समिति में कुल 31 सदस्य होंगे जिनमें से 21 लोकसभा से और 10 राज्यसभा से होंगे। भाजपा से पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और पी पी चौधरी तथा कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाड्रा उन 21 लोकसभा सदस्यों में शामिल हैं, जो संसद की उस संयुक्त समिति का हिस्सा होंगे, जो एक साथ चुनाव कराने संबंधी दो विधेयकों की पड़ताल करेगी। लोकसभा की बृहस्पतिवार की कार्यसूची में समिति का हिस्सा बनने वाले 21 सांसदों के नाम शामिल हैं, जिसके गठन का प्रस्ताव कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल पेश करेंगे।
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प्रिंट मीडिया,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर
पूर्व केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तमभाई रूपाला, भर्तृहरि महताब, अनिल बलूनी, सी एम रमेश, बांसुरी स्वराज, विष्णु दयाल राम और संबित पात्रा भाजपा के लोकसभा सदस्यों में शामिल हैं, जो इस समिति का हिस्सा होंगे। सूत्रों ने बताया कि कानून राज्य मंत्री रह चुके चौधरी को समिति का संभावित अध्यक्ष माना जा रहा है। उन्होंने बताया कि ठाकुर भी इस पद के लिए दावेदार हैं। नियमों के अनुसार अध्यक्ष ओम बिरला अंतिम निर्णय लेंगे।
कांग्रेस के मनीष तिवारी और सुखदेव भगत, शिवसेना के श्रीकांत शिंदे, समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव, तृकां के कल्याण बनर्जी, द्रमुक के टी एम सेल्वागणपति, तेदेपा के जी एम हरीश बालयोगी, राकांपा (शरद चंद्र पवार) की सुप्रिया सुले, राष्ट्रीय लोकदल के चंदन चौहान तथा जन सेना पार्टी के बालाशोवरी वल्लभनेनी अन्य लोकसभा सदस्य हैं। राज्यसभा एक अलग संदेश में समिति के लिए अपने 10 सदस्यों के नाम घोषित करेगी। समिति में शामिल किए जाने वाले लोकसभा सदस्यों में से 14 भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के हैं, जिनमें से 10 भाजपा के हैं।
जेपीसी की सिफारिशें मिलने के बाद अब नरेंद्र मोदी सरकार की अगली चुनौती इसे संसद से पास कराने की होगी। चूंकि वन नेशन वन इलेक्शन से जुड़ा बिल संविधान संशोधन विधेयक है इसलिए लोकसभा और राज्यसभा में इस बिल को पास कराने के लिए विशेष बहमत की आवश्यकता होगी। अनुच्छेद 368 (2) के तहत संविधान संशोधनों के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है। इसका अर्थ है कि प्रत्येक सदन में यानी कि लोकसभा और राज्यसभा में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत द्वारा इस विधेयक को मंजूरी देनी होगी।
वहीं केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने मंगलवार को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पहल के तहत लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के उद्देश्य से दो विधेयक पेश किए, जिसका विपक्ष ने कड़ा विरोध किया । हालांकि, ये विधेयक निचले सदन में आवश्यक दो-तिहाई बहुमत हासिल करने में विफल रहे, जिसके पक्ष में 269 और विपक्ष में 198 वोट पड़े। विपक्षी दलों ने विधेयकों की आलोचना संघवाद पर हमला बताते हुए की। जबकि सरकार ने दावा किया कि विधेयक संविधान के अनुरूप है।
कानून मंत्री ने कहा कि संविधान के अनुरूप वन नेशन-वन इलेक्शन विधेयक मूल संरचना सिद्धांत पर हमला नहीं करते हैं। एक देश-एक चुनाव विधेयक पर आपत्तियां राजनीतिक प्रकृति की हैं। विपक्ष ने विधेयकों को तत्काल वापस लेने की मांग की और उन्हें संविधान पर हमला और लोकतंत्र को मारने और अधिनायकवाद और तानाशाही लाने का प्रयास करार दिया।
इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने खुलासा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विधेयक को गहन जांच के लिए जेपीसी को भेजने का सुझाव दिया था। शाह ने कहा कि जब एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक को मंजूरी के लिए कैबिनेट में लाया गया था, तो पीएम मोदी ने कहा था कि इसे विस्तृत चर्चा के लिए जेपीसी को भेजा जाना चाहिए। अगर कानून मंत्री विधेयक को जेपीसी को भेजने के लिए तैयार हैं, तो इसके पेश होने पर चर्चा समाप्त हो सकती है।
JPC क्या करेगी?
सरकार ने इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा है। जेपीसी का काम है इस पर व्यापक विचार-विमर्श करना, विभिन्न पक्षकारों और विशेषज्ञों से चर्चा करना और अपनी सिफारिशें सरकार को देना।
एक देश-एक चुनाव बिल पर क्यों हो रही चर्चा?
यह बिल भारत के संघीय ढांचे, संविधान के मूल ढांचे, और लोकतंत्र के सिद्धांतों को लेकर बड़े पैमाने पर कानूनी और संवैधानिक बहस छेड़ चुका है।विपक्ष का कहना है कि राज्य विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा के साथ कराने से राज्यों की स्वायत्तता पर असर पड़ेगा और सत्ता के केंद्रीकरण की स्थिति बनेगी। कानूनी विशेषज्ञ यह भी देख रहे हैं कि क्या यह प्रस्ताव संविधान की बुनियादी विशेषताओं, जैसे संघीय ढांचा और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को प्रभावित करता है।