सन 200 ईसवी के आसपास बना मां अटरिया धाम आज भी लोगों की अगाध श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। देश भर से श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए मंदिर पहुंचते हैं। सावन का प्रथम सोमवार के दिनों में मां के दर्शन के लिए मंदिर में भीड़ हो रही है। अटरिया मंदिर में भक्तों का तांता लगा है ।प्रातः से ही लोगों की लंबी लाइन अटरिया मंदिर में जलाभिषेक के लिए लगी हुई है। अटरिया प्राचीन मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। प्रत्येक वर्ष पूरे सावन माह में दूर दराज के श्रद्धालुओं के साथ-साथ, स्थानीय लोगों का भी मंदिर में जलाभिषेक के लिए लंबी लाइन लगी रहती है ।मान्यता है अटरिया मंदिर में जलाभिषेक करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

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सावन का महत्व

हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट, रुद्रपुर ,उत्तराखंड

इस बार सावन की शुरूआत सोमवार के साथ हो रही है, ऐसे में इसका महत्व और बढ़ जाता है. इतना ही नहीं इस बार श्रावण मास में पूरे 5 सोमवार पड़ रहे हैं.

अटरिया मंदिर में पूजा अर्चना ,

प्रमुख समाजसेवी श्रीमती कमलेश बिष्ट

इस वजह से भी इस साल सावन माह बहुत खास हो जाता है. कहते हैं पूरे साल में सावन एक ऐसा महीना है, जो भगवान भोलेनाथ (Lord Shiva) को बहुत प्रिय है इसलिए बाबा के भक्त श्रावण मास में पूरे भक्ति भाव से पूजा अर्चना करते हैं और सोमवार का उपवास करते हैं. मान्यता है कि श्रावण मास में व्रत करने से शिव जी प्रसन्न होते हैं. साथ ही अपने भक्तों की मनोकामनाएं भी पूर्ण करते हैं.

ये है मंदिर का इतिहास:200 ईसवी के आसपास बना मां अटरिया धाम आज भी लोगों की अगाध श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है. उत्तराखंड ही नहीं बल्की देश भर से श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए मंदिर पहुंचते हैं.

जलाभिषेक भी करते हैं।सावन के महीने के दिनों में मां के दर्शन के लिए मंदिर में भीड़ हो रही है जलाभिषेक करने वालों की लंबी लाइन लगी है. कहा जाता है कि निर्माण के बाद किसी आक्रमणकारी ने मंदिर को तोड़ दिया था और मूर्तियों को पास के कुएं में डाल दिया था. मंदिर के पुजारी पंकज गौड़ ने बताया कि साल 1588 में अकबर का शासन काल था, जिसके बाद तराई का क्षेत्र राजा रूद्र चंद के कब्जे में आया.

ऐसा माना जाता है की एक बार राजा रूद्र इस क्षेत्र के जंगल में घूम रहे थे. इस दौरान उनका रथ का पहिया मंदिर वाले स्थान पर फंस गया. काफी कोशिश के बाद भी रथ का पहिया नहीं निकला, तो वह पास के ही बरगद के पेड़ के नीचे आराम करने लगे. तभी उन्हें स्वपन में माता ने बताया कि जिस स्थान पर रथ का पहिया फंसा हुआ है. उसके नीचे कुआं हैं, जहां पर मेरी प्रतिमा को दबा दिया गया है. जैसे ही राजा जागे और उन्होंने सिपाहियों को खुदवाने में लगाया तो कुएं से माता अटरिया की मूर्ति निकली, जिसके बाद राजा रूद्र ने उस स्थान पर मंदिर बनाया. तब से लेकर अब तक यहा पर मेले का आयोजन होता रहता है.


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