
शिव मंदिर लाखामंडल के कपाट श्रद्धालुओं के लिए बारह मास खुले रहते हैं। सावन की महीने में श्रद्धालु यहां जलाभिषेक कर पूजा-अर्चना करते हैं। लाखामंडल में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है।


हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट, रुद्रपुर ,उत्तराखंड
मंदिर का इतिहास
- यमुना के तट पर समुद्र तल से 1372 मीटर की ऊंचाई पर लाखामंडल शिव मंदिर स्थित है।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार नागर शैली में बने इस मंदिर का निर्माण पांचवी से आठवीं सदी में सिंहपुर के राज परिवार से संबंधित राजकुमारी ईश्वरा ने अपने पति चंद्रगुप्त (जो जालंधर के राजा क पुत्र थे) के निधन पर सद्गति एवं आध्यात्मिक उन्नति के लिए शिव मंदिर का निर्माण करवाया था।
- लाखामंडल क्षेत्र में शिवलिंग का विशाल संग्रह है।
- शिव मंदिर की ऊंचाई 18.5 फीट है।
- एएसआइ को खोदाई के दौरान मिले छठवीं शताब्दी के एक प्रस्तर अभिलेख में इसका उल्लेख मिलता है।
- लाखामंडल शिव मंदिर के संरक्षण का जिम्मा एएसआइ के पास है।
- ये मंदिर बड़े शिलाखंडों से निर्मित है।
- यहां मिले शिलालेख में ब्राह्मी लिपि व संस्कृत भाषा का उल्लेख है।
- बताया जाता है चीनी यात्री ह्वेनसांग ने लाखामंडल की यात्रा की थी।
- स्थानीय लोग इस मंदिर को पांडवकालीन समय का बताते हैं।
- महात्म्य लोक मान्यता के अनुसार द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कुछ समय जौनसार-बावर में गुजारा था।
- बताया जाता है कि उस समय धर्मराज युधिष्ठिर ने यमुना के तट पर भगवान शिव की तपस्या कर सवा लाख शिवलिंग की स्थापना की थी।
राज्य के 13 चयनित टूरिस्ट डेस्टिनेशन में एक लाखामंडल शिव मंदिर को जौनसार बावर में देवनगरी के नाम से जाना जाता है। श्रद्धालु बारह मास मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। सावन महीने में श्रद्धालु जलाभिषेक चढ़ाने और महाशिवरात्रि में कई निसंतान दंपती वरदान मांगने शिव मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आते हैं।
– सुशील गौड़, अध्यक्ष, शिव मंदिर समिति लाखामंडल
मंदिर का महत्व
पौराणिक काल से पांडवकालीन शिव मंदिर लाखामंडल की विशेष महत्ता है। यहां देश-विदेश से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। लाखामंडल के सेरा में प्राचीन लाक्षागृह गुफा मौजूद है। बताते हैं द्वापर युग में जब कौरवों ने पांडवों को जलाने की योजना बनाई थी तो उस वक्त इसी गुफा से पांडव माता कुंती के साथ सकुशल बाहर निकले थे। शिव मंदिर में आए श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है।
– बाबूराम शर्मा, पुजारी एवं कोषाध्यक्ष, शिव मंदिर समिति लाखामंडल
कैसे पहुंचें
देहरादून से वाया मसूरी और देहरादून से वाया विकासनगर व चकराता होकर करीब 90 किमी का सफर तय कर मंदिर पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर सड़क सुविधा से जुड़ा है।
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं।
