उन्होंने नाबालिग को गलत तरीके से शिष्या बनाया था। यह खबर भारत में सबसे बड़े हिंदू मठवासी संघ जूना अखाड़े को भी पसंद नहीं आई थी। संगठन के एक ‘महंत’ ने किशोरी को ‘साध्वी’ के रूप में स्वीकार करने की प्रक्रिया शुरू की थी। श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के संरक्षक हरि गिरि महाराज ने कहा कि यह अखाड़े की परंपरा नहीं रही है कि किसी नाबालिग को संन्यासी बना दिया जाए।
प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
इस मामले एक बैठक की गई। जिसमें नाबालिग लड़की को घर वापस भेजने का सर्वसम्मति से फैसला लिया गया है। इससे पहले साध्वी के नाबालिग बनने पर सोशल मीडिया में बवाल शुरू हो गया है। हालांकि कुछ ज्यादा गंभीर समस्या आती कि इससे पहले ही अखाड़े ने समस्या का समाधान कर दिया।
महिलओं के संन्यासी बनने की उम्र में बदलाव
कई मीडिया रिपोर्ट्स में वरिष्ठ पदाधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि नाबालिग लड़की को उसके माता-पिता के हवाले कर दिया गया है। अखाड़े मे मौजूदा समय में महिलाओं के लिए संन्यासी बनने की उम्र में बदलाव कर दिया गया है। 22 साल की उम्र में महिलाएं संन्यास ले सकती हैं। इससे पहले संन्यास लेने की उम्र 17 साल तय थी। जिसे अब बढ़ाकर 22 साल कर दिया गया है। दीक्षा देने वाले महंत का कहना है कि लड़की के माता-पिता ने स्वच्छा से अखाड़े को समर्पित किया था। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि नाबालिग लड़की के दीक्षा लेने पर माता-पिता को कोई आपत्ति नहीं थी। नाबालिग लड़की का नाम राखी है। दीक्षा देने के बाद उसका नाम बदलकर गौरि गिरी कर दिय गया था।
माता-पिता ने अपनी बेटी का कर दिया था दान
26 दिसंबर को आगरा से दंपती संदीप सिंह धाकरे और रीमा अपने परिवार के साथ संगम क्षेत्र के सेक्टर नंबर 20 में अपने गुरु कौशल गिरिके शिविर में आए। कौशल गिरि जूना अखाड़े के श्री महंत हैं। संदीप और रीमा ने अपनी बड़ी बेटी राखी का पूजा पाठ कर कन्या दान कर दिया था। राखी की मां रीमा ने बताया कि गुरु की सेवा में करीब 4 साल से जुड़े हैं। कौशल गिरि उनके मोहल्ले में भागवत कथा कहने आए थे। वहीं से उनके परिवार का उनसे भक्ति भाव से जुड़ाव हुआ।
राखी के दादा-दादी ने दिया बयान
वहीं राखी के दादा रोहतान सिंह धाकरे ने कहा कि राखी की घर वापसी से हम बेहद खुश हैं। इसकी वजह ये है कि अभी उसकी संन्यास की उम्र नहीं है। इस काम के लिए। अखाड़े में शामिल होने की हमें कोई जानकारी नहीं थी। जब मीडिया वाले घर आए तब हमें इसकी जानकारी हुई। दादी राधा देवी ने बताया वह हमारे पास नहीं रहती है।
नवरात्रि में नंगे पैर आती थी स्कूल
वहीं आगरा के जिस स्कूल में बच्ची पढ़ती है, उसके प्रबंधक ने बताया कि वह बेहद होनहार है। उसमें अपनी बातों से हर किसी को आकर्षित करने की कला है। वह काफी धार्मिक प्रवृत्ति की है। नव दुर्गा में वह नंगे पैर ही स्कूल आती थी।
ये है साध्वी और सन्यास लेने की प्रक्रिया
बता दें कि सनातन धर्म परंपरा के अनुसार साध्वी पद धारण करने के लिए पांच गुरु उन्हें चोटी, गेरूआ वस्त्र, रुद्राक्ष, भभूत और जनेऊ देते हैं। गुरु इन्हें ज्ञान और मंत्र के साथ संन्यासी जीवन शैली, संस्कार, खान-पान, रहन-सहन आदि की जानकारी देते हैं। इन्हीं संस्कारों का पालन करते हुए महिला संन्यासियों को अपनी पांच इंद्रियों काम, क्रोध, अंहकार, मध और लोभ पर नियंत्रण करना पड़ता है। कुंभ के चौथे स्नान पर्व पर दीक्षांत समारोह में पूर्ण दीक्षा दी जाती है। इस दिन इन्हें व्रत रखना होता है। इसके साथ ही ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप कर गंगा में 108 डुबकियां लगानी होती हैं और हवन संपन्न कराया जाता है।