास रख लेते थे और क़ैदियों को सिर्फ़ सीमित राशन ही देते थे.
कुछ कोठरियों में तो कैदी सारा खाना एकसाथ जमा करते थे लेकिन उनके लिए तब भी पर्याप्त नहीं होता था.
अदनान का कहना है कि मार-पिटाई से ज़्यादा ख़तरनाक भूखे रहना है. वो कहते हैं, “मैं रात-रात भर भूखे रहता था. एक महीने हमें ऐसी सजा मिली जिसमें एक दिन में हमें एक ब्रेड दिया जाता था, फिर दूसरे दिन आधा टुकड़ा दिया जाता था और फिर उससे भी छोटा टुकड़ा और फिर कुछ नहीं.”
क़ासिम ने बताया कि जेल के गार्ड उन्हें अपमानित भी करते थे.
इन सभी का कहना है कि कुपोषण की वजह से जेल में इनका वजन भी काफी कम हो गया था.
क़ासिम ने कहा, “मेरा सबसे बड़ा सपना था कि मुझे खाना मिले, मैं भूखा महसूस न करूं.”
उनके पिता कहते हैं कि उनके परिवार को अधिकारियों को रिश्वत देनी पड़ी ताकि वो अपने बेटे से मिल सकें. क़ासिम को कभी-कभी गार्ड व्हीलचेयर पर लेकर आते थे क्योंकि वो इतने कमजोर हो चले थे कि ठीक से खड़ा भी नहीं रह सकते थे.
रविवार को मुक्त होने वाले दो लोगों ने हमें ये भी बताया कि उस जेल में उन्हें टीबी हो गया. उनमें से एक ने कहा कि उनका इलाज भी बार-बार रोक दिया जाता था और ये भी सजा देने का एक तरीका था.
अदनान कहते हैं कि शारीरिक प्रताड़ना का खौफ़ लगातार बना रहता था. इस सप्ताह दमिश्क के एक अस्पताल के अधिकारी ने बताया कि जिन कै़दियों को यहां जांच के लिए भेजा गया था उनमें ‘मुख्यत: मानसिक समस्याएं’ देखी गई हैं.
इन सारे लोगों के बयान से एक बात तो जाहिर है कि वो ऐसी जगह रह रहे थे जहां कोई उम्मीद नहीं थी सिर्फ़ दर्द ही दर्द था. कैदी अपना ज़्यादातर समय चुपचाप गुजारते थे, वो बाहरी दुनिया से बिल्कुल कटे हुए थे. इसलिए जब वो बताते हैं कि उन्हें विद्रोही इस्लामिक समूह हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के तेजी से आगे बढ़ने के बारे में कुछ नहीं पता था तो हैरत नहीं होती. उन्हें जेल से बाहर निकलने के बाद ही सारी चीजें पता चलीं.
क़ासिम ने कहा कि उन्हें हेलीकॉप्टर की आवाज़ सुनाई दे रही थी और फिर गलियारे में लोगों की आवाजें आने लगी लेकिन बिना खिड़की वाली कोठरी में वो किसी चीज के लिए आश्वस्त नहीं हो सकते थे. फिर दरवाजा खुला और रिहा किए गए कैदी जितनी तेजी से दौड़कर बाहर निकल सकते थे, वो बाहर निकलने लगे.
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प्रिंट मीडिया,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर