छात्रवृत्ति घोटाला : उत्तराखंड के विद्यार्थियों का भविष्य लूटने वालों पर कब होगी सख्त कार्रवाई?

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रुद्रपुर,उत्तराखंड,छात्रवृत्ति योजनाएँ गरीब और जरूरतमंद विद्यार्थियों के लिए शिक्षा का मार्ग प्रशस्त करने का सबसे महत्वपूर्ण साधन हैं। लेकिन दुखद है कि उत्तराखंड में इन योजनाओं का इस्तेमाल वर्षों से भ्रष्टाचारियों ने अपने जेबें भरने के लिए किया। संसद के मानसून सत्र में हरिद्वार सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सवाल पर अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने स्वयं स्वीकार किया कि मदरसों सहित कई संस्थाओं ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर छात्रवृत्ति ली। उत्तराखंड सरकार ने 24 जुलाई 2025 को इस पर एसआइटी गठित की, परंतु जनता के मन में बड़ा सवाल है—क्या यह जांच भी पुराने मामलों की तरह ठंडे बस्ते में चली जाएगी?

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)


पूर्व में उजागर हुए घोटाले और ठंडी कार्रवाई ?हरिद्वार (2019–20 का घोटाला)

हरिद्वार जिले में 2019–20 में अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति योजना में करोड़ों रुपये का घोटाला सामने आया था। कई मदरसों और निजी संस्थानों ने फर्जी छात्रों के नाम पर राशि ली। कई मामलों में एक ही छात्र के नाम से दो-दो बार पैसा निकला।
कार्रवाई? कुछ छोटे कर्मचारियों को निलंबित किया गया, परंतु शिक्षा विभाग और अल्पसंख्यक विभाग के बड़े अधिकारी बच निकले।

देहरादून (2021 का खुलासा)?राजधानी देहरादून में 2021 में शिक्षा विभाग के माध्यम से दी जाने वाली छात्रवृत्ति में फर्जी कागजों के आधार पर पैसा निकालने का मामला सामने आया। इस बार आरोप सीधे कार्यालय स्तर पर बैठे बाबुओं और अफसरों पर लगे।
कार्रवाई? मामले की जांच बैठाई गई, लेकिन रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई। जनता को अब तक यह नहीं पता कि कितनी रकम वसूली गई और कितने लोग दोषी पाए गए।

उधमसिंह नगर (रुद्रपुर–काशीपुर प्रकरण, 2022)?उधमसिंह नगर जिले में, खासकर रुद्रपुर और काशीपुर क्षेत्र में, 2022 में बड़े पैमाने पर छात्रवृत्ति घोटाले का मामला उजागर हुआ। कई प्राइवेट स्कूलों ने गरीब और अल्पसंख्यक छात्रों के नाम पर रकम निकाली, जबकि वे छात्र या तो किसी और संस्थान में पढ़ रहे थे या अस्तित्व ही नहीं रखते थे।
कार्रवाई? प्रशासन ने कुछ स्कूलों की मान्यता निलंबित करने की औपचारिकता की, लेकिन असल दोषियों (अधिकारियों और राजनैतिक संरक्षण देने वालों) तक जांच नहीं पहुँची।


अधिकारियों की भूमिका और संपत्ति की जांच क्यों जरूरी?यह असंभव है कि करोड़ों रुपये की हेराफेरी केवल संस्थाओं ने कर ली और विभागीय अधिकारियों को भनक तक नहीं लगी। स्पष्ट है कि यह गहरी मिलीभगत का खेल था।

  • 2015 से 2025 तक छात्रवृत्ति वितरण करने वाले सभी अधिकारियों की संपत्ति की जांच की जाए।
  • जिनके पास आय से अधिक संपत्ति है, उनकी संपत्ति जब्त कर गरीब विद्यार्थियों की शिक्षा पर खर्च की जाए।
  • निलंबन या तबादले जैसे “औपचारिक दंड” नहीं, बल्कि कानूनी कार्यवाही और जेल की सजा हो।

राजनीतिक संरक्षण का सवाल?हर बार जब छात्रवृत्ति घोटाले का मामला उठता है, तो कुछ नेता इसे धर्म या जाति का मुद्दा बनाकर दबाने की कोशिश करते हैं। इससे जांच कमजोर होती है और असली अपराधी बच निकलते हैं।

छात्रवृत्ति किसी धर्म या संस्था के लिए नहीं, बल्कि गरीब छात्रों के लिए है। इसे लूटने वाला कोई भी हो – चाहे स्कूल संचालक, मदरसा प्रबंधक, विभागीय अधिकारी या नेता – समान रूप से अपराधी है।


अब क्या करना होगा?एसआइटी को पूर्ण अधिकार दिए जाएँ, राजनीतिक दबाव से मुक्त रखा जाए।पिछले सभी घोटालों की फाइलें फिर से खोली जाएँ और जांच रिपोर्ट जनता के सामने लाई जाए।दोषी अधिकारियों और संस्थाओं की संपत्ति जब्त कर रकम वसूली जाए।

  1. छात्रवृत्ति योजनाओं पर सामाजिक ऑडिट और डिजिटल निगरानी अनिवार्य हो।
  2. दोषियों को कठोर सजा मिले ताकि भविष्य में कोई गरीब विद्यार्थी का हक छीनने की हिम्मत न कर सके।

छात्रवृत्ति घोटाले पर केंद्र की सख्ती : उत्तराखंड के लिए एक चेतावनी
शिक्षा का अधिकार और छात्रवृत्ति योजनाएँ देश के उन लाखों गरीब और जरूरतमंद विद्यार्थियों के लिए उम्मीद की किरण हैं जो आर्थिक तंगी के बावजूद पढ़ाई का सपना देखते हैं। परंतु विडंबना यह है कि इन योजनाओं को भी फर्जीवाड़े, लालच और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया गया। संसद के मानसून सत्र में हरिद्वार एक्स सांसद एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के प्रश्न के जवाब में अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू का बयान इस सच्चाई को उजागर करता है कि फर्जी दस्तावेज़ों के आधार पर मदरसों समेत कई संस्थान छात्रवृत्ति का दुरुपयोग कर रहे हैं।

एसआइटी की जांच और पारदर्शिता का दावा

उत्तराखंड सरकार ने 24 जुलाई 2025 को इस मामले में एसआइटी गठित की है। यह पहल सराहनीय है, लेकिन सवाल यह भी है कि क्या केवल जांच समिति गठित करने से ही दोषियों को सजा मिलेगी? पिछले दो दशकों का इतिहास बताता है कि अधिकांश मामलों में जांच समितियाँ बनीं, लेकिन परिणाम धूल फांकते फाइलों तक ही सीमित रह गए।

केंद्र सरकार ने आधार भुगतान ब्रिज सिस्टम, बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और डीबीटी व्यवस्था को छात्रवृत्ति योजनाओं से जोड़कर पारदर्शिता लाने की पहल की है। यह सकारात्मक कदम है, परंतु यह व्यवस्था तभी कारगर होगी जब राज्य स्तर पर बैठे भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी ईमानदारी से अपना कार्य करें।

छात्रवृत्ति घोटाला केवल आर्थिक अपराध नहीं है, यह उत्तराखंड की आने वाली पीढ़ी के भविष्य पर सीधा हमला है। हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंह नगर जैसे जिलों में बार-बार सामने आए घोटाले यह दर्शाते हैं कि यदि सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो भ्रष्टाचार का यह सिलसिला चलता रहेगा।

केंद्र सरकार की डिजिटल निगरानी और उत्तराखंड सरकार की एसआइटी तभी कारगर साबित होगी जब इस बार कोई “बड़े अधिकारी या नेता” बच न पाए। जनता यही चाहती है कि जिम्मेदारों पर कठोरतम कार्रवाई हो, ताकि छात्रवृत्ति गरीब बच्चों तक पहुँचे, न कि भ्रष्टाचारियों की तिजोरी तक।



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