रियाणा के चुनाव में बीजेपी की अप्रत्याशित जीत तो हुई ही है, कांग्रेस की सबसे बड़ी अप्रत्याशित हार भी हो गई। जिस राज्य में तमाम राजनीतिक पंडित मानकर चल रहे थे कि कांग्रेस जीतने वाली है, जहां खुद कांग्रेस जरूरत से ज्यादा विश्वास में दिख रही थी, जिस राज्य में सुनामी चलने की बात हो रही थी, वहां अब सबकुछ ठंडा पड़ चुका है।

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बड़ी बात यह है कि हरियाणा में बीजेपी ने रिकॉर्ड बनाते हुए तीसरी बार सत्ता में वापसी की है। जो कमाल किसी जमाने में देवी लाल जैसे दिग्गज नेता भी नहीं कर पाए थे, पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने वो कर दिखाया। अब राजनीति में कितना भी विरोध हो जाए, तमाम पार्टियां एक दूसरे जो चुनावी नतीजों के बाद बधाई जरूर देती हैं। किसी की भी सरकार बने, बधाई संदेश जरूर जाता है। लेकिन पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि कांग्रेस का कल्चर बदल चुका है, यहां पर बधाई से ज्यादा आरोप रहते हैं, शुभकामना से ज्यादा सवाल होते हैं।

हरियाणा चुनाव में कांग्रेस को हार मिली तो जयराम रमेश ने इसे सीधे-सीधे लोकतंत्र से जोड़ दिया। इसे तंत्र की जीत बता दिया। प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उन्होंने कहा कि हरियाणा चुनाव के नतीजे हमें अस्वीकार्य है क्योंकि ये लोकतंत्र की हार हुई है और तंत्र की जीत हुई है। पवन खेड़ा ने तो एक कदम आगे बढ़कर ईवीएम की बैट्री तक पर सवाल उठा दिए। उन्होंने कहा कि हिसार, महेंद्रगढ़ और पानीपत जिलों से लगातार शिकायतें आ रही हैं कि यहां EVM की बैट्री 99% थी। इन जगहों पर कांग्रेस को हराने वाले नतीजे आए। वहीं, जिन मशीनों को नहीं छेड़ा गया और जिनकी बैट्री 60%-70% थी, वहां हमें जीत मिली। हम इन सारी शिकायतों को लेकर चुनाव आयोग जाएंगे।

अब इन प्रकार के बयानों का क्या मतलब निकाला जाए, एक चुनावी हार ने क्या अब ईवीएम को खराब बना दिया? ईवीएम की कम ज्यादा बैट्री अब फैसला करेगी कि किसकी सरकार बनने वाली है? हैरानी की बात यह है कि जिन ईवीएम को लेकर कांग्रेस फिर आगबबूला है, उन्हीं चुनावी मशीनों ने जम्मू-कश्मीर में उसके गठबंधन को पूर्ण बहुमत की सरकार दी है। वहां पर बीजेपी जो कई सालों से सरकार बनाने का सपना देख रही है, बहुमत से कोसो दूर है। ऐसे में सवाल तो पूछा जाएगा- कांग्रेस जीते तो सब चंगा, हारने पर साजिश-षड्यंत्र का ठीकरा?

हैरानी की बात यह है कि जो आरोप कांग्रेस ने इस बार लगाए हैं, वही आरोप उसने इस साल 4 जून को भी लगाए थे। तब भी चुनाव आयोग ने आरोपों का खंडन किया था और इस बार फिर ईसी ने सभी आरोपों को दुर्भाग्यपूर्ण और गुमराह करने वाला बता दिया है।

ऐसे में देश की जनता यह सवाल पूछना चाहती है कि कांग्रेस का लोकतंत्र क्या सहूलियत वाला है जो सिर्फ तभी जीतता है जब उसकी चुनाव में जीत होती है, जब सुप्रीम कोर्ट में उसके पक्ष में कोई फैसला आता है, जब जांच एजेंसियां किसी बीजेपी नेता के खिलाफ कार्रवाई करती है? इतने सवाल इसलिए हैं क्योंकि कांग्रेस का अब यह पैटर्न बन चुका है, वो या तो जांच एजेंसियों को कठघरे में खड़ा करती है या फिर सीधे-सीधे चुनाव आयोग पर अंगुली उठाती है।

राहुल गांधी का अमेरिका में दिया वो बयान याद करना जरूरी है जब उन्होंने विदेशी धरती से बोल दिया था कि भारत का चुनाव निष्पक्ष नहीं था। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि गरीब इस बात को भी समझ गया था कि असल लड़ाई तो संविधान बचाने वालों और संविधान को खत्म करने वालों के बीच में थी। इसके ऊपर जातिगत जनगणना का मुद्दा भी काफी बड़ा बन गया था। मुझे नहीं लगता कि अगर निष्पक्ष चुनाव होते तो बीजेपी को 246 सीटें नहीं आ पातीं।

हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट,

अब जब कांग्रेस के सबसे बड़े नेता ही ऐसे बयान देंगे तो दूसरे छोटे कार्यकर्ताओं या नेताओं से जनता को क्या उम्मीद रखनी चाहिए? चुनावों को तो हमेशा से ही लोकतंत्र का पर्व माना गया है, जीत किसी की भी हो, सशक्त तो यह लोकतंत्र ही होता है क्योंकि उसमें जनता का फैसला होता है, उनका समर्थन होता है। लेकिन जब चुनावी नतीजों को ही सहूलियत के लिहाज से देखा जाने लगे तो हर हार पर लोकतंत्र का मरना तो लाजिमी है, षड्यंत्र का आरोप लगना जगजाहिर है।


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