गौमाता की दुर्दशा देख विचलित हुए समाजसेवी पंकज सिंह, की सरकार से सख़्त कार्रवाई की मांग रिपोर्टर: अवतार सिंह बिष्ट, खटीमा/चकरपुर

Spread the love

उत्तराखंड के तराई क्षेत्र खटीमा के फूलैया व रतनपुर जैसे ग्रामीण इलाकों में एक बार फिर से गौमाताओं की दुर्दशा ने संवेदनशील हृदयों को झकझोर कर रख दिया है। धान की फसलों में अक्सर गौवंश का प्रवेश और इससे हो रही भारी क्षति को लेकर किसानों में रोष है, लेकिन इससे भी अधिक चिंताजनक पहलू यह है कि अनेक ग्रामीण गायों को तब तक पालते हैं जब तक वे दूध देती हैं, और जैसे ही उनका दुग्ध उत्पादन रुकता है, उन्हें लावारिस छोड़ दिया जाता है।

समाजसेवी एवं उत्तराखंड प्रदेश मीडिया प्रभारी श्री पंकज सिंह ने इस संवेदनशील मुद्दे पर खुलकर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि,

“गौमाता केवल दूध का साधन नहीं, वह हमारी संस्कृति, आस्था और जीवन पद्धति की प्रतीक हैं। उन्हें इस तरह बेसहारा छोड़ देना न सिर्फ अमानवीय है, बल्कि सनातन धर्म की आत्मा को ठेस पहुंचाना भी है।”

गौशालाओं की स्थिति और सरकार की पहल

गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार द्वारा खटीमा-चकरपुर क्षेत्र में एक नई गौशाला का निर्माण कार्य तीव्र गति से किया जा रहा है, जिसकी मॉनिटरिंग स्वयं मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी कर रहे हैं। लेकिन तब तक अनेक बेसहारा गौवंश खुले में सड़कों व खेतों में घूमने को विवश हैं।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

श्री पंकज सिंह ने बताया कि जब तक सरकारी गौशाला पूरी तरह से तैयार नहीं होती, तब तक उन्होंने स्वयं अपनी निजी गौशाला में कुछ गायों को आश्रय दिया है। साथ ही, उन्होंने अन्य गांववासियों से भी आह्वान किया है कि,

“गाय को घर से न भगाएं, बल्कि यदि सेवा की भावना नहीं है तो कम से कम उन्हें सरकारी गौशालाओं में सौंप दें। आवारा छोड़ने की मानसिकता अत्यंत घृणित और दंडनीय होनी चाहिए।”

दुर्घटनाओं का भयावह चेहरा: लोहिया रोड बना खतरे की घंटी

पंकज सिंह ने यह भी बताया कि खटीमा के लोहिया रोड पर आए दिन बेसहारा गायों के कारण दुर्घटनाएं हो रही हैं। यह स्थिति न केवल राहगीरों के लिए खतरनाक है, बल्कि स्वयं गौवंश के जीवन के लिए भी विनाशकारी बन चुकी है।

उन्होंने मांग की कि पुलिस प्रशासन ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे जो गायों को पीटते हैं या उन्हें सड़कों पर मरने के लिए छोड़ देते हैं।

“गौमाता को पीटते हुए देखना मेरे लिए किसी आत्मिक आघात से कम नहीं। ऐसा दृश्य एक सभ्य समाज को कलंकित करता है,” उन्होंने कहा।

“जय गौमाता” का संकल्प: संवेदनशील समाज की पुकार

श्री सिंह ने प्रदेशवासियों से अपील की कि वे गौमाता को सिर्फ आस्था का प्रतीक न मानें, बल्कि उनके पालन-पोषण और संरक्षण को व्यक्तिगत जिम्मेदारी समझें। उन्होंने यह भी प्रस्ताव रखा कि स्कूल-कॉलेज स्तर पर गौ-संरक्षण पर विशेष अभियान चलाए जाएं जिससे बच्चों में बाल्यावस्था से ही संवेदनशीलता विकसित हो।


समाप्ति पर पंकज सिंह ने कहा:

“यदि हम गौमाता की रक्षा नहीं कर सकते, तो हमें धर्म और संस्कृति की दुहाई देने का कोई नैतिक अधिकार नहीं। जय गौमाता कहने से पहले उनके संरक्षण के लिए खड़े होना होगा।”


#जय_गौमाता #पंकजसिंह #गौशाला_निर्माण #गौवंश_संरक्षण #खटीमा_समाचार #चकरपुर_गौमाता



Spread the love