जिसे स्पष्ट करना बेहद आवश्यक था।
हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट
पर्व निर्णय सभा के सचिव डॉ. नवीन चंद्र जोशी ने बताया कि उदयापिनि तिथि में ही पर्व और व्रत किए जाते हैं। उदयकाल में शुरू पूजा रात तक की जा सकती है। स्थानीय पंचागों में एक नवंबर को ही दीपावली पर्व मनाए जाने का निर्णय दिया गया है। उपाध्यक्ष पंडित गोपाल दत्त भट्ट ने बताया कि पूरब की ओर तांत्रित पूजा का विधान है इसीलिए वहां 31 अक्तूबर को दीपावली मनाने पर जोर दिया जा रहा है जबकि दीपावली अगले दिन ही होगी। संरक्षक डॉ. भुवन चंद्र त्रिपाठी ने बताया कि एक नवंबर को प्रदोष काल है और उसी दिन लक्ष्मी पूजन किया जाएगा। प्रांतीय उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल के प्रदेश अध्यक्ष नवीन वर्मा ने बताया कि त्योहार को लेकर भ्रम की स्थिति है और व्यापारी भी असमंजस में थे। इसीलिए संगठन ने त्योहार की एकरूपता को देखते हुए त्योतिषाचार्यों को एक मंच पर आमंत्रित किया। संचालन जिलाध्यक्ष विपिन गुप्ता ने किया। जिला महामंत्री हर्षवर्धन पांडे ने सभी का आभार जताया। इस दौरान रामदत्त जोशी पंचाग निर्माता दीपक जोशी, डॉ.नवीन बेलवाल, डॉ. राजेश जोशी, मनोज उपाध्याय, उत्तराखंड ज्योतिष रत्न डॉ. चंडी प्रसाद घिल्डियाल, उमेश त्रिपाठी आदि ज्योतिषाचार्य मौजूद रहे।
तांत्रिक पूजा करने वाले ही 31 अक्तूबर को दीपावली मना रहे
शास्त्रीय विधि और पंचांगों के आधार पर उत्तराखंड के सभी पंचागों में पहले ही स्पष्ट है कि दीपावली एक नवंबर को ही मनाई जाएगी। इसमें कोई संदेह होना ही नहीं चाहिए। यहां सूर्योदय और सूर्यास्त को देखते हुए शास्त्रीय विधि से एक नवंबर को प्रदोष काल में महालक्ष्मी पर्व मनाया जाएगा। महालक्ष्मी का व्रत भी उसी दिन होगा। इस बार दो दीपावली का जो विषय चल रहा है यह पृथ्वी के संक्रमण और परिक्रमा के आधार पर ऐसा हो रहा है। पहले ऐसी परिक्रमा नहीं होती थी इस बार इत्तफाक है। जो महाकाली का पूजन करते हैं यानि सिंह लग्न में जो तांत्रिक पूजा करते हैं वह लोग 31 अक्तूबर को दीपावली मना रहे हैं।
-डॉ. जगदीश चंद्र भट्ट, अध्यक्ष पर्व निर्णय सभा।
उत्तराखंड में चार पंचाग चलते हैं, सभी में एक को है दीपावली
जानकारी का अभाव होने के कारण भ्रम की स्थिति बनी है। उत्तराखंड में चार पंचाग चलते हैं सभी में एक नवंबर को दीपावली पर्व है। बांकि राज्यों में सूर्योदय और सूर्यास्त का समय अलग है वहां पर तिथि को लेकर विवाद हो रहा है तो वह अलग है। लेकिन उत्तराखंड में यह नहीं होना चाहिए। उत्तराखंड में दो घटी से अधिक प्रदोष काल उत्पन्न हो रहा है। यहां पर एक नवंबर को सूर्यास्त का समय 5.33 मिनट है और 6.17 मिनट तक प्रदोष काल है। इसलिए एक नवंबर को पूरी रात महालक्ष्मी पूजन किया जा सकता है।
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