
रुद्रपुर, 29 अक्टूबर।आज रुद्रपुर में आगामी राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन 2025 को लेकर एक महत्वपूर्ण तैयारी बैठक आयोजित की गई। यह सम्मेलन 07 से 09 नवंबर तक जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट), रुद्रपुर में आयोजित होने जा रहा है — जो न केवल उत्तराखंड बल्कि समूचे देश के कुमाउनी समाज के लिए एक ऐतिहासिक अवसर साबित होगा।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
बैठक में. प्रोफेसर वीरेंद्र सिंह बिष्ट (पूर्व कुलपति, जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर) पूर्व स्वास्थ्य निदेशक एल.एम. उप्रेती, होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एवं नर्सिंग मेडिकल कॉलेज के निदेशक डॉ. किशोर चंदोला, पार्वतीय समाज समिति के अध्यक्ष बी. भट्ट, सरदार भगत सिंह डिग्री कॉलेज रुद्रपुर के 2025 के अध्यक्ष रजत सिंह बिष्ट भाजपा नेता योगेश वर्मा सहित कई सामाजिक व सांस्कृतिक हस्तियां उपस्थित थीं। सभी ने एक स्वर में कहा कि कुमाउनी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की दिशा में यह सम्मेलन एक निर्णायक पहल होगी।
कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति तथा ‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका द्वारा आयोजित इस सम्मेलन का उद्देश्य स्पष्ट है — मातृभाषा की पहचान को पुनः स्थापित करना, इसे शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम में स्थान दिलाना और आने वाली पीढ़ियों में भाषा के प्रति सम्मान और जुड़ाव की भावना पैदा करना।
बैठक में यह भी तय हुआ कि सम्मेलन में देशभर से कुमाउनी रचनाकार, कलाकार, संस्कृतिकर्मी, रंगकर्मी और भाषा प्रेमी भाग लेंगे। तीन दिवसीय इस आयोजन में कुमाउनी भाषा की प्राचीनता, साहित्य, लोकसंगीत, लोककला, रंगमंच, सिनेमा और सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार-प्रसार जैसे विषयों पर गहन विमर्श होगा।
सम्मेलन के दौरान विभिन्न विधाओं में उत्कृष्ट योगदान देने वाले करीब 50 रचनाकारों और समाजसेवियों को सम्मानित किया जाएगा। इनमें बहादुर सिंह बनौला कुमाउनी साहित्य सेवी सम्मान, ज्योतिषाचार्य पं. जयदेव अवस्थी भाषा सेवी सम्मान, वैद्य कल्याण सिंह बिष्ट संस्कृति सेवी सम्मान, शेरसिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ स्मृति कविता पुरस्कार, पुष्पलता जोशी कुमाउनी साहित्य पुरस्कार, मुन्नी जोशी सम्मान आदि प्रमुख हैं।
सम्मेलन में 7 नवंबर को उद्घाटन सत्र, 8 नवंबर को मानकीकरण कार्यशाला एवं कवि सम्मेलन, और 9 नवंबर को समापन समारोह तथा भविष्य की कार्ययोजना तय की जाएगी।
प्रो. वीरेंद्र सिंह बिष्ट (पूर्व कुलपति, जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर) ने राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन की सराहना करते हुए कहा कि — “कुमाउनी भाषा हमारी सांस्कृतिक आत्मा है। इसे शिक्षा, प्रशासन और जनसंवाद के माध्यम में लाने का प्रयास स्वागत योग्य है। मातृभाषा में शिक्षा देने से न केवल बौद्धिक विकास होता है बल्कि समाज अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है। कुमाउनी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग जनभावनाओं का सम्मान है और इससे उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान और सशक्त होगी।”
इस आयोजन की तैयारी बैठक में वक्ताओं ने कहा कि “भाषा किसी भी समाज की आत्मा होती है। जब तक अपनी मातृभाषा जीवित है, तब तक संस्कृति भी सुरक्षित है।” डॉ. किशोर चंदोला ने कहा कि कुमाउनी केवल बोली नहीं, बल्कि संस्कृति, सभ्यता और पहचान का प्रतीक है। वहीं एल.एम. उप्रेती ने सुझाव दिया कि भाषा आंदोलन को शैक्षणिक स्तर पर सशक्त करने के लिए सरकारी व गैरसरकारी संस्थाओं को मिलकर आगे आना चाहिए।
बीडी भट्ट ने कहा कि यह सम्मेलन राजनीतिक या क्षेत्रीय सीमाओं से परे, एक संस्कृतिक आंदोलन है, जो उत्तराखंड के अस्तित्व की जड़ों को सींचने का कार्य करेगा।
रुद्रपुर की इस बैठक ने स्पष्ट कर दिया कि कुमाउनी भाषा को लेकर समाज में एक नई चेतना जन्म ले चुकी है। आने वाला राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन 2025 इस चेतना को दिशा देगा — और संभव है कि आने वाले वर्षों में कुमाउनी भाषा को वह संवैधानिक सम्मान मिले, जिसकी वह दशकों से प्रतीक्षा कर रही है।
यह सम्मेलन केवल आयोजन नहीं, बल्कि अपनी मिट्टी और अपनी मातृभाषा के प्रति एक सामूहिक प्रण है — “हम बोलब, सिखाब और सहेजब कुमाउनी।”
✍️ अवतार सिंह बिष्ट
रुद्रपुर, उत्तराखंड
हिन्दुस्तान ग्लोबल टाइम्स / उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी 




 
		
 
		 
		