नगला आज केवल एक बस्ती या इलाका भर नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड की अस्मिता, संघर्ष और परंपरा का प्रतीक

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पंतनगर, 30 सितम्बर 2025  जनपद ऊधम सिंह नगर के नगर पालिका नगला क्षेत्र में अतिक्रमण से प्रभावित भूमि के स्वत्व निर्धारण एवं चिन्हीकरण के लिए शासन स्तर पर एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया है। इस समिति का उद्देश्य क्षेत्र में अतिक्रमण की स्थिति का गहन अध्ययन कर निष्पक्ष व पारदर्शी ढंग से भूमि के वास्तविक स्वामित्व का निर्धारण करना है, ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार के विवाद या अव्यवस्था की स्थिति न उत्पन्न हो।

समिति में कुमाऊँ मण्डल के आयुक्त नैनीताल को अध्यक्ष नामित किया गया है। इसके साथ ही जिलाधिकारी ऊधम सिंह नगर, प्रभागीय वनाधिकारी ऊधम सिंह नगर तथा अधीक्षण अभियंता चतुर्थ वृत्त, लोक निर्माण विभाग को सदस्य के रूप में शामिल किया गया है।

इसी क्रम में आज मण्डलायुक्त श्री दीपक रावत के नेतृत्व में समिति की टीम ने नगला क्षेत्र का स्थलीय निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान अतिक्रमण प्रभावित क्षेत्रों का गहन परीक्षण किया गया तथा स्थानीय स्तर पर उपलब्ध तथ्यों और अभिलेखों का संज्ञान लिया गया। इस अवसर पर मण्डलायुक्त ने कहा कि शासन की मंशा है कि नगर पालिका नगला क्षेत्र में भूमि से संबंधित सभी विवादों को त्वरित और पारदर्शी तरीके से निस्तारित किया जाए।

मण्डलायुक्त ने कहा कि शासन स्तर से एक समिति बनी है जो वर्तमान में नगर पालिका नगला की में भूमि की स्थिति को स्पष्ट करने के लिए बनी है। जैसे कि किसका स्वामित्व कहा पर है। उन्होंने बताया कि संज्ञान में आया है कि बात करे हितधारकों की तो यह प्रकाश में आया है कि कुछ भूमि वन विभाग की, लो0नि0वि0 की सड़क, और यह भी प्रकाश में आया है कि कभी तराई स्टेट फार्म के नाम पर कोई जमीन रही होगी। श्री रावत ने बताया कि वर्ष 1960 के आसपास लो0नि0वि0 के द्वारा कुछ चालान की कार्यवाही भी की गई है जिसमे यह स्पष्ट है कि जो उस समय सड़क रही होगी उसके मध्य बिंदु से दोनों तरफ 50-50 फिट सड़क को माना गया है, ऐसे कई नोटिस है, जो वैधानिक है।

मण्डलायुक्त ने बताया कि आज निरीक्षण के उपरांत यह तय किया गया है कि उन नोटिसों के आधार पर उस समय जो भी सड़क की चौड़ाई रही होगी उसमे मध्य रेखा के हिसाब से दोनों तरफ 50-50 फीट चिन्हित कर लेंगे। उसके अंतर्गत जो भी निर्माण जद में आते हैं उनको निश्चित रूप से अतिक्रमण माना जायेगा, और अतिक्रमणकारियों से अनुरोध किया जाएगा अतिक्रमण को स्वतः हटा लें। उन्होंने कहा कि यदि और अधिक एवं विस्तृत रूप से सर्वे की आवश्यकता होती है तो सर्वे ऑफ इंडिया से भी सर्वे कराएंगे ताकि इस प्रश्न का हल निकल सके कि वन विभाग की सीमा कहाँ तक है। उन्होंने बताया कि चूंकि त्यौहारों का सीजन चल रहा है जिसके दृष्टिगत इस कार्यवाही को अभी न कर त्यौहारों के उपरांत करें। निरिक्षण दौरान उन्होंने लो0नि0वि0 अधिकारियों को निर्देश दिए कि त्यौहारों के उपरांत चिन्हीकरण की कार्यवाही सुनिश्चित करें, उसके उपरांत सर्वे ऑफ इंडिया से भी सर्वे कराया जाएगा।

इस दौरान जिलाधिकारी नितिन सिंह भदौरिया, प्रभागीय वनाधिकारी यू सी तिवारी, अपर जिलाधिकारी कौस्तुभ मिश्र, उपजिलाधिकारी मनीष बिष्ट, गौरव पांडेय, अध्यक्ष नगर पालिका नगला सचिन शुक्ला, तहसीलदार गिरीश त्रिपाठी, पूर्व विधायक राजेश शुक्ला सहित अन्य अधिकारी व जनप्रतिनिधि मौजूद थे।
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नगला , वर्षों से यह क्षेत्र बार-बार असमंजस की स्थिति में खड़ा किया जाता रहा है। कभी प्रशासनिक अस्पष्टता, तो कभी भू-अधिकारों की उलझनें—नगला के अस्तित्व पर बार-बार सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। परंतु हर बार यहां के लोग अपने संघर्ष और सामूहिक शक्ति से अपनी पहचान बचाते आए हैं।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

बीते दिनों कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत, जिलाधिकारी नितिन भदौरिया और पूरा प्रशासनिक अमला नगला पहुंचे। यहां पूर्व विधायक राजेश शुक्ला ने स्वयं आगे बढ़कर नगला की समस्याओं और चुनौतियों से प्रशासन को अवगत कराया। यह कदम इसलिए भी अहम है क्योंकि दशकों से इस क्षेत्र में रहने वाले लोग अब भय और असुरक्षा की मनःस्थिति में जी रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर क्यों बचाना है नगला को?
इतिहास और परंपरा से जुड़ा
नगला केवल ईंट-पत्थरों की बस्ती नहीं, बल्कि यहां 1960 के दशक से बसते लोग इसकी धड़कन हैं। इनमें राज्य आंदोलनकारी हैं जिन्होंने उत्तराखंड की पहचान के लिए अपने खून-पसीने की कुर्बानी दी। पूर्व सैनिक और आर्मी ऑफिसर हैं जिन्होंने सीमाओं की रक्षा की और देश की अस्मिता को अक्षुण्ण रखा। शिक्षा जगत के विद्वान हैं जिन्होंने पीढ़ियों को ज्ञान दिया और सामाजिक विकास की मशाल जलाए रखी। क्या ऐसे क्षेत्र को मिटाने की सोचना भी न्यायसंगत होगा?
संघर्ष और बलिदान की गाथा
नगला में आधा दर्जन से अधिक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी रहते हैं। जब राज्य की मांग तेज हुई, तो इन लोगों ने सड़कों पर उतरकर आवाज बुलंद की। जेल गए, लाठी-डंडे खाए, लेकिन हार नहीं मानी। आज उन्हीं आंदोलनकारियों के सिर पर बुलडोज़र की तलवार लटक रही है। यह न केवल उनके साथ अन्याय है बल्कि पूरे राज्य आंदोलन की आत्मा के साथ विश्वासघात भी है।
सामाजिक ताना-बाना
नगला की विशेषता उसका सामाजिक संतुलन है। यहां अलग-अलग वर्ग, जाति और पेशे के लोग मिलजुलकर रहते हैं। यह इलाका सामाजिक एकता और भाईचारे की मिसाल है। यदि इसे उजाड़ा गया, तो केवल मकान ही नहीं टूटेंगे, बल्कि पीढ़ियों से बुनी गई सामाजिक संरचना भी बिखर जाएगी।
प्रशासन का सकारात्मक हस्तक्षेप।इस बार उम्मीद की किरण इसलिए जगी है क्योंकि कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत और जिलाधिकारी नितिन भदौरिया ने स्थानीय लोगों की पीड़ा को गंभीरता से सुना। पूर्व विधायक राजेश शुक्ला और नगर पालिका परिषद अध्यक्ष सचिन शुक्ला की मौजूदगी ने इस संवाद को और भी सार्थक बनाया। अगर सहमति बनी तो यह नगला को बचाने का अंतिम और निर्णायक प्रयास साबित हो सकता है।
आज पूरे देश में ‘बुलडोज़र राजनीति’ चर्चा का विषय है। अवैध कब्जों के नाम पर कई बस्तियां उजाड़ी जा रही हैं। पर नगला का मामला अलग है। यहां दशकों से लोग रह रहे हैं, जिनकी सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जड़ें गहरी हैं। प्रशासन को चाहिए कि वह बुलडोज़र के बजाय संवाद और सहमति की राह चुने। यही लोकतांत्रिक और न्यायसंगत मार्ग है।
भविष्य की दिशा।नगला को बचाना केवल कुछ मकानों को बचाना नहीं है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देना है कि संघर्ष, बलिदान और इतिहास का सम्मान होता है। यदि नगला बचता है, तो यह न्याय और संवेदनशील प्रशासन की जीत होगी। यदि नहीं बचा, तो यह हमारी सामूहिक असफलता और संवेदनाओं पर प्रहार होगा।
आज जब पूरा प्रशासनिक अमला नगला के मुद्दे पर विचार कर रहा है, तो उम्मीद बनती है कि एक सकारात्मक रास्ता निकलेगा। नगला को बचाना हमारी नैतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक जिम्मेदारी है। आंदोलनकारियों, पूर्व सैनिकों और आम नागरिकों की पुकार को अनसुना करना इस राज्य की आत्मा को चोट पहुंचाना होगा। इसलिए नगला को बचाना ही होगा—क्योंकि नगला उत्तराखंड की अस्मिता का जीवंत प्रतीक है।


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