


लंका में रावण ने सीता को क्यों नहीं किया स्पर्श, किन्नर गीत गा रहे थे और मदमाते विद्याधर अपनी प्रेमिकाओं के साथ क्रीड़ा में मग्न थे। शीतल और मंद समीर का झोंका आता तो पल्लवित वृक्ष, पुष्प-वर्षा करने लगते जिससे पूरा क्षेत्र सुवासित हो उठता था। ऐसे मनोहारी वातावरण में रावण का मन काम से उन्मत्त हो उठा।


इसी बीच रावण की दृष्टि एक युवती पर पड़ी। रावण उसके सौंदर्य पर मंत्रमुग्ध हो गया। इस घोर अंधकार में इतनी सुंदर युवती कौन है और कहां जा रही है? रावण ने सोचा। वह धीरे-धीरे युवती के निकट पहुंचा। युवती के तन पर चंदन का लेप लगा था और बालों में कल्पतरु के फूल गुंथे थे। उसका मुख चांद-सा उज्ज्वल था और भवें धनुष के समान तनी थीं। उसे देखकर काम के वशीभूत रावण संयम खो बैठा। उसने आगे बढ़कर युवती का हाथ पकड़ लिया। ‘हे रूपसी! तुम कौन हो और कहां जा रही हो?’ रावण ने पूछा।
रावण के रंग-रूप को देखकर युवती सहम गई। ‘आप कौन हैं?’ उसने हाथ छुड़ाते हुए पूछा।
‘मैं लंका का स्वामी और राक्षसराज रावण हूं। यहां का मनोहारी वातावरण देखकर रुक गया। तुमने बताया नहीं कि तुम कौन हो?’
‘रा-व-ण…! तातश्री, मैं देवलोक की अप्सरा हूं और मेरा नाम रंभा है।’ रंभा ने प्रणाम करके कहा।
‘वाह!’ दशानन प्रसन्न होकर बोला, ‘अप्सरा और राक्षसराज का अच्छा संयोग बनेगा। लेकिन तुमने मुझे तातश्री क्यों कहा?’
‘…क्योंकि मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं।’
‘मेरी पुत्रवधू? वो कैसे?’ रावण ने आश्चर्य से पूछा।
‘मैं आपके सौतेले भाई धनेश्वर कुबेर के पुत्र नलकूबर से प्रेम करती हूं और उन्हीं से मिलने जा रही हूं।’
‘हा! हा!’ रावण ने ठहाका लगाया। ‘अप्सराएं कब-से प्रेम करने लगीं? प्रेम और निष्ठा साधारण स्त्रियों को शोभा देता है। तुम अप्सरा हो और तुम्हारा कार्य केवल नृत्य और मनोरंजन करना है। इसके लिए नलकूबर के पास जाने की क्या आवश्यकता है? मेरे होते हुए तुम्हारी सुंदर और कमनीय काया का भोग कोई और करे, यह मैं नहीं होने दूंगा!’ रावण पर काम हावी हो गया था।
रंभा ने रावण को पिता-तुल्य बताकर कई बार उससे आग्रह किया कि वह उसे नलकूबर के पास जाने की अनुमति दे। परंतु रावण ने निर्लज्जता की सब सीमाएं पार कर दीं।
‘मैं त्रिलोकपति रावण तुमसे प्रेम की याचना कर रहा हूं और तुम मेरा अपमान करके उस कायर कुबेर के पुत्र नलकूबर के पास जाना चाहती हो? मैं यह नहीं होने दूंगा। मेरे निकट आओ!’
यह कहकर रावण ने रंभा को बलपूर्वक पर्वत-शिला पर पटक दिया। वासना के ज्वार के शांत हो जाने तक रावण रंभा का मर्दन करता रहा। फिर वह अपने शिविर में लौट आया।
इधर, रोती-बिलखती रंभा ने नलकूबर को सारी बात बताई। इस पर नलकूबर की आंखें क्रोध से लाल हो गईं और भुजाएं फड़कने लगीं। वह जानता था कि रावण से लड़कर उसे परास्त नहीं किया जा सकता था। इसलिए नलकूबर ने हाथ में जल लेकर शाप दिया कि- ‘कामी और धूर्त रावण कभी किसी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध स्पर्श भी नहीं कर सकेगा। उसने ऐसा किया तो उसके सिर के सात टुकड़े हो जाएंगे!’
रावण को शाप का पता लगा तो वह भयभीत हो गया। उस दिन के बाद से रावण ने पर-स्त्रियों के साथ दुराचार छोड़ दिया। कहते हैं, इसी कारण रावण ने सीता को लंका में बंदी बनाकर तो रखा किंतु शाप के डर से वह सीता को कभी स्पर्श नहीं कर पाया।
