
रुद्रपुर/गुजरात। भारत रत्न डॉ. भीम राव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों की श्रृंखला में इस बार का आयोजन विशेष बन गया जब उत्तराखण्ड प्रदेश महिला कांग्रेस कमेटी की वरिष्ठ उपाध्यक्ष और रुद्रपुर की पूर्व पालिका अध्यक्ष श्रीमती मीना शर्मा ने गुजरात में भीम सैनिक संगठन द्वारा आयोजित समारोह में बतौर प्रधान अतिथि सहभागिता की। एक विचारशील और गरिमामयी भाषण में उन्होंने न केवल बाबासाहेब के विचारों को याद किया, बल्कि वर्तमान सामाजिक चुनौतियों पर भी खुलकर बात की।


शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता
कार्यक्रम का शुभारंभ श्रीमती मीना शर्मा द्वारा डॉ. अंबेडकर के चित्र पर पुष्प अर्पित करने और दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। आयोजकों ने उन्हें स्मृति चिन्ह और पुष्पगुच्छ भेंट कर उनका भव्य स्वागत किया। समारोह की अध्यक्षता सरपंच निलेश वरिया ने की जबकि संचालन स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता के.के. द्वारा किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में भीम सैनिक कार्यकर्ता, विभिन्न राजनीतिक दलों के पदाधिकारी और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
डॉ. अंबेडकर के विचारों को आत्मसात करने की अपील
अपने संबोधन में मीना शर्मा ने कहा कि, “डॉ. अंबेडकर ने भारतीय समाज की तमाम सामाजिक बुराइयों—जैसे जात-पात, छुआछूत, ऊँच-नीच और आर्थिक असमानता—के खिलाफ एक समर्पित और संघर्षपूर्ण जीवन जिया। उन्होंने हमें संविधान रूपी वह शस्त्र दिया, जो आज भी समानता, न्याय और अधिकारों की रक्षा करता है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि आज जब समाज पुनः विघटन और असमानता की ओर लौटने के खतरे से जूझ रहा है, तब हमें अंबेडकरवादी मूल्यों की और भी अधिक आवश्यकता है। “हमें केवल बाबासाहेब की जयंती मनाने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उनके आदर्शों को अपने जीवन और कार्यशैली में उतारना चाहिए,” उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा।
राजनीति में सामाजिक न्याय की लड़ाई का चेहरा बनीं मीना शर्मा
मीना शर्मा की पहचान केवल एक नेता की नहीं, बल्कि एक सामाजिक कार्यकर्ता और महिला अधिकारों की सशक्त आवाज के रूप में भी बनी है। रुद्रपुर की पूर्व पालिका अध्यक्ष और 66 विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर उन्होंने हमेशा दलित, वंचित और महिला वर्ग के मुद्दों को उठाया है। वे राजनीति में एक ऐसे चेहरे के रूप में उभरी हैं जो वंशवाद से नहीं, संघर्ष और सेवा से बनी है।
कार्यक्रम के दौरान जब उन्हें मंच पर आमंत्रित किया गया, तो दर्शकों ने खड़े होकर तालियों से उनका स्वागत किया। यह न केवल उनके राजनीतिक कद को दर्शाता है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों में उनके प्रति आदर और विश्वास का प्रतीक भी है।
संविधान को बचाने की पुकार
श्रीमती शर्मा ने अपने भाषण में संविधान पर मंडरा रहे खतरों की ओर भी इशारा किया। उन्होंने कहा, “आज कुछ ताकतें देश को उस दिशा में मोड़ना चाहती हैं जहाँ लोकतंत्र का मूल भाव, समता और न्याय, खतरे में पड़ जाए। ऐसे समय में हमें जागरूक नागरिक की भूमिका निभानी होगी और संविधान को बचाने के लिए हर स्तर पर प्रयास करना होगा।”
गुजरात में उत्तराखंड की आवाज
इस आयोजन में उनकी मौजूदगी यह भी दर्शाती है कि उत्तराखण्ड की आवाज अब केवल राज्य तक सीमित नहीं रही, बल्कि देशभर के सामाजिक आंदोलनों में उसकी भागीदारी बढ़ रही है। मीना शर्मा ने इस मौके पर गुजरात के सामाजिक कार्यकर्ताओं और भीम सैनिक संगठन को धन्यवाद देते हुए कहा कि “यह हम सबका साझा संघर्ष है—एक ऐसे भारत के निर्माण का जहाँ व्यक्ति की पहचान उसकी जाति, धर्म या लिंग से नहीं, उसके विचारों और कर्मों से हो।”
समाप्ति के स्वर में आशा और प्रेरणा
कार्यक्रम का समापन ‘जय भीम’ के नारों और सामूहिक प्रतिज्ञा से हुआ जिसमें उपस्थित जनसमूह ने डॉ. अंबेडकर के विचारों पर चलने की शपथ ली। मीना शर्मा ने सबको यह संदेश दिया कि परिवर्तन केवल भाषणों से नहीं, कर्म से आता है—और वह परिवर्तन तब होगा जब हर नागरिक संविधान, समानता और सामाजिक न्याय की रक्षा को अपना धर्म मानेगा।
