उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद ,Hindustan Global Times, अवतार सिंह बिष्ट ,ताकि सनत रहे,
उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन
उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन, उत्तराखण्ड राज्य के बनने से पहले की वे घटनाएँ हैं जो अन्ततः उत्तराखण्ड राज्य के रूप में परिणीत हुईं। राज्य का गठन ९ नवम्बर, २००० को भारत के सत्ताइसवें राज्य के रूप में हुआ। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड राज्य का गठन बहुत लम्बे संघर्ष और बलिदानों के फलस्वरूप हुआ। उत्तराखण्ड राज्य की माँग सर्वप्रथम १८९७ में उठी और धीरे-धीरे यह माँग अनेकों समय उठती रही। १९९४ में इस माँग ने जनान्दोलन का रूप ले लिया और अन्ततः नियत तिथि पर यह देश का सत्ताइसवाँ राज्य बना।
संक्षिप्त इतिहास
उत्तराखण्ड संघर्ष से राज्य के गठन तक जिन महत्वपूर्ण तिथियों और घटनाओं ने मुख्य भूमिका निभाई वे इस प्रकार हैं :-
भारतीय स्वतंत्रता आन्देालन की एक इकाई के रूप में उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम के दौरान १९१३ के कांग्रेस अधिवेशन में उत्तराखण्ड के अधिकांश प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। इसी वर्ष उत्तराखण्ड की अनुसूचित जातियों के उत्थान के लिये गठित टम्टा सुधारिणी सभा का रूपान्तरण एक व्यापक शिल्पकार महासभा के रूप में हुआ।
१९१६ के सितम्बर माह में गोविन्द बल्लभ पंत, हरगोबिन्द पंत, बद्री दत्त पाण्डेय, इन्द्र लाल शाह, मोहन सिंह दड़मवाल, चन्द्र लाल शाह, प्रेम बल्लभ पाण्डेय, भोला दत्त पाण्डेय और लक्ष्मी दत्त शास्त्री आदि उत्साही युवकों के द्वारा कुमाऊँ परिषद् की स्थापना की गई जिसका मुख्य उद्देश्य तत्कालीन उत्तराखण्ड की सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं का समाधान खोजना था। १९२६ तक इस संगठन ने उत्तराखण्ड में स्थानीय सामान्य सुधारों की दिशा के अतिरिक्त निश्चित राजनैतिक उद्देश्य के रूप में संगठनात्मक गतिविधियाँ संपादित कीं। १९२३ तथा १९२६ के प्रान्तीय षरिषद् के चुनाव में गोविन्द बल्लभ पंतहरगोविन्द पंत, मुकुन्दी लाल तथा बद्री दत्त पाण्डेय ने प्रतिपक्षियों को बुरी तरह पराजित किया।
१९२६ में कुमाऊँ परिषद् का कांग्रेस में विलीनीकरण कर दिया गया।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार मई १९३८ में तत्कालीन ब्रिटिश शासन में गढ़वाल के श्रीनगर में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने इस पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों को अपनी परिस्थितियों के अनुसार स्वयं निर्णय लेने तथा अपनी संस्कृति को समृद्ध करने के अन्दोलन का समर्थन किया।
सन् १९४० में हल्द्वानी सम्मेलन में बद्री दत्त पाण्डेय ने पर्वतीय क्षेत्र को विशेष दर्जा तथा अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने कुमाऊँ-गढ़वाल को पृथक इकाई के रूप में गठन करने की माँग रखी। १९५४ में विधान परिषद के सदस्य इन्द्र सिंह नयाल ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री गोविन्द बल्लभ पंत से पर्वतीय क्षेत्र के लिये पृथक विकास योजना बनाने का आग्रह किया तथा १९५५ में फ़ज़ल अली आयोग ने पर्वतीय क्षेत्र को अलग राज्य के रूप में गठित करने की संस्तुति की।
वर्ष १९५७ में योजना आयोग के उपाध्यक्ष टी. टी. कृष्णमाचारी ने पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के निदान के लिये विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया। १२ मई, १९७० को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं का निदान, राज्य तथा केन्द्र सरकार का दायित्व होने की घोषणा की गई और २४ जुलाई, १९७९ को पृथक राज्य के गठन के लिये मसूरी में उत्तराखण्ड क्रान्ति दल की स्थापना की गई। जून १९८७ में कर्णप्रयाग के सर्वदलीय सम्मेलन में उत्तराखण्ड के गठन के लिये संघर्ष का आह्वान किया तथा नवंबर १९८७ में पृथक उत्तराखण्ड राज्य के गठन के लिये नई दिल्ली में प्रदर्शन और राष्ट्रपति को ज्ञापन एवं हरिद्वार को भी प्रस्तावित राज्य में सम्मिलित करने की माँग की गई।
१९९४ उत्तराखण्ड राज्य एवं आरक्षण को लेकर छात्रों ने सामूहिक रूप से आन्दोलन किया। मुलायम सिंह यादव के उत्तराखण्ड विरोधी वक्तव्य से क्षेत्र में आन्दोलन तेज़ हो गया। उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के नेताओं ने अनशन किया। उत्तराखण्ड में सरकारी कर्मचारी पृथक राज्य की माँग के समर्थन में लगातार तीन महीने तक हड़ताल पर रहे तथा उत्तराखण्ड में चक्काजाम और पुलिस फ़ायरिंग की घटनाएँ हुईं। उत्तराखण्ड आन्दोलनकारियों पर मसूरी और खटीमा में पुलिस द्वारा गोलियाँ चलाईं गईं। संयुक्त मोर्चा के तत्वाधान में २ अक्टूबर, १९९४ को दिल्ली में भारी प्रदर्शन किया गया। इस संघर्ष में भाग लेने के लिये उत्तराखण्ड से हज़ारों लोगों की भागीदारी हुई। प्रदर्शन में भाग लेने जा रहे आन्दोलनकारियों को मुजफ्फर नगर में बहुत प्रताड़ित किया गया और उन पर पुलिस ने गोलीबारी की और लाठियाँ बरसाईं तथा महिलाओं के साथ दुराचार और अभद्रता की गयी। इसमें अनेक लोग हताहत और घायल हुए। इस घटना ने उत्तराखण्ड आन्दोलन की आग में घी का काम किया। अगले दिन तीन अक्टूबर को इस घटना के विरोध में उत्तराखण्ड बंद का आह्वान किया गया जिसमें तोड़फोड़, गोलीबारी तथा अनेक मौतें हुईं।
७ अक्टूबर, १९९४ को देहरादून में एक महिला आन्दोलनकारी की मृत्यु हो गई। इसके विरोध में आन्दोलनकारियों ने पुलिस चौकी पर उपद्रव किया।
१५ अक्टूबर को देहरादून में कर्फ़्यू लग गया और उसी दिन एक आन्दोलनकारी शहीद हो गया।
२७ अक्टूबर, १९९४ को देश के तत्कालीन गृहमंत्री राजेश पायलट की आन्दोलनकारियों से वार्ता हुई। इसी बीच श्रीनगर में श्रीयन्त्र टापू में अनशनकारियों पर पुलिस ने बर्बरतापूर्वक प्रहार किया जिसमें अनेक आन्दोलनकारी शहीद हो गए।
१५ अगस्त, १९९६ को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा ने उत्तराखण्ड राज्य की घोषणा लाल क़िले से की।
१९९८ में केन्द्र की भाजपा गठबन्धन सरकार ने पहली बार राष्ट्रपति के माध्यम से उ.प्र. विधानसभा को उत्तरांचल विधेयक भेजा। उ.प्र. सरकार ने २६ संशोधनों के साथ उत्तरांचल राज्य विधेयक विधान सभा में पारित करवाकर केन्द्र सरकार को भेजा। केन्द्र सरकार ने २७ जुलाई, २००० को उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक २००० को लोकसभा में प्रस्तुत किया जो १ अगस्त, २००० को लोकसभा में तथा १० अगस्त, २००० अगस्त को राज्यसभा में पारित हो गया। भारत के राष्ट्रपति ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को २८ अगस्त, २००० को अपनी स्वीकृति दे दी और इसके बाद यह विधेयक अधिनियम में बदल गया और इसके साथ ही ९ नवम्बर २००० को उत्तरांचल राज्य अस्तित्व में आया जो अब उत्तराखण्ड नाम से अस्तित्व में है।
राज्य आन्दोलन की घटनाएँ
उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन में बहुत सी हिंसक घटनाएँ भी हुईं जो इस प्रकार हैं :-
खटीमा गोलीकाण्ड
१ सितम्बर, १९९४ को उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन का काला दिवस माना जाता है, क्योंकि इस दिन जैसी पुलिस की बर्बरतापूर्ण कार्यवाही इससे पहले कहीं और देखने को नहीं मिली थी। पुलिस द्वारा बिना चेतावनी दिए ही आन्दोलनकारियों के ऊपर अंधाधुंध फ़ायरिंग की गई, जिसके परिणामस्वरुप सात आन्दोलनकारियों की मृत्यु हो गई। खटीमा गोलीकाण्ड में मारे गए शहीद :-
अमर शहीद स्व० भगवान सिंह सिरौला, ग्राम श्रीपुर बिछुवा, खटीमा
अमर शहीद स्व० प्रताप सिंह, खटीमा
अमर शहीद स्व० सलीम अहमद, खटीमा
अमर शहीद स्व० गोपीचन्द, ग्राम रतनपुर फुलैया, खटीमा
अमर शहीद स्व० धर्मानन्द भट्ट, ग्राम अमरकलाँ, खटीमा
अमर शहीद स्व० परमजीत सिंह, राजीवनगर, खटीमा
अमर शहीद स्व० रामपाल, बरेली
इस पुलिस फायरिंग में बिचपुरी निवासी श्री बहादुर सिंह और श्रीपुर बिछुवा निवासी श्री पूरन चन्द भी गम्भीर रूप से घायल हुए थे।
मसूरी गोलीकाण्ड
२ सितम्बर, १९९४ को खटीमा गोलीकाण्ड के विरोध में मौन जुलूस निकाल रहे लोगों पर एक बार फिर पुलिसिया क़हर टूटा। प्रशासन से बातचीत करने गईं दो सगी बहनों को पुलिस ने झूलाघर स्थित आन्दोलनकारियों के कार्यालय में गोली मार दी। इसका विरोध करने पर पुलिस द्वारा अंधाधुंध फ़ायरिंग कर दी गई, जिसमें लगभग २१ लोगों को गोली लगी और इसमें से चार आन्दोलनकारियों की अस्पताल में मृत्यु हो गई।
मसूरी गोलीकाण्ड में मारे गए शहीद :-
अमर शहीद स्व० बेलमती चौहान (४८), पत्नी श्री धर्म सिंह चौहान, ग्राम खलोन, पट्टी घाट, अकोदया, टिहरी
अमर शहीद स्व०हंसा धनई (४५), पत्नी श्री भगवान सिंह धनई, ग्राम बंगधार, पट्टी धारमण्डल, टिहरी
अमर शहीद स्व० बलबीर सिंह नेगी (२२), पुत्र श्री भगवान सिंह नेगी, लक्ष्मी मिष्ठान्न भण्डार, लाइब्रेरी, मसूरी
अमर शहीद स्व० धनपत सिंह (५०), ग्राम गंगवाड़ा, पट्टी गंगवाड़स्यूँ, टिहरी
अमर शहीद स्व० मदन मोहन ममगाईं (४५), ग्राम नागजली, पट्टी कुलड़ी, मसूरी
अमर शहीद स्व० राय सिंह बंगारी (५४), ग्राम तोडेरा, पट्टी पूर्वी भरदार, टिहरी
रामपुर तिराहा (मुज़फ़्फ़रनगर) गोलीकाण्ड
मुख्य लेख : रामपुर तिराहा गोलीकाण्ड
२ अक्टूबर, १९९४ की रात्रि को दिल्ली रैली में जा रहे आन्दोलनकारियों का रामपुर तिराहा, मुज़फ़्फ़रनगर में पुलिस-प्रशासन ने जैसा दमन किया, उसका उदारहण किसी भी लोकतान्त्रिक देश तो क्या किसी तानाशाह ने भी आज तक दुनिया में नहीं दिया होगा। निहत्थे आन्दोलनकारियों को रात के अन्धेरे में चारों ओर से घेरकर गोलियाँ बरसाई गईं और पहाड़ की सीधी-सादी महिलाओं के साथ दुष्कर्म तक किया गया। इस गोलीकाण्ड में राज्य के ७ आन्दोलनकारी शहीद हो गए थे। इस गोलीकाण्ड के दोषी आठ पुलिसवालों पर, जिनमें तीन पुलिस अधिकारी भी हैं, पर मामला चलाया जा रहा है।[1]
रामपुर तिराहा गोलीकाण्ड में मारे गए शहीदः
अमर शहीद स्व० सूर्यप्रकाश थपलियाल (२०), पुत्र श्री चिन्तामणि थपलियाल, चौदह बीघा, मुनि की रेती, ऋषिकेश
अमर शहीद स्व० राजेश लखेड़ा (२४), पुत्र श्री दर्शन सिंह लखेड़ा, अजबपुर कलाँ, देहरादून
अमर शहीद स्व० रवीन्द्र सिंह रावत (२२), पुत्र श्री कुन्दन सिंह रावत, बी-२०, नेहरू कॉलोनी, देहरादून।
अमर शहीद स्व० राजेश नेगी (२०), पुत्र श्री महावीर सिंह नेगी, भानियावाला, देहरादून।
अमर शहीद स्व० सतेन्द्र चौहान (१६), पुत्र श्री जोध सिंह चौहान, ग्राम हरिपुर, सेलाक़ुईं, देहरादून।
अमर शहीद स्व० गिरीश भद्री (२१), पुत्र श्री वाचस्पति भद्री, अजबपुर ख़ुर्द, देहरादून।
अमर शहीद स्व० अशोक कुमार कैशिव, पुत्र श्री शिव प्रसाद कैशिव, मन्दिर मार्ग, ऊखीमठ, रुद्रप्रयाग।
देहरादून गोलीकाण्ड
३ अक्टूबर, १९९४ को रामपुर तिराहा गोलीकाण्ड की सूचना देहरादून में पहुँचते ही लोगों का उग्र होना स्वाभाविक था। इसी बीच इस काण्ड में शहीद स्व० श्री रवीन्द्र सिंह रावत की शवयात्रा पर पुलिस के लाठीचार्ज के बाद स्थिति और उग्र हो गई और लोगों ने पूरे देहरादून में इसके विरोध में प्रदर्शन किया, जिसमें पहले से ही जनाक्रोश को किसी भी हालत में दबाने के लिये तैयार पुलिस ने फ़ायरिंग कर दी, जिसने तीन और लोगों को इस आन्दोलन में शहीद कर दिया।
देहरादून गोलीकाण्ड में मारे गए शहीद:
अमर शहीद स्व० बलवन्त सिंह सजवाण (४५), पुत्र श्री भगवान सिंह सजवाण ग्राम मल्हाण, नयागाँव, देहरादून
अमर शहीद स्व० दीपक वालिया (२७), पुत्र श्री ओम प्रकाश वालिया, ग्राम बद्रीपुर, देहरादून
अमर शहीद स्व० राजेश रावत (१९), पुत्र श्रीमती आनन्दी देवी, २७-चंद्र रोड, नई बस्ती, देहरादून
स्व० राजेश रावत की मृत्यु तत्कालीन समाजवादी पार्टी नेता सूर्यकान्त धस्माना के घर से हुई फ़ायरिंग में हुई थी।
कोटद्वार काण्ड
३ अक्टूबर १९९४ को पूरा उत्तराखण्ड रामपुर तिराहा काण्ड के विरोध में उबला हुआ था और पुलिस-प्रशासन किसी भी प्रकार से इसके दमन के लिये तैयार था। इसी कड़ी में कोटद्वार में भी आन्दोलन हुआ, जिसमें दो आन्दोलनकारियों को पुलिसकर्मियों द्वारा राइफ़ल के बटों व डण्डों से पीट-पीटकर मार डाला गया
कोटद्वार काण्ड में मारे गए शहीद:
अमर शहीद स्व० राकेश देवरानी
अमर शहीद स्व० पृथ्वी सिंह बिष्ट, मानपुर ख़ुर्द, कोटद्वार
नैनीताल गोलीकाण्ड
नैनीताल में भी विरोध चरम पर था, लेकिन इसका नेतृत्व बुद्धिजीवियों के हाथ में होने के कारण पुलिस कुछ कर नहीं पाई, लेकिन इसकी भड़ास उन्होंने निकाली होटल प्रशान्त में काम करने वाले प्रताप सिंह के ऊपर। आर०ए०एफ० के सिपाहियों ने इन्हें होटल से खींचा और जब ये बचने के लिये होटल मेघदूत की तरफ़ भागे, तो इनकी गर्दन में गोली मारकर हत्या कर दी गई।
नैनीताल गोलीकाण्ड में मारे गए शहीद:
अमर शहीद स्व० प्रताप सिंह
श्रीयन्त्र टापू (श्रीनगर) काण्ड
श्रीनगर शहर से २ कि०मी० दूर स्थित श्रीयन्त्र टापू पर आन्दोलनकारियों ने ७ नवम्बर, १९९४ से इन सभी दमनकारी घटनाओं के विरोध और पृथक उत्तराखण्ड राज्य हेतु आमरण अनशन आरम्भ किया। १० नवम्बर, १९९४ को पुलिस ने इस टापू में पहुँचकर अपना क़हर बरपाया, जिसमें कई लोगों को गम्भीर चोटें भी आई, इसी क्रम में पुलिस ने दो युवकों को राइफ़लों के बट और लाठी-डण्डों से मारकर अलकनन्दा नदी में फेंक दिया और उनके ऊपर पत्थरों की बरसात कर दी, जिससे इन दोनों की मृत्यु हो गई।
श्रीयन्त्र टापू में मारे गए शहीद:
अमर शहीद स्व० राजेश रावत
अमर शहीद स्व० यशोधर बेंजवाल
इन दोनों शहीदों के शव १४ नवम्बर, १९९४ को बागवान के समीप अलकनन्दा नदी में तैरते हुए पाए गए थे। क्रमशः