उत्तराखंड के शहरों की नई सरकार को लेकर किसी का पलड़ा भारी है तो किसी के लिए चुनौती है। लोकसभा चुनाव नतीजों के हिसाब से वोट बैंक खिसकने से ज्यादा राजनीतिक दल चिंतित हैं तो वहीं कुछ खुश भी हैं।

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हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /प्रिंटिंग मीडिया शैल ग्लोबल टाइम्स /संपादक अवतार सिंह बिष्ट , रूद्रपुर, उत्तराखंड

अब देखने वाली बात होगी कि नौ नगर निगमों में मेयर का ताज किस पार्टी के प्रत्याशियों के सिर सजेगा। 2018 के निकाय चुनाव की बात करें तो राज्य में सात नगर निगम देहरादून, हरिद्वार, काशीपुर, ऋषिकेश, रुद्रपुर, कोटद्वार और हल्द्वानी थे। इसमें से पांच सीटों देहरादून, ऋषिकेश, काशीपुर, रुद्रपुर और हल्द्वानी में भाजपा ने परचम लहराया था।

जबकि, पहली बार अस्तित्व में आए कोटद्वार नगर निगम में कांग्रेस की हेमलता नेगी और हरिद्वार नगर निगम में भी मेयर की कुर्सी कांग्रेस के खाते में आई थी। इस बार दो नगर निगम श्रीनगर और नैनीताल नगर निगम बन गए हैं। इन दोनों में भी भाजपा-कांग्रेस के लिए चुनौती है।

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2018 में भाजपा का पलड़ा था भारी
2018 में राज्य में 84 निकायों में चुनाव हुआ था। इनमें मेयर, चेयरमैन के 34 पदों पर भाजपा, 25 पदों पर कांग्रेस, एक पद पर बसपा और 24 पदों पर निर्दलीय जीते थे। पूर्व के चुनाव के मुकाबले इन पदों पर भाजपा को 12, कांग्रेस को पांच सीटों का फायदा हुआ था। वार्ड सदस्यों में भाजपा को 323, कांग्रेस को 182, बसपा को चार, आप को दो, सपा को एक, यूकेडी को एक और निर्दलीयों को 551 सीटों पर जीत मिली थी। इनमें भाजपा के 143 वार्ड मेंबर, जबकि कांग्रेस के 47 बढ़े थे। 374 निर्दलीय बढ़े थे। इस लिहाज से देखें तो 2018 निकाय चुनावों में भाजपा का पलड़ा भारी था। राज्य में भाजपा की ही सरकार भी थी।

इस बार क्या हैं समीकरण
राज्य में भाजपा की लगातार दूसरी सरकार है। लोकसभा में भाजपा को पांचों सीटों पर जीत तो मिली है, लेकिन 2019 के मुकाबले पांच प्रतिशत वोट बैंक भी खिसक गया है। ऐसे में चुनौती कम नजर नहीं आ रही। हालांकि, भाजपा ने निकायों के स्तर पर चुनाव की तैयारी तेज कर दी है। उधर, कांग्रेस का दावा है कि इस बार निकाय चुनाव में उनकी पार्टी बंपर जीत दर्ज करने जा रही है।

इस सबके बीच भाजपा चाहती है कि बदली परिस्थितियों में निकाय और पंचायत चुनाव साथ-साथ कराए जाएं। प्रदेश भाजपा के सूत्रों के अनुसार इस सिलसिले में सरकार को पार्टी की ओर से सुझाव भी दिया गया है। तर्क दिया गया है कि इससे चुनावों पर आने वाले खर्च की बचत होगी और दोनों छोटी सरकारों के एक साथ चुनाव होने पर विकास कार्यों में किसी तरह का व्यवधान नहीं आएगा।

लोकसभा चुनाव के चलते निकाय चुनाव नहीं हो पाए

यही नहीं, अन्य कई तरह की दिक्कतों का भी समाधान हो जाएगा। देखने वाली बात होगी कि सरकार इस सुझाव को कितना महत्व देती है। राज्य में नगर निकायों का कार्यकाल पिछले वर्ष दो दिसंबर को खत्म होने के बाद चुनाव की स्थिति न बन पाने पर इन्हें प्रशासकों के हवाले कर दिया गया था। इस बीच लोकसभा चुनाव के चलते निकाय चुनाव नहीं हो पाए और सरकार ने दो जून को निकायों में प्रशासकों का कार्यकाल तीन माह के लिए बढ़ा दिया। यद्यपि, अभी निकायों में ओबीसी आरक्षण का नए सिरे से निर्धारण के साथ ही एक्ट में कुछ संशोधन के दृष्टिगत सरकार को निर्णय लेने हैं।

यही नहीं, सरकार ने हाईकोर्ट में चल रहे एक मामले में शपथ पत्र दिया था कि 30 जून तक निकाय चुनाव करा लिए जाएंगे, लेकिन ऐसी स्थिति बनती नहीं दिख रही। अब हाईकोर्ट ने प्रशासकों का कार्यकाल बढ़ाने पर सख्त नाराजगी जताई है। यदि सरकार ने जल्द निकाय चुनाव कराने का निर्णय ले भी लिया तो अगले साढ़े तीन माह वर्षाकाल के हैं। ऐसे में चुनाव कराना बड़ी चुनौती रहेगी। इस पूरे परिदृश्य से साफ है कि निकाय चुनावों में अभी वक्त लगना तय है।

वहीं, त्रिस्तरीय पंचायतों का पांच साल का कार्यकाल भी इस वर्ष नवंबर के आखिर में खत्म होने जा रहा है। पंचायती राज एक्ट के अनुसार कार्यकाल खत्म होने से 15 दिन पहले अथवा बाद में चुनाव कराए जाने आवश्यक हैं। ऐसे में त्रिस्तरीय पंचायतों के चुनाव के लिए भी सरकार को कसरत करनी है। इस सबको देखते हुए भाजपा ने अब सरकार को सुझाव दिया है कि यदि निकाय और पंचायत चुनाव साथ-साथ करा दिए जाएं तो यह बेहतर रहेगा।

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /प्रिंटिंग मीडिया शैल ग्लोबल टाइम्स /संपादक अवतार सिंह बिष्ट , रूद्रपुर, उत्तराखंड

प्रदेश भाजपा के सूत्रों के अनुसार पार्टी ने सरकार के समक्ष सुझाव रखा है कि निकाय और पंचायत चुनाव एक साथ कराना नई मिसाल बनेगा। साथ ही इससे गांव-शहर के मतदाता अपने-अपने क्षेत्रों में मतदान कर सकेंगे। निकाय व पंचायतों में गुटबाजी से निजात मिलेगी। सबसे अहम ये कि एक साथ चुनाव कराए जाने से खर्च कम होगा और आचार संहिता के कारण विकास कार्य प्रभावित नहीं होंगे। सूत्रों के अनुसार पार्टी के इस सुझाव पर सरकार मंथन में जुटी है।


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