निर्मल पंडित एवं पण्डित के सहयोगी रहे नरेश चंद भट्ट को नहीं मिला राज्य आंदोलनकारी का दर्जा। संघर्ष जारी रहेगा। हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स के इंटरव्यू में, अचिन्हित प्रकोष्ठ के केंद्रीय अध्यक्ष N C Bhatt पिथौरागढ़ उत्तराखंड।

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राज्य आंदोलन में निर्मल पंडित के सहयोगी रहे नरेश चंद्र भट्ट को नहीं मिला राज्य आंदोलनकारी का दर्जा

(Hindustan global times,
Editor उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट।)

नरेश चंद्र भट्ट ,निर्मल पंडित के साथ राज्य आंदोलन में कूद पड़े थे। अचयनित प्रकोष्ठ के केंद्रीय अध्यक्ष नरेश चंद्र भट्ट ने बताया कि

निर्मल पंडित1998 में शराब विरोधी आंदोलन के दौरान शहीद हो गए थे।राज्य आंदोलन से जुड़े लोगों को 27 जुलाई निर्मल पंडित1994 का वह दिन याद है, जब निर्मल पंडित के नेतृत्व में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के विरोध में पिथौरागढ़ महाविद्यालय में प्रवेश पत्र फाड़ दिए गए थे। यहीं से पूरे राज्य में ओबीसी विरोधी आंदोलन का आगाज हुआ, जो बाद में राज्य आंदोलन में तब्दील हो गया। राज्य आंदोलन के दौर में पंडित के नेतृत्व में आंदोलनकारियों ने अंतरिम सरकार का गठन किया, जिसके मुख्यमंत्री पंडित चुने गए।वर्ष 1998 में पहाड़ पर शराब की दुकानों का विरोध चरम पर था। 27 मार्च 1998 को पिथौरागढ़ में शराब की नीलामी का विरोध करने के दौरान पंडित ने कथित रूप से आत्मदाह कर लिया, हालांकि उनके परिजन आज भी नहीं मानते कि निर्मल ने आत्मदाह किया था। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान 16 मई 1998 को पंडित की मौत हो गई।एक बार फिर पिथौरागढ़ समेत पूरा पहाड़ निर्मल की शहादत को लेकर उबल गया। पंडित के आत्मदाह प्रकरण की सीबीआई जांच की मांग उठी, जो पूरी नहीं हो सकी। पंडित के पिता ईश्वरी प्रसाद जोशी का निधन हो चुका है। मां प्रेमा जोशी पुत्री गीता जोशी के साथ रुद्रपुर में रहती हैं। पंडित माता-पिता के एकलौता पुत्र थे।58 दिन फतेहगढ़ जेल में बंद रहे थे पंडितराज्य आंदोलन के दौरान पंडित 58 दिनों तक फतेहगढ़ (फर्रुखाबाद) जेल में बंद रहे। जब राज्य के एक होनहार युवा ने नशामुक्त उत्तराखंड की परिकल्पना लिए स्वयं को शहीद कर दिया। उम्मीदों व संभावनाओं से भरा यह युवा नेतृत्वकारी था निर्मल कुमार जोशी उर्फ निर्मल पंडित। एक ऐसा उभरता हुआ युवा क्रांतिकारी, जिससे लोगों को बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन निर्मल के साथ ही नशामुक्त उत्तराखंड के सवाल भी नेपथ्य में चले गए हैं। जिस प्रदेश में संसाधनों का अभाव हो और जिसके चलते शराब व्यवसाय ही राजस्व प्राप्ति का सबसे बड़ा स्रोत हो, वहां शराब मुक्ति के लिए राज्य सरकार से कोई उम्मीद करना बेमानी ही होगा। कहने को तो राज्य आंदोलन व नशा मुक्त उत्तराखंड के लिए किए गए उनके संघर्षों को याद करने का सिलसिला पिछले 23 वर्षों से जारी है, लेकिन आज के परिदृश्य में विडंबना यह है कि पंडित की शहादत भी नशे की गिरफ्त से पहाड़ को नहीं बचा पाई। नशा आज भी उत्तराखंड की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक बना हुआ है। नशे ने यहां के सामाजिक- आर्थिक-राजनैतिक ताने-बाने को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया है।

नरेश चंद भट्ट आज भी निर्मल पंडित के आदर्शों पर चलते हुए उत्तराखंड राज्य आंदोलन में जिस तरह सक्रिय भूमिका में रहे lआज भी राज्य आंदोलनकारीयो के जहां-जहां राज्य हित में धरने प्रदर्शन होते हैं। चिन्हित कारण,भू कानून, मूल निवास जरूर पहुंचते हैं । हर तरह से सक्रिय रहते हैं।उनके ओजस्वी भाषण इस बार मुख्यमंत्री आवास के पास बैरीकट लगाकर पुलिस प्रशासन ने रास्ता जाम कर दिया था ।नरेश चंद्र भट्ट ने अपने संबोधन में भू अध्यादेश, मूल निवास के साथ-साथ चिन्हित नहीं होने का भी आरोप लगाया ।1994 में पैदा हुए राज्य आंदोलनकारी घोषित कर दिए गए।अखबार की कटिंग की फोटो स्टेट लगाकर लोग चिन्हित हुए ,कहीं-कहीं तो प्रभावशाली लोगों ने अपने पूरे परिवार को ही राज्य आंदोलनकारी बना दिया है ।जांच का विषय है। जबकि वास्तविक राज्य आंदोलनकारी आज भी दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। 1994 में पैदा हुआ व्यक्ति कैसे राज्य आंदोलनकारी हो सकता है। जरूर तत्कालीन सत्तापक्ष की मिली भगत रही होगी। जागरूक लोगों को फर्जी तरह से चिन्हित हुए लोगों की जांच भी करनी चाहिए lसरकार को चाहिए। वास्तविक राज्य आंदोलनकारी जिनका पुलिस अभिलेखों में नाम दर्ज है ,उन्हें तुरंत चयनित किया जाए। चिन्हित कारण के एक समान मानक होने चाहिए। अखबार की कटिंग दिखाकर भी लोग राज्य आंदोलनकारी बने। पूरे अभिलेख होने के बावजूद भी नरेश चंद्र भट्ट ने गंभीर आरोपों लगाए कि पैसे देकर राज्य आंदोलनकारी बने हैं। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों की विडंबना जो अभी तक चयनित नहीं हो पाए हैं। हम सरकार से मांग करते हैं तुरंत चिन्हित करण किया जाए। नरेश चंद्र भट्ट,निर्मल पंडित,
किशोर पाठक,
भगवती भट्ट,
जे के भट्ट,
दीपक चौहान, वास्तविक आंदोलनकारी चिन्हित होने की आस लिए बैठे हैं।
वास्तविक राज्य आंदोलनकारी जिन्होंने अपनी पूरी जवानी राज्य आंदोलन में लगा दी ।अभी तक चिन्हित नहीं हो पाए हैं। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों की विडंबना ही कहेंगे।। Hindustan global Times


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