लोकसभा चुनाव में पहले चरण की वोटिंग में अब मात्र पांच दिन का वक्त बचा हुआ है. हर पार्टी आगामी चुनाव के लिहाज से अपनी तैयारियों को दुरुस्त कर रही है. आम लोगों को लुभाने और अपने पाले में लाने का कोई अवसर इस वक्त कोई भी पार्टी नहीं छोड़ना चाहती है.

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अब 24 साल पहले उत्तर प्रदेश से अलग हुए उत्तराखंड में समाजवादी पार्टी के जैसा ही हाल मायावती की पार्टी का होता जा रहा है.

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/ प्रिंट मीडिया : शैल ग्लोबल टाइम्स/ अवतार सिंह बिष्ट, रूद्रपुर ,उत्तराखंड

दरअसल, बीते लोकसभा चुनाव में सपा और बीएसपी ने साथ चुनाव लड़ा था. तब उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड में भी दोनों ही पार्टियों ने संयुक्त उम्मीदवार उतारे थे. बीएसपी ने उत्तराखंड की सभी पांच सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. तब सपा ने इन सभी सीटों पर बीएसपी को समर्थन दे दिया था. अब इस चुनाव में सपा, इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस के साथ है. इस चुनाव में दोनों पार्टियों ने तीन राज्यों में संयुक्त उम्मीदवार उतारे हैं.

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दो चुनाव से उम्मीदवार नहीं उतार रही सपा
इस बार भी सपा ने उत्तराखंड में कांग्रेस के सभी पांच उम्मीदवारों को समर्थन दे दिया है. यानी बीते दो चुनावों से पार्टी ने उत्तराखंड का मैदान छोड़ दिया है. ये स्थिति तब है जब 2004 के चुनाव में सपा ने राज्य में एक लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की थी. तब पार्टी ने हरिद्वारा लोकसभा सीट जीती थी. अब मायावती की पार्टी बीएसपी का भी ऐसा ही हाल होते जा रहा है. इसकी झलक शनिवार को मायावती की रैली में देखने को मिली है.

उत्तराखंड लोकसभा चुनाव को लेकर बसपा एक्शन मोड में नजर आ रही है. मंगलौर के लिब्बरहेड़ी में जनसभा के दौरान बसपा सुप्रीमो मायावती ने भाजपा और कांग्रेस पर जमकर हमला बोला. लेकिन रैली में बसपा का स्थानीय संगठन भीड़ जुटाने में नाकाम साबित हुआ. लगभग हफ्ते भर की मेहनत के बावजूद बसपा सुप्रीमो की जनसभा में कुर्सियां खाली नजर आई, जो चर्चा का विषय बनी रही. ऐसे में अब सवाल उठने लगा है कि क्या उत्तराखंड में बीएसपी का हाल भी सपा की तरह होने जा रहा है.

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/ प्रिंट मीडिया : शैल ग्लोबल टाइम्स/ अवतार सिंह बिष्ट, रूद्रपुर ,उत्तराखंड


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