सांस्कृतिक चेतना से सामाजिक नेतृत्व तक: भगवान परशुराम जयंती पर मीना शर्मा का ब्राह्मण समाज को राजनीतिक-सांस्कृतिक संदेश

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रुद्रपुर, उत्तराखंड,भगवान परशुराम जयंती और अक्षय तृतीया का पावन अवसर रुद्रपुर में इस वर्ष केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक नहीं रहा, बल्कि यह एक व्यापक सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक संदेशवाहक अवसर के रूप में उभरा। उत्तराखंड महिला कांग्रेस की वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं पूर्व नगर पालिका परिषद अध्यक्ष श्रीमती मीना शर्मा ने इस अवसर पर न केवल भगवान परशुराम की नव-प्रतिष्ठित मूर्ति का अनावरण किया, बल्कि समाज में ब्राह्मणों की भूमिका, सांस्कृतिक चेतना और राजनैतिक सहभागिता पर एक नई बहस को जन्म दिया।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

भगवान परशुराम: प्रतीक न्याय और विवेक के

कार्यक्रम की शुरुआत भव्य कलश यात्रा से हुई, जिसमें रुद्रपुर शहर की सड़कों पर परंपरागत वेशभूषा में महिलाओं ने पीतवर्णी वस्त्र पहनकर सिर पर कलश लिए बैंड-बाजों के साथ यात्रा निकाली। यह दृश्य जहां धार्मिक आस्था का द्योतक था, वहीं यह महिला सशक्तिकरण का जीवंत प्रदर्शन भी था।

मुख्य कार्यक्रम स्थल पर श्री श्री 1008 नारायण चैतन्य जी महाराज के सान्निध्य में हवन-यज्ञ का आयोजन हुआ। इसी दौरान भगवान परशुराम की नवनिर्मित प्रतिमा का अनावरण पूर्व पालिका अध्यक्ष मीना शर्मा, महापौर श्री विकास शर्मा और ब्राह्मण महासभा के वरिष्ठ पदाधिकारियों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।

अपने संबोधन में मीना शर्मा ने कहा भगवान परशुराम किसी एक जाति के प्रतीक नहीं, बल्कि न्याय, ज्ञान और विवेक के सार्वभौमिक आदर्श हैं। वे हमें यह सिखाते हैं कि जब भी सत्ता अन्याय का उपकरण बन जाए, तब ब्राह्मण भी शस्त्र उठाने से नहीं हिचकता। ये संदेश आज की राजनीति में भी प्रासंगिक है।”

राजनैतिक व्याख्यान: सांकेतिक आलोचना और वैचारिक हस्तक्षेप

मीना शर्मा का भाषण न केवल धार्मिक भावनाओं को सम्मानित करता दिखा, बल्कि उसमें एक गूढ़ राजनीतिक संदेश भी था। उन्होंने स्पष्ट कहा कि —

आज ब्राह्मण समाज को केवल कर्मकांड तक सीमित कर दिया गया है। उसकी राजनीतिक भूमिका सीमित की जा रही है। हमारे समाज के युवाओं को नेतृत्व में भागीदारी देनी होगी। भगवान परशुराम का जन्म केवल वंदना का नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और संगठन का अवसर है।”

इस कथन को कई स्थानीय राजनीतिक प्रेक्षकों ने भारतीय जनता पार्टी की जातीय राजनीति पर अप्रत्यक्ष टिप्पणी माना। मीना शर्मा ने आगे यह भी जोड़ा कि —ब्राह्मण समाज को अब केवल राजनीतिक मोहरे के रूप में नहीं, बल्कि नीति निर्धारक के रूप में सामने आना चाहिए। रुद्रपुर की धरती सामाजिक एकता का प्रतीक है और यहां से एक नई सांस्कृतिक राजनीति की नींव डाली जा सकती है।”ब्राह्मण महासभा की सक्रिय भूमिका
इस कार्यक्रम का आयोजन ब्राह्मण महासभा, रुद्रपुर इकाई द्वारा किया गया था। अध्यक्ष मुकेश बशिष्ठ ने बताया कि यह कार्यक्रम केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता और एकता का प्रतीक है। महासभा के अन्य सदस्य — संजीव शर्मा, रामकिशन शर्मा, नितिन शर्मा, सुरेश शर्मा, श्वेता शर्मा, ममता त्रिपाठी, राजबहादुर शर्मा, सुनील शर्मा, दीपा जोशी समेत बड़ी संख्या में शामिल रहे।

उनका मानना था कि ब्राह्मण समाज को अपने ऐतिहासिक दायित्वों की पुनर्स्थापना करनी चाहिए, और राजनीति, शिक्षा, प्रशासन, और धर्म सभी क्षेत्रों में सामूहिक भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए।

नारी नेतृत्व की नई परिभाषा
भगवान परशुराम जयंती के आयोजन में मीना शर्मा की उपस्थिति एक गहरे सामाजिक संदेश को जन्म देती है। पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष और कांग्रेस की 66 विधानसभा रुद्रपुर से प्रत्याशी रही मीना शर्मा ने अपने राजनीतिक जीवन में सादगी और प्रतिबद्धता के साथ-साथ सामाजिक जड़ों को भी मज़बूती से पकड़े रखा है।

उनकी उपस्थिति न केवल एक ब्राह्मण महिला नेत्री के रूप में उल्लेखनीय रही, बल्कि इस आयोजन को एक ऐसी शक्ति प्रदान की जिसने महिलाओं को धार्मिक आयोजनों की सीमाओं से बाहर निकालकर उन्हें सामाजिक एवं राजनीतिक विमर्श में जोड़ने का कार्य किया।

सांस्कृतिक राजनीति की ओर संकेत

मीना शर्मा की बातें केवल तात्कालिक नहीं रहीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि —हमारा समाज जितना अपनी संस्कृति से जुड़ा रहेगा, उतना ही वह हर प्रकार के छल और भटकाव से सुरक्षित रहेगा। ब्राह्मण समाज के युवाओं को अब ‘संस्कृति’ और ‘नेतृत्व’ दोनों को साधने की आवश्यकता है।”

इस वक्तव्य को एक नए सामाजिक विमर्श की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है, जहाँ धर्म और राजनीति का मिलन केवल सत्ता के लिए नहीं, बल्कि मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए हो रहा है।

भगवान परशुराम जयंती का यह आयोजन रुद्रपुर में धार्मिक आस्था का उत्सव भर नहीं था। यह ब्राह्मण समाज की भूमिका, उसकी प्रासंगिकता और सामाजिक नेतृत्व की आवश्यकता पर एक राजनीतिक-सांस्कृतिक संवाद का मंच था।मीना शर्मा की सक्रिय भागीदारी, उनके वक्तव्यों की गंभीरता, और महिला नेतृत्व की मजबूत उपस्थिति ने यह सिद्ध कर दिया कि ब्राह्मण समाज केवल मंदिरों तक सीमित नहीं है — वह नीति, नेतृत्व और न्याय का वाहक बन सकता है।ऐसे आयोजनों से एक बात स्पष्ट होती है — आने वाले समय में उत्तराखंड की राजनीति में जातीय चेतना, सांस्कृतिक विरासत और महिला नेतृत्व तीनों मिलकर एक नई दिशा देने के लिए तैयार हैं।



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