रुद्रपुर की राजनीति में पोस्टर वॉर: विकास शर्मा बनाम शिव अरोड़ा – 2027 की पटकथा शुरू?पोस्टर में कौन बड़ा?” – रुद्रपुर की सियासत में तैरता सवाल, विकास बनाम शिव का दूसरा अध्याय शुरू

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रुद्रपुर की राजनीति में पोस्टर वॉर: विकास शर्मा बनाम शिव अरोड़ा – 2027 की पटकथा शुरू?

रुद्रपुर, संवाददाता अवतार सिंह बिष्ट: प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

रुद्रपुर की सियासी फिज़ाओं में इन दिनों एक नया समीकरण आकार ले रहा है। बात चाहे पोस्टर-बैनर की हो या भाजपा के सक्रिय सदस्यता सम्मेलन की, महापौर विकास शर्मा की बढ़ती सियासी मौजूदगी और विधायक शिव अरोड़ा की पोस्टर से अनुपस्थिति, यह इशारा कर रही है कि 2027 की तैयारी अभी से शुरू हो चुकी है।

गांधी पार्क में आयोजित भाजपा के सदस्यता सम्मेलन में शहर भर को विकास शर्मा की छवि से पाट दिया गया। बड़े-बड़े फ्लेक्सी बैनरों में जहां महापौर की तस्वीरें प्रमुखता से दिखीं, वहीं विधायक शिव अरोड़ा को या तो छोटे कोने में जगह मिली या कई बैनरों से पूरी तरह नदारद कर दिया गया।

इससे पहले, जब रुद्रपुर में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का आगमन हुआ था, तब भी आयोजन की पूरी छाप विकास शर्मा के नाम पर नजर आई। विधायक को साइडलाइन करने का यह सिलसिला अब और तेज होता दिख रहा है।

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि महापौर बनने के बाद विकास शर्मा की नज़र अब अगला कदम—विधायक बनने पर है। सूत्रों के मुताबिक, 2022 के चुनावों में उन्होंने पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल को भाजपा में दोबारा शामिल कराने और मुख्यमंत्री से मिलवाने में अहम भूमिका निभाई थी। इस राजनीतिक सक्रियता का फल उन्हें नगर नगरनिगम चुनाव में मिल गया।

वहीं शिव अरोड़ा को हल्के में लेना आसान नहीं। वे न सिर्फ सत्ता के गलियारों में पकड़ रखते हैं, बल्कि उत्तराखंड की राजनीति में उनकी आवाज़ दूर तक सुनाई देती है। जानकारों का मानना है कि वे इस चुनौती का मुंहतोड़ जवाब देंगे।

सोशल मीडिया पर भी इस पोस्टर पॉलिटिक्स की चर्चा जोरों पर है। कोई इसे संगठन में बढ़ती गुटबाज़ी बता रहा है, तो कोई इसे आने वाले टिकट की दौड़ का ट्रेलर मान रहा है।

अब सवाल यह है: 2027 में भाजपा का असली चेहरा रुद्रपुर से कौन होगा? शिव अरोड़ा या विकास शर्मा? या फिर कोई तीसरा विकल्प?

फिलहाल, रुद्रपुर की राजनीति में चल रही यह खींचतान न सिर्फ भाजपा के भीतर के समीकरण को बदल सकती है, बल्कि शहर की सियासी दिशा भी तय कर सकती है।

बहुत बढ़िया! यहां उस रिपोर्ट का दूसरा भाग प्रस्तुत है, जिसमें दोनों पक्षों—महापौर विकास शर्मा और विधायक शिव अरोड़ा—के रुख, सोशल मीडिया प्रतिक्रियाएं और विश्लेषण को शामिल किया गया है। यह हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स की स्टाइल में विश्लेषणात्मक खबर के रूप में तैयार किया गया है:


“पोस्टर में कौन बड़ा?” – रुद्रपुर की सियासत में तैरता सवाल, विकास बनाम शिव का दूसरा अध्याय शुरू

गांधी पार्क से शुरू हुई तस्वीरों की जंग अब सोशल मीडिया की गलियों और भाजपा कार्यकर्ताओं के व्हाट्सएप ग्रुपों तक पहुंच चुकी है। महापौर विकास शर्मा द्वारा आयोजित सदस्यता सम्मेलन में विधायक शिव अरोड़ा की प्रतीकात्मक अनुपस्थिति ने कई राजनीतिक संकेत छोड़े हैं।

विकास शर्मा का रुख – ‘कार्यक्रम मेरा, जिम्मेदारी मेरी’

नगर निगम से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, महापौर विकास शर्मा का कहना है कि यह कार्यक्रम नगर स्तर पर था, और उनका उद्देश्य संगठन को मजबूती देना था। “कार्यक्रम मेरी तरफ़ से था, तो पोस्टर में मेरी मौजूदगी स्वाभाविक है,” उन्होंने एक निजी बातचीत में कहा। हालांकि, विधायक की तस्वीर न होने के सवाल पर उन्होंने कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी।

शिव अरोड़ा खेमे की नाराज़गी – ‘कार्यकर्ता देख रहे हैं सबकुछ’

शिव अरोड़ा समर्थक कार्यकर्ता मानते हैं कि यह ‘जानबूझकर की गई नजरअंदाजी’ है। एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “विधायक जी संगठन में एक सुलझे हुए नेता माने जाते हैं। यह पोस्टर की राजनीति उनको हल्का दिखाने का प्रयास है। लेकिन जनता सब देख रही है।”

सोशल मीडिया पर बहस – ‘पोस्टर में नेता नहीं, इरादा दिखता है’

फेसबुक और एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्टर की तस्वीरों को लेकर ढेरों मीम्स और पोस्ट आ चुके हैं। एक यूजर ने लिखा – “पोस्टर में फोटो नहीं, 2027 की मंशा दिख रही है।”

वहीं एक अन्य ने सवाल किया – “क्या भाजपा में अब संगठनात्मक समन्वय नहीं बचा?”

राजनीतिक विश्लेषण – एक सीट, दो दावेदार

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के भीतर यह ‘मूक संघर्ष’ 2027 के टिकट वितरण से पहले का शक्ति प्रदर्शन है। विकास शर्मा, मुख्यमंत्री धामी के करीबी माने जाते हैं और नगर में तेजी से संगठन पर पकड़ बना रहे हैं। वहीं, शिव अरोड़ा लंबे समय से रुद्रपुर के लिए जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं और दिल्ली तक उनकी सियासी पकड़ है।

पार्टी नेतृत्व की चुप्पी – रणनीति या असहजता?

अब तक भाजपा के जिलाध्यक्ष या प्रदेश नेतृत्व ने इस विवाद पर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है। यह चुप्पी अपने-आप में कई संकेत छोड़ती है – या तो पार्टी इसे ‘स्थानीय मामला’ मानकर नजरअंदाज़ कर रही है या फिर अंदरूनी तौर पर इसे सुलझाने की कोशिशें जारी हैं।

रुद्रपुर की राजनीति में एक नया युग दस्तक दे चुका है। जहां एक ओर महापौर का बढ़ता आत्मविश्वास है, वहीं दूसरी ओर विधायक शिव अरोड़ा का राजनीतिक अनुभव और गहरी पकड़। आने वाले महीनों में यह टकराव भाजपा संगठन की दिशा और नेतृत्व के चयन की प्राथमिकताओं को भी उजागर करेगा।




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