
लेकिन यह भी सच्चाई है कि इस सत्र ने वैमनस्यता बढ़ाई और शांत प्रदेश को आंदोलित कर दिया।


सदन के भीतर और बाहर से जो बातें छनकर बाहर गईं, वे राज्य के लोगों को हतप्रभ, परेशान और आंदोलित करने वाली रहीं। यह सत्र कुछ सवाल भी छोड़ गया। कम अवधि के सत्र को लेकर सरकार ने शुरुआत में ही कहना शुरू कर दिया था कि उसके पास ज्यादा बिजनेस नहीं है।
वहीं विपक्ष सत्र की अवधि बढ़ाए जाने को लेकर सरकार पर दबाव बनाता रहा। लेकिन फिर सरकार ने सत्र की अवधि एक दिन बढ़ा दी। तीन दिन तक सत्र देर रात तक चलाया गया तो जाहिर है कि सरकार के पास इतना काम था, जिसके लिए कुछ और दिन तय हो सकते थे।
पड़ोसी राज्य हिमाचल भी उत्तराखंड की तरह छोटा राज्य है, वहां भी 68 सीटें हैं। दिल्ली राज्य भी इसी तरह की विधानसभा है। हिमाचल में 10 मार्च से बजट सत्र होने जा रहा है, जो 18 दिन चलेगा। हरियाणा राज्य का विधानसभा सत्र सात मार्च से शुरू होगा जो 10 से 11 दिन चलेगा। दिल्ली में भी बजट सत्र हमारे राज्य की विस से ज्यादा चलता है।लेकिन उत्तराखंड विधानसभा में बजट अभिभाषण और सामान्य बजट पर चर्चा के लिए सदस्यों को कितना समय मिला, यह सबके सामने हैं।
11 और विधेयक बिना किसी गंभीर चर्चा के पारित हो गए
सुविधाओं के अभाव के चलते फटाफट सत्र निपटाने की जल्दी गैरसैंण में तो समझी जा सकती है, लेकिन देहरादून में भी चर्चा के लिए सदस्यों के पास वक्त न होना चौंकाता है। जिस भू कानून के लिए राज्य के लोग, सरकार और विपक्ष के नेता लंबे समय से चर्चा करते रहे, वह विधेयक सदन में पेश होने पर सिर्फ 10 से 15 मिनट की चर्चा में पास हो गया। राज्यपाल के अभिभाषण और बजट अभिभाषण पर सामान्य चर्चा के लिए भी सदस्यों के पास ज्यादा बोलने के लिए नहीं था। विनियोग विधेयक को छोड़ दें तो बाकी 11 और विधेयक बिना किसी गंभीर चर्चा के पारित हो गए।
सत्र में संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल और कांग्रेस विधायक मदन बिष्ट की निजी नोक-झोंक पर स्पीकर को उन्हें लगभग फटकारना पड़ा। कांग्रेस कार्यकर्ता अपने विधायकों से उम्मीद कर रहे थे कि वे भू-कानून से लेकर जन सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करेंगे और उनके मुद्दे उठाएंगे। लेकिन भरी दोपहरी में कंबल ओढ़कर और हाथों में हथकड़ी बांध कर उनके विरोध का अंदाज मीडिया का ध्यान तो खींच गया, मगर इसे स्टंटबाजी के तौर पर देखा गया।
अलबत्ता सदन के भीतर नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य भूमिधरी, भ्रष्टाचार, शिक्षा के मुद्दे पर जरूर सरकार से भिड़ते दिखे, मगर कांग्रेस कार्यकर्ता अपने विधायकों से और ज्यादा आक्रामक होने की उम्मीद कर रहे थे। चार दिन तक सरकार पर आरोपों के तीर छोड़ने वाले विपक्ष पर सीएम धामी ने जवाबी हमले बोलकर हिसाब बराबर करने की कोशिश की। लेकिन प्रदेश की जनता का भरोसे जीतने के लिए 70 विधायकों को सदन के भीतर और गंभीरता से चर्चा करनी होगी। पांच दिन ही सही सत्र के संचालन पर लाखों रुपये खर्च हुए, लेकिन इसके बावजूद यह सत्र छाप नहीं छोड़ पाया।
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विकसित उत्तराखंड के लिए सरकार ने संकल्प बनाए हैं। इनके लिए कई काम होने हैं। लेकिन जब तक इन संकल्पों और काम पर बहस नहीं होगी तब तक ये सारी बातें करना निरर्थक है। कई बार बिना चर्चा के बिल पास हो जाते हैं। सदन की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ जाती है। बजट अतिमहत्वपूर्ण है। नियम यह है कि सदन साल में 60 दिन चलना चाहिए, उत्तराखंड में यह 20 दिन भी नहीं चलता। यह चिंता की बात है। – प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
(२)विधानसभा सत्र के दौरान सदन में विवादित बयान पर भााजपा ने कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल कप्रदेश मुख्यालय में तलब किया। रविवार को पार्टी कार्यालय पहुंच कर अग्रवाल ने प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के समक्ष अपना पक्ष रखा। भट्ट ने भाषा पर संयम बरतने की नसीहत दी। कहा, सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री से आग्रह करेंगे।
रविवार को कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल भाजपा प्रदेश मुख्यालय पहुंचे। उन्होंने बंद कमरे में प्रदेश अध्यक्ष भट्ट व प्रदेश महामंत्री संगठन अजय कुमार के समक्ष विवादित बयान पर अपना स्पष्टीकरण दिया। भट्ट ने नसीहत दी कि ऐसी शब्दावली पर संयम बरतें। जिससे राज्य का माहौल खराब होता है। प्रदेश में जिस तरह का माहौल खड़ा हुआ है, वह ठीक नहीं है।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का बयान
इस बार #विधानसभा में कुछ बहुत आघात करने वाली, दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुई और यह घटनाएं व्यक्तिगत मानसिकता को नहीं दर्शाती हैं बल्कि सत्ता की मानसिकता को दर्शाती है। सत्ता में अहंकार है और उत्तराखंड को समझने की क्षमता नहीं है और इसीलिये उसके मंत्रीगण व विधायकगण यदा-कदा सत्ता के अहंकार में कुछ ऐसे बयान दे देते हैं जिससे राज्य निर्माण की मूल भावनाओं पर चोट पहुंचती है। यह राज्य लोगों ने मानवीय अपमान का बदला लेने के लिए बलिदान देकर के बनाया, यह अपमान निरंतर अपमानित होने के लिए नहीं बनाया है। समाज का गुस्सा व्यक्ति पर नहीं होना चाहिए बल्कि उस व्यक्ति के पीछे क्या मानसिकता काम कर रही है, उस व्यक्ति के पीछे कौन सी शक्ति खड़ी है, उस पर लक्ष्य करें, उस पर चोट होनी चाहिए। जिस पार्टी को लोगों ने सब कुछ दे दिया, यदि उस पार्टी के कुछ लोग उत्तराखंड की अस्मिता, भावना व गौरव पर ठेस पहुंचाने वाली बातें करते हैं तो फिर दोषी कौन है? दोषी तो वह है न जो इस घटना पर सदन में भी मौन है और बाहर भी मौन है तो भाजपा का मौन इस सारे घटनाक्रम में खटकता है, बहुत दुःख पहुंचता है, राजनीति से अलग हटकर के भी दुःख पहुंचता है।
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