
सावन में कांवड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालु गंगा नदी का पवित्र जल लेकर पैदल यात्रा करते हैं और शिव मंदिरों में उस जल को शिवलिंग पर अर्पित करते हैं. कांवड़ की यात्रा अलग-अलग प्रकार होती है और सभी के लिए अलग-अलग नियमों का पालन किया जाता है.


कैसे शुरू हुई थी कांवड़ यात्रा?
पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले विष को पीने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया था. विष के असर को खत्म करने के लिए रावण ने कांवड़ में जल भरकर बागपत स्थित पुरा महादेव में भगवान शिव का जलाभिषेक किया था. कहा जाता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई. इसके अलावा रामायण के अनुसार, भगवान राम ने भी कांवड़िया बनकर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक क्या था.
कावड़ यात्रा के प्रकार (Types of Kavad Yatra)
हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट, रुद्रपुर ,उत्तराखंड
देश के हर हिस्से से शिव मंदिरों में कांवड़ यात्रा करने वाले श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. इसमे विशेष रूप से उत्तराखंड में ब्रह्मकुंड से जल लेकर भगवान शिव को समर्पित करने का विशेष महत्व माना जाता है. आपके आस-पास से गुजरने वाले शिवभक्त अलग-अलग तरीकों से कावड़ ले जाते हैं. इन सभी का अलग-अलग महत्व और नियम होते हैं.
साधारण कांवड़ (Simple kanwad)
सामान्य कांवड़ यात्रा में कांवड़िए दो बर्तनों में गंगाजल भरकर एक बांस की छड़ी पर लटकाया जाता है. इसे कांवड़िए अपने कंधे पर रखते हैं और पैदल चलते हैं. यात्रा के दौरान जल को संतुलित रखना बहुत जरूरी होता है.
डांक कांवड़ (Dank kanwar)
डांक कांवड़ तेजी से पूरी की जाने वाली कांवड़ यात्रा होती है. इसमें कांवड़िए बिना रुके तेजी से चलते हैं और निर्धारित समय में अपने गंतव्य तक पहुंचते हैं. डाक कांवड़ में विश्राम और गंगाजल का जमीन पर गिरना वर्जित होता है.
खड़ी कांवड़ (Khadi Kanwar)
कुछ भक्त खड़ी कावड़ लेकर यात्रा करते हैं. ये कांवड़ संकेत करती हैं कि वे अपने पैरों पर खड़े होकर शिव की पूजा करने के लिए तत्पर हैं. ये यात्रा शारीरिक और मानसिक तनाव को दूर करने, स्वयं को परिश्रम से संयमित करने और ध्यान में स्थिरता को विकसित करने का एक तरीका है.
दांडी कांवड़ (Dandi Kanwar)
दांडी कांवड़ यात्रा में भक्त नदी तट से शिव धाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं. यह बेहद मुश्किल यात्रा होती है, जिसमें कई दिन और कभी-कभी एक माह का समय तक लग जाता है.
सफेद कांवड़ (safed Kanwar)
यह कांवड़ विशेष भक्तों द्वारा प्रयास किए जाने वाले साधारण लंबे लकड़ी के डंडे पर आधारित होता है. इसको सादरी वस्त्र में बांधकर भक्त उठाता है.
पालकी कावड़ (Palki Kawad)
इस प्रकार की कावड़ में एक पालकी उठाई जाती है. जिसमें गंगा जल रखा जाता है. यह भक्त द्वारा परिक्रमा करते समय उठाई जाती है.
कभी खत्म नहीं होती कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra never ends)
देवघर स्थित विश्व प्रसिद्ध द्वादश ज्योर्तिलिंग बैद्यनाथ धाम के बादल पांडा ने बताया कि कांवड़ यात्रा 365 दिन चलता है. यह कभी खत्म नहीं होता है. रही बात सावन की तो सावन में रक्षाबंधन तक श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देवघर में आती है. लेकिन कांवड़ यात्रा 365 दिन चलता है जो कभी समाप्त नहीं होता है.
