राजनीति में टर्निंग प्वाइंट का विशेष महत्व होता है, ऐसा ही एक मोड़ लेकर आया है केदारनाथ का उपचुनाव। बदरीनाथ में राह भटकने वाली भाजपा केदार के द्वार तक पहुंच गई। कई महीनों तक बदरीनाथ हार के कांटे चुभने के बाद केदारनाथ की जीत ने भाजपा को मस्तक पर चंदन सी ठंडक और खुशबू दी है।

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केदारनाथ की जीत ने न सिर्फ राज्य में भाजपा को आगे की नई राह दिखा दी है, बल्कि पूरे देश में पार्टी की सोच, विचारधारा को अधिक मजबूती और सुखद संदेश दिया है।

हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट

कांग्रेस जिस राह को पकड़कर उपचुनाव जीत यात्रा के लिए जोरशोर से निकली थी फिर से चौहारे पर आकर खड़ी हो गई है। राज्य के कांग्रेस नेता एक बार फिर ये साबित करने में विफल रहे कि आखिर केदारनाथ के मतदाता उनकी पार्टी का विधायक क्यों चुनें। जबकि इसी केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र में नौ हजार से अधिक मतदाता ऐसे निकल कर आए हैं जिन्होंने निर्दलीय त्रिभुवन सिंह को वोट दिया, शायद उन्हें भी उनके विधायक बनने पर पूरा भरोसा नहीं होगा।
पहाड़ के इस चुनाव ने पुख्ता कर दिया है कि इस विधानसभा क्षेत्र में ऐसे मतदाता भी हैं जिन्हें भाजपा-कांग्रेस दोनों पसंद नहीं हैं। चुनावी नतीजों में कुलदीप के बाद अब त्रिभुवन का नाम दोनों दलों का लंबे समय तक पीछा करेगा।
देश में उत्तराखंड शायद इकलौता राज्य है जहां 25 सालों में राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव की चर्चा और गुंजाइश लगभग हमेशा बनी रही है। लिहाजा इस चुनाव के नतीजों को लेकर भी राजनीतिक लोग अपने-अपने तरह से आस लगाए रहे। उपचुनाव में पूरी कांग्रेस बंटी भी नहीं और डटी भी रही लेकिन नतीजे उसके खिलाफ आए हैं।
स्थानीय स्तर पर कोई आंतरिक गुटबाजी मतदाताओं को भी प्रभावित नहीं कर सकी। अब कांग्रेस नेतृत्व के सामने ठीकरा एक दूसरे पर भी नहीं फोड़ सकेंगे। इन नतीजों के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ऐसे मोड़ पर आकर खड़े हो गए हैं जहां उन्हें कोई रास्ता बताने वाला भी नहीं है। इन नतीजों से भाजपा को उसके मैदान पर कमजोर कर पाना अब और मुश्किलों भरा होगा।
केदारनाथ उपचुनाव को पूरी भाजपा ने लोकसभा चुनावों की तरह ही लड़ा। सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल दिखा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चुनाव की तारीखें घोषित होने से पहले और मतदान तक लगातार केदारनाथ की यात्रा की।
विधानसभा क्षेत्र में विकास के कामकाज को लेकर जो मतदाता सवाल उठा रहे थे मुख्यमंत्री और बारी-बारी प्रचार पर उतरे उनके मंत्री उन्हें संतुष्ट में कामयाब रहे। स्वाभाविक है इस जीत के बाद मुख्यमंत्री धामी की राजनीतिक परिपक्वता पर चर्चा होगी और उनकी पार्टी के नेतृत्व के सामने उनका कद और बढ़ेगा।
अगर नतीजे उलट आते तो शायद उनके राजनीतिक कॅरियर के लिए भी केदारनाथ मोड़ लेकर आता। कुछ राजनेता फिर आस से भर जाते। केदारनाथ के मतदाताओं ने चुनावी नतीजों के माध्यम से राज्य के राजनीतिक कयासबाजों को शांत किया है। साथ ही राज्य को राजनीतिक स्थिरता के साथ अगले मोड़ तक पहुंचने का समय और संदेश दिया है।


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