22 जनवरी को अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर में ‘राम लल्ला’ (राम के बाल रूप) की 51 इंच की पत्थर की मूर्ति प्रतिष्ठित की जाएगी। यह मूर्ति नौ इंच की उस मूर्ति का स्थान लेगी, जो पिछले 74 वर्षों से परिसर में विराजमान है।1949 में बाबरी मस्जिद के भीतर ‘रामलला’ को ‘प्रकट’ होता देखने वाले को भाजपा ने दो बार बनाया था सांसद, आजीवन रहे VHP के सदस्य

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न्यूज़ पोर्टल-हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स।
प्रिंट न्यूज़-शैल ग्लोबल टाइप्स,
अवतार सिंह बिष्ट, रूद्रपुर
(उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)

साल 1949 में राम की नौ इंच की मूर्ति अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद (इसे 1992 में ध्वस्त कर दिया गया था) में कथित तौर पर प्रकट हुई थी। इस एक घटना ने आने वाले दशकों में भारत और इसकी राजनीति की दिशा बदल दी।

FIR में दर्ज हुई थी मस्जिद में मूर्ति रखने वालों के नाम

भगवान का यह ‘चमत्कारी स्वरूप’ इतिहास में उतना ही विवादित रहा है जितना कि वह संरचना जिसमें इसे रखा गया था। संघ परिवार (RSS) और बाद में भाजपा के लिए 22-23 दिसंबर, 1949 की रात को बाबरी मस्जिद के केंद्रीय गुंबद के नीचे मूर्ति की ‘प्रकटीकरण’ एक ‘दिव्य’ घटना थी। इस घटना को एक संकेत माना गया, जिसके मुताबिक, भगवान राम ने हिंदुओं को ‘अपनी जन्मभूमि’ पुनः प्राप्त करने के लिए कहा। आज तक संघ परिवार उस दिन को प्रकटोत्सव दिवस के रूप में मनाता है।

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हालांकि, जांचकर्ताओं और इतिहासकारों का मानना ​​है कि यह नव विभाजित भारत में सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने, संपत्ति पर दावा करने के लिए एक भावनात्मक आधार तैयार करने और सांस्कृतिक रूप से अयोध्या के बाहर के हिंदुओं को विवाद से जोड़ने की एक विस्तृत साजिश थी।

बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद लिब्रहान आयोग द्वारा तैयार की गई जांच रिपोर्ट के अनुसार, मूल राम लल्ला की मूर्ति को निर्मोही अखाड़े के साधु अभिराम दास (जिसे अभय राम दास कहा जाता है) द्वारा मस्जिद के गुंबद के नीचे रखा गया था। रिपोर्ट में उस समय दर्ज की गई एफआईआर का हवाला दिया गया है जिसमें बताया गया है कि कैसे दास ने अन्य लोगों के साथ मिलकर 22 दिसंबर, 1949 की आधी रात में मूर्ति रख दी थी।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘उस तारीख को रामचंद्र जी (राम लल्ला) की मूर्तियां ‘श्री राम’ के शिलालेख के साथ ‘गर्भगृह’ में स्थापित की गईं। परिणामस्वरूप, अभय राम, सिदेश्वर राव, शिव चरण दास और 60 अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।’

रिपोर्ट के अनुसार, संबंधित पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी राम दुबे ने एफआईआर में लिखा, ‘सुबह लगभग 7 बजे मैं जन्मभूमि पहुंचा, मुझे ड्यूटी पर मौजूद कांस्टेबल माता प्रसाद से पता चला कि रात में 50 से 60 लोग ताला तोड़कर मस्जिद में घुस गए, दीवार फांदकर श्री राम लला की मूर्ति स्थापित कर दी और दीवार पर गेरू और पीले रंग से ‘श्री राम’ लिख दिया। उस समय ड्यूटी पर मौजूद कांस्टेबल हंस राज ने उन्हें इस तरह से व्यवहार न करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने कोई बात नहीं सुनी। वहां तैनात पीएसी बल को बुलाया गया, लेकिन जब तक वह वहां पहुंचे, वे पहले ही मस्जिद में प्रवेश कर चुके थे।’

केंद्र सरकार ने नहीं हटाई मूर्ति

मूर्ति रखे जाने के बाद उसी रात मस्जिद के अंदर हिंदू पक्ष द्वारा ‘पूजा और भजन शुरू किया गया।’ केंद्र और राज्य सरकार ने इस आयोजन पर आपत्ति जताई, लेकिन मूर्ति को नहीं हटाया गया।

मूर्ति को प्रकट होते देखने वाले ने भाजपा से लड़ा चुनाव

विश्व हिंदू परिषद के आजीवन सदस्य बीएल शर्मा ने दावा किया था कि जब मस्जिद के गुंबद के नीचे मूर्ति ‘प्रकट’ हुई तो वह उस स्थान पर मौजूद थे। शर्मा ने दावा किया कि उन्होंने सुबह 3 बजे मस्जिद के अंदर से रोशनी आती देखी। आगे निरीक्षण करने पर पता चला कि रोशनी रामलला की मूर्ति से आ रही थी।

वीएचपी के प्रवक्ता विनोद बंसल ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘उन्होंने एक बार मुझसे कहा था कि जब बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किया गया, तो वह वहीं थे। किसी ने मस्जिद के नीचे से मूर्ति निकालकर उनकी गोद में रख दिया। फिर मूर्ति को श्री राम के जन्मस्थान पर वापस रख दिया गया।’ बाद में शर्मा भाजपा में शामिल हो गए। 1991 और 1996 में दो बार पूर्वी दिल्ली सीट से लोकसभा चुनाव लड़े और सांसद बने। बाद में उन्होंने सक्रिय राजनीति से इस्तीफा दे दिया और वीएचपी के साथ फिर के साथ काम करते रहे। शर्मा बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भी आरोपी थे। शर्मा का निधन साल 2019 में दिल्ली के बीके दत्त कॉलोनी स्थित उनके आवास पर हुआ था।

मूर्ति का क्या हुआ?

इस बीच मूर्ति को एक तिरपाल के नीचे एक अस्थायी संरचना में रखा गया था, जहां यह 9 नवंबर, 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तक लगभग 28 वर्षों तक रही। कोर्ट ने उस स्थान को हिंदुओं को दे दिया। 25 मार्च, 2020 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रामलला की मूर्ति को तिरपाल के नीचे से अस्थायी मंदिर में स्थानांतरित कर दिया। लकड़ी के सिंहासन की जगह अब चांदी का सिंहासन लगा दिया गया है।

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