बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी यानी बीएलए की ताजा कार्रवाई से साफ हो गया है कि पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ गई हैं। हालांकि बीएलए और दूसरे बलूच विद्रोहियों से पाकिस्तानी हुकूमत को लंबे समय से चुनौती मिलती रही है, मगर इधर के कुछ वर्षों में इन चरमपंथी गुटों ने जिस तरह अपनी रणनीतियां बदली हैं, उससे वहां की सेना और पुलिस के लिए नाकों चने चबाने जैसी स्थिति हो गई है।

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संपादकीय:मंगलवार को बीएलए विद्रोहियों ने एक रेलगाड़ी पर हमला कर दिया। उसमें चार सौ लोगों के सवार थे।

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

पाकिस्तानी सेना का दावा है कि उसने उनमें से तीन सौ लोगों को छुड़ा लिया है और सभी बागियों को मार गिराया है। सेना के प्रवक्ता ने बताया कि विद्रोही कुछ मुसाफिरों को गाड़ी से उतार कर जंगलों की तरफ ले गए थे। इस संघर्ष में करीब तीस सैनिकों के मारे जाने की खबरें सामने आई है। पर इस घटना को लेकर कोई आधिकारिक जानकारी नहीं मिल पा रही है। बताया जा रहा है कि कुछ आत्मघाती बलूच लड़ाके गाड़ी के भीतर मुसाफिरों के बीच मौजूद थे, जिससे उन्हें मुक्त कराने के अभियान में मुश्किलें आर्ईं।

बीएलए ने हमले की बदली रणनीति

इस घटना से कुछ संकेत साफ हैं कि बीएलए ने न केवल हमले की अपनी रणनीति बदली है, बल्कि अपने सिद्धांतों में भी बदलाव किया है। बीएलए हमेशा से आत्मघाती हमले के खिलाफ रहा है, पर रेलगाड़ी पर हमले में अगर आत्मघाती दस्ते उतारे हैं, तो साफ है कि उसने अपनी नीतियों में बदलाव कर लिया है। दरअसल, बलूचिस्तान प्रांत के लोग लंबे समय से अपनी आजादी की मांग के साथ पाकिस्तानी हुकूमत से संघर्ष करते रहे हैं। पाकिस्तान सरकार उन्हें बंदूक के बल पर दबाने का प्रयास करती रही है।

इसका नतीजा यह हुआ कि वहां चरमपंथी संगठन सक्रिय होते गए और समय-समय पर ताकत बटोर कर चुनौती देते रहे हैं। बलूचिस्तान प्रांत में प्राकृतिक संसाधन बहुत है, और रणनीतिक रूप से भी उसका महत्त्व है, इसीलिए चीन ने वहां अपनी परियोजनाएं शुरू की। मगर ग्वादर बंदरगाह पर चीन की पैठ बनी, तभी से बलूच विद्रोही उसका विरोध करते रहे हैं। उनके चरमपंथी हमलों में कई चीनी अधिकारी और कर्मचारी भी मारे जा चुके हैं। मगर पाकिस्तान सरकार सदा की तरह इन विद्रोहियों को बंदूक के बल पर दबाने की कोशिश करती रही है। उसे इस मामले में कामयाबी भी इसलिए मिल जाती रही है कि बलूचिस्तान में सक्रिय चरमपंथी संगठनों के बीच हितों का टकराव देखा जाता रहा है।

पाकिस्तान खुद आर्थिक तंगी का शिकार

मगर अब वहां सक्रिय सभी विद्रोही संगठनों ने हाथ मिला लिया है। पिछले महीने के आखिर में वहां के पांच प्रमुख चरमपंथी संगठनों की बैठक हुई थी, जिसमें फैसला किया गया कि चूंकि सबका मकसद एक है- बलूचिस्तान की आजादी, इसलिए सब साथ मिल कर लड़ेंगे। उन्होंने एलान कर दिया कि पाकिस्तानी हुकूमत और चीन का वे हर तरह से मुकाबला करने को तैयार हैं।

जाहिर है, इससे विद्रोहियों की ताकत बढ़ गई है। पिछले कुछ समय में हुए हमलों की प्रकृति बताती है कि वे काफी सोच-समझ कर कदम बढ़ाने लगे हैं और उनकी कार्रवाई का बड़ा असर देखा जा रहा है। पाकिस्तान इन दिनों खुद आर्थिक तंगी का शिकार है, उसकी सेना इन विद्रोही गुटों का कहां तक और कितनी देर तक मुकाबला कर पाएगी, कहना मुश्किल है। वहां की सरकार इस बात को लेकर भी चिंतित है कि विद्रोही गुटों को अफगानिस्तान से शह मिल रही है।


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