नैनीताल। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य विधिज्ञ परिषदों (स्टेट बार काउंसिल) को नए अधिवक्ताओं के पंजीयन का शुल्क अधिवक्ता एक्ट में निर्धारित फीस से अधिक न लेने के निर्देश दिए हैं।

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इसके बाद उत्तराखंड बार काउंसिल ने फिलहाल नए अधिवक्ताओं के पंजीयन की प्रक्रिया रोक दी है। पंजीयन की प्रक्रिया अब बार काउंसिल ऑफ इंडिया के दिशानिर्देशों के बाद शुरू होगी। उत्तराखंड में वर्तमान में करीब 25000 अधिवक्ता पंजीकृत हैं। इस साल अब तक 764 नए अधिवक्ता पंजीकृत हुए हैं।

हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट, रुद्रपुर ,उत्तराखंड

उत्तराखंड बार काउंसिल ने जारी किया आदेश

उत्तराखंड बार काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. महेंद्र सिंह पाल की ओर से जारी आदेश में सुप्रीम कोर्ट के गौरव कुमार बनाम यूनियन आफ इंडिया के मामले में 30 जुलाई को जारी निर्देश का हवाला देते हुए बताया है कि नए अधिवक्ताओं के पंजीयन पर तत्काल रोक लगा दी गई है।

फीस वसूली में तीसरे स्थान पर था उत्तराखंड

दरअसल, देश की कई राज्य बार काउंसिल की ओर से एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा-24 में अधिवक्ताओं के पंजीयन के लिए निर्धारित शुल्क से कई गुना अधिक फीस वसूली जा रही थी, जिसमें सबसे अधिक 42 हजार रुपये उड़ीसा बार काउंसिल ले रहा था। ऐसा करने वालों में गुजरात दूसरे, उत्तराखंड तीसरे व केरल चौथे स्थान पर था।

उत्तराखंड बार काउंसिल की ओर से 6000 रुपये पंजीयन शुल्क सहित अन्य खर्चों के साथ करीब 25 हजार रुपये वसूले जा रहे थे। इस अत्यधिक पंजीयन शुल्क के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं विचाराधीन थी।

इस पर 30 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने निर्देश देते हुए कहा कि अधिवक्ताओं के पंजीयन में स्टेट बार काउंसिल अधिवक्ता एक्ट में निर्धारित शुल्क से अधिक शुल्क नहीं ले सकते। यह संसद के बनाए कानून का उल्लंघन है।

अधिवक्ता एक्ट के अनुसार, सामान्य श्रेणी के विधि स्नातक से 650 रुपये व आरक्षण श्रेणी वाले से मात्र 125 रुपये ही पंजीयन शुल्क लिया जाना है।


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