
शिलान्यासों का तीर्थस्थल: रुद्रपुर का गांधी पार्क और सौंदर्यीकरण का महाभारत”


✍️ लेखक: अवतार सिंह बिष्ट, विशेष संवाददाता | संपादकीय विश्लेषण | रुद्रपुर
रुद्रपुर,अगर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स को उत्तराखंड की तरफ ध्यान देने का कभी मन हुआ तो वो शायद रुद्रपुर के गांधी पार्क को ‘दुनिया के सबसे अधिक शिलान्यास झेल चुके सार्वजनिक स्थल’ की श्रेणी में सूचीबद्ध करने से नहीं चूकेगा। राज्य बनने के बाद हर मुख्यमंत्री, हर मंत्री, हर मेयर, हर नगर आयुक्त ने इसे अपनी ‘राजनीतिक कारसेवा’ का केन्द्र मान लिया है। ऐसा लगता है जैसे गांधी पार्क कोई साधारण पार्क नहीं, बल्कि कोई चुनावी तपस्थली हो जहाँ हर चुनाव से पहले एक नारियल फोड़ना और कुछ जुमले बोलकर चले जाना, नेताओं की सनातनी परंपरा बन गई हो।
भाग 1: गांधी पार्क – एक शाश्वत प्रतीक, एक अनन्त प्रतीक्षा?जिस पार्क का सपना जनता ने दशकों पहले देखा था, वह अब ‘डिज़ाइन के फ़ाइनल ड्राफ्ट’ और ‘शिलान्यास के निमंत्रण पत्र’ के दलदल में कहीं खो गया है। उत्तराखंड राज्य के गठन से लेकर वर्तमान तक अगर रुद्रपुर में सबसे अधिक घोषणाएं, भाषण, योजनाएं और असफलताएं किसी एक स्थान पर केंद्रित रही हैं, तो वह गांधी पार्क ही है।
राजनीति के इस रंगमंच पर गांधी पार्क एक स्थायी किरदार बन चुका है, जो हर नए शिलान्यास के बाद थोड़ी और झाड़ी, थोड़ी और धूल और थोड़ी और उपेक्षा का बोझ अपने कंधों पर ढोता चला जाता है।
भाग 2: सौंदर्यीकरण की संज्ञा, जिसमें ‘सौंदर्य’ की हत्या है?जब-जब ‘सौंदर्यीकरण’ शब्द सुना जाता है, आम जनता के मन में फूलों की क्यारियां, बच्चों की हँसी, ओपन जिम में व्यायाम करती महिलाएं और योग करते बुज़ुर्गों की छवि उभरती है। लेकिन रुद्रपुर के संदर्भ में यह शब्द एक मज़ाक बन चुका है। यह ‘सौंदर्यीकरण’ नहीं बल्कि ‘सौंदर्य-छीनन’ है।
पार्क का जो ‘डिज़ाइन फाइनल’ हुआ है, वह हर साल बदलता है — कभी बास्केटबॉल कोर्ट, कभी योगा ज़ोन, कभी ओपन जिम, और कभी वरिष्ठ नागरिकों के लिए खास सेक्शन। हर डिज़ाइन में एक चीज़ समान रहती है: शिलान्यास।
भाग 3: नारियलवाद की राजनीतिक संस्कृति?हर मुख्यमंत्री, हर विधायक, हर पार्षद और यहाँ तक कि छुटभैया नेता भी गांधी पार्क के नाम पर कम से कम एक बार नारियल फोड़ चुके हैं। ऐसा लगता है जैसे नारियल की बिक्री में सबसे ज़्यादा उछाल रुद्रपुर के गांधी पार्क शिलान्यासों के समय आती है।
जनता बुलवाई जाती है, मीडिया को बाइट्स दी जाती हैं, पोस्टर लगाए जाते हैं — “अबकी बार गांधी पार्क शानदार।” लेकिन फिर वही होता है जो पिछली बार हुआ था — कुछ नहीं।
भाग 4: सत्तावान ‘डिज़ाइन’ और जनता का अपमान?महापौर विकास शर्मा की अगुवाई में हुई बैठक में इस बार फिर नया डिज़ाइन फाइनल हुआ। 5.50 करोड़ की ‘पेंसिल स्केच’ तैयार हो गई। जैसे 550 लाख रुपए से कोई डिज़ाइन नहीं, बल्कि स्वर्ग का दरवाज़ा बनना है। जनता के कर के पैसे से बनने वाले इस पार्क के लिए जो ‘डिज़ाइन’ आया है, वह जनता की आकांक्षाओं का नहीं, अफसरों और नेताओं की स्याही का प्रतिबिंब है।
इस पार्क में फिर पेड़-पौधे होंगे (जो पहले भी थे), फिर जिम बनेगा (जो बंद पड़ा था), फिर बच्चों का प्ले ज़ोन बनेगा (जो पिछले साल टूटा था), और फिर बाउंड्री वॉल ऊँची होगी (जिसे पिछली बार खुद नगर निगम ने गिराया था)।
भाग 5: क्या पार्क राजनीति का चुनावी कार्यालय बन चुका है?गांधी पार्क अब पार्क नहीं रहा, यह एक चुनावी भूखंड बन गया है, जिस पर हर बार अलग दल अपना झंडा गाड़ता है। कौन भूल सकता है कि चुनावों से पहले इस पार्क को लेकर तमाम नेताओं ने फोटोशूट करवाए, घोषणाएं कीं और फिर पांच साल तक पार्क की तरफ मुड़कर भी नहीं देखा?
विकास नामक शब्द को लेकर जितनी बार गांधी पार्क के बोर्ड बदले गए हैं, उतनी बार शायद नगर निगम के टॉयलेट्स भी साफ नहीं हुए होंगे।
भाग 6: जनता के सब्र का इम्तिहान!रुद्रपुर की जनता कोई शिलान्यास संग्रहालय नहीं चाहती, वह सिर्फ एक ऐसा स्थान चाहती है जहाँ सुबह सैर हो सके, बच्चे खेल सकें और महिलाएं सुरक्षित माहौल में व्यायाम कर सकें। लेकिन यह मांग नेताओं को चुनावी वादे की तरह लगती है, जिसे हर बार पूरा करने का वादा सिर्फ अगली बार के लिए किया जाता है।गांधी पार्क की जनता से अपील करना अब नेताओं का पसंदीदा नाटक बन गया है। हर बार यही कहा जाता है — “इस बार पक्का…” लेकिन अगली बार फिर वही “इस बार पक्का…”
भाग 7: अगर गिनीज बुक का सर्वे हुआ तो…यदि दुनिया के सबसे अधिक बार शिलान्यास किए गए स्थानों की सूची बने, तो रुद्रपुर का गांधी पार्क उसमें शीर्ष पर होगा। यह ‘शिलान्यासों का खनन क्षेत्र’ बन चुका है। नेता लोग यहाँ हर साल ‘राजनीतिक पिकनिक’ मनाते हैं — बजट आए न आए, गांधी पार्क के लिए डिजाइन जरूर आएगा।
भाग 8: डिजिटल युग में पार्क कागज़ी क्यों?2025 में जहाँ शहर स्मार्ट बनने की तरफ बढ़ रहे हैं, वहीं रुद्रपुर का यह पार्क डिज़ाइन के पीडीएफ से बाहर नहीं निकल पा रहा। नगर निगम की फाइलों में दर्ज योजनाएं, ऑटोकैड फाइलों में बना डिज़ाइन और CM ऑफिस में फॉरवर्ड हुआ प्रस्ताव — सबकुछ डिजिटल है, बस पार्क अभी भी वही है — टूटी बेंच, उखड़ा फुटपाथ, सूखे पौधे और असहाय चौकीदार।
भाग 9: समाधान या फिर एक और शिलान्यास?अब समय आ गया है कि जनता गांधी पार्क के नाम पर हो रही इस राजनैतिक नौटंकी का बहिष्कार करे। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वो एक तय समयसीमा में इस पार्क को बनाकर जनता के समक्ष पेश करे — बिना शिलान्यास, बिना उद्घाटन, बिना झूठे भाषण के।
यदि सौंदर्यीकरण का मतलब यही है कि हर साल डिज़ाइन बदले और जनता ठगी जाए, तो ऐसे ‘सौंदर्यीकरण’ से अच्छा है कि पार्क को यूं ही छोड़ दिया जाए, शायद प्रकृति खुद इसे बेहतर बना दे।गांधी जी ने कभी कहा था — “विकास की पहचान अंतिम व्यक्ति के चेहरे की मुस्कान से होती है।” लेकिन रुद्रपुर के गांधी पार्क में न तो कोई मुस्कान है, न विकास। है तो बस खोखले वादे, बासी डिज़ाइन और झूठे नारियल।अब वक्त है गांधी पार्क को सौंदर्यीकरण से नहीं, ‘राजनीतिक शोषण’ से मुक्ति दिलाने का।

