इसे पास कर राज्यपाल की स्वीकृति के लिए राज भवन देहरादून भेजा गया। जहां से उसे मंजूरी मिल गई।
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों ने राज्य सरकार की नौकरियों में 10 फीसद क्षैतिज आरक्षण विधेयक को राजभवन से मंजूरी मिलने पर खुशी जताई है। उत्तराखंड आंदोलनकारियों के प्रमुख नेता रहे प्रदीप कुमार जोशी ने इसे संघर्ष का परिणाम बताते हुए कहा कि कहा कि यह बहुत बड़ा तोहफा है। इस मांग को लेकर राज्य आंदोलनकारी लंबे समय से आंदोलनरत थे। राजभवन से विधानसभा से पारित उत्तराखंड राज्य आंदोलन के चिह्नित आंदोलनकारियों या उनके आश्रितों को सरकारी नौकरियों में 10 फीसद आरक्षण विधेयक को मंजूरी मिलने अब गजट अधिसूचना होने का रास्ता साफ हो गया है और अब जल्दी ही यह अधिनियम बन जाएगा।
राज्य आंदोलनकारियों को 2004 में तब की नारायण दत्त तिवारी सरकार के समय आरक्षण देने का निर्णय लेते हुए शासनादेश जारी किया गया था। इस आधार पर सरकारी सेवाओं में आंदोलनकारियों को आरक्षण दिया जा रहा था। परंतु 2011 में हाईकोर्ट ने इस विषय पर सुनवाई करते हुए शासनादेश के अनुसार दिए जा रहे आंदोलनकारी आरक्षण पर रोक लगा दी। तब से आंदोलनकारी आरक्षण को कानूनी रूप देने की बातें विभिन्न सरकारों ने की परंतु हर सरकार का रवैया ढीला ढाला ही रहा। पर धामी सरकार ने इस मामले में बाजी मार ली। इस साल फरवरी में समान नागरिक संहिता कानून के साथ राज्य आंदोलनकारी के लिए सरकारी नौकरी में आरक्षण आरक्षण का प्रस्ताव भी पारित करवाया। और अब राज्यपाल की स्वीकृति मिलने के बाद इसे कानूनी रूप दिए जाने की ओर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तीव्र गति से लगे हुए हैं।
20 साल इंतजार के मिला हक
इस विधेयक में ऐसे आंदोलनकारी की आयु 50 साल से ज्यादा होने अथवा शारीरिक एवं मानसिक रूप से अक्षम होने के कारण स्वयं सेवा करने से अनिच्छुक होने पर उसके आश्रितों को राज्य सरकार की सरकारी सेवाओं में 10 फीसद आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है। सात दिन से कम जेल जाने वाले आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में 10 फीसद आरक्षण दिया जाएगा। आश्रितों में चिह्नित आंदोलनकारियों की पत्नी, पति, आश्रित पुत्र और अविवाहित पुत्री, विधवा व परित्यक्त तलाकशुदा पुत्री को सम्मिलित किया गया है। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों को अपना हक लेने में पूरे 20 साल इंतजार करना पड़ा।
2023 में ही कैबिनेट ने कर दिया था पास
सरकारें दर सरकारें आंदोलनकारी को सरकारी नौकरी में आरक्षण देने को लेकर चक्रव्यूह में फंसाती रही। नारायण दत्त तिवारी सरकार ने सरकारी नौकरियों में राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण देने का फैसला 2004 में किया था। तिवारी सरकार ने साधना देश जारी किया। नैनीताल उच्च न्यायालय ने 2011 में उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों को 10 फीसद आरक्षण पर रोक लगाई। 2015 में उच्च न्यायालय नैनीताल ने इस मामले में सुनवाई करते हुए इस आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया। 2015 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विधानसभा से पारित करा राजभवन को भेजा आरक्षण विधेयक भेजा। परंतु सितंबर 2022 में सात साल बाद राजभवन ने इस विधेयक को वापस लौटाया। मार्च 2023 में भाजपा सरकार ने फिर से इस मामले में विधेयक लाने का निर्णय लिया। सितंबर 2023 में कैबिनेट ने विधेयक लाने का प्रस्ताव किया पारित। सात सितंबर 2023 को विधानसभा ने प्रवर समिति को सौंपा विधेयक। 11 नवंबर 2023 को प्रवर समिति ने विधानसभा अध्यक्ष को अपनी रिपोर्ट सौंपी । इस साल फरवरी 2024 में सदन ने सर्वसम्मति से विधेयक पारित कर राजभवन भेजा।
हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट, रुद्रपुर
अब राजभवन की मुहर लगने पर इसके अधिनियम बनने का रास्ता साफ हो गया है। इससे लगभग 10 हजार राज्य आंदोलनकारी परिवारों को फायदा मिलेगा। धामी का कहना है कि उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के त्याग और बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। हमने राज्य आंदोलनकारियों व उनके आश्रितों को सरकारी नौकरियों में दस फीसद देने का निर्णय लिया। सदन से पारित इस विधेयक पर राजभवन ने सहमति दे दी है।
1 सितंबर 2021 को उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद द्वारा पांच सूत्र ज्ञापन खटीम शहीद स्मारक से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा तदोपरांत घोषणा की गई थी।