ऐसे भी मामले हैं जहां मतदान किए गए मतों की तुलना में कम मतों की गिनती की गई. उन लोकसभा क्षेत्रों में जहां गिने गए ईवीएम मतों की संख्या डाले गए ईवीएम मतों से कम थी, वहां सबसे अधिक अंतर -16,791 मतों का पाया गया.
यहां वे शीर्ष तीन लोकसभा क्षेत्र बताए गए हैं जहां गिने गए मतों संख्या डाले गए मतों की संख्या से अधिक रही.
यहां वे शीर्ष तीन लोकसभा क्षेत्र बताए गए हैं जहां गिने गए मतों संख्या डाले गए मतों की संख्या से कम रही.
चुनाव आयोग ने गिने गए ईवीएम मतों की संख्या और गिने गए डाक मतों की संख्या का अलग-अलग उल्लेख किया है.
उदाहरण के लिए, यहां चुनाव आयोग की वेबसाइट से दमन और दीव के चुनाव परिणाम का स्क्रीनशॉट उपलब्ध है:
इसके अलावा, चुनाव आयोग ने 2024 के चुनाव में डाले गए ईवीएम मतों की पूर्ण संख्या राजनीतिक दलों और नागरिक समाज के सदस्यों की ओर से भारी विरोध के बाद जारी की थी. चुनाव के पहले पांच चरणों के लिए, चुनाव आयोग ने केवल एक निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए मतों का प्रतिशत (कुल मतदाताओं की संख्या) जारी किया था.
25 मई को चुनाव आयोग ने पहले पांच चरणों में ईवीएम से डाले गए मतों की संख्या के आंकड़े जारी करते हुए कहा था कि ‘डाले गए मतों की संख्या में कोई बदलाव संभव नहीं है.’
इसकी प्रेस विज्ञप्ति में यह भी कहा गया था कि आंकड़ों में डाक मतपत्रों की संख्या शामिल नहीं है.
कुछ दिन पहले, जब एक्स (पहले ट्विटर) पर गिने गए मतों की संख्या में कमी को लेकर चर्चा शुरू हुई, तो उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने कहा कि आयोग के आंकड़ों में गिने गए मतों की संख्या में कमी दिखाई दे सकती है, क्योंकि कुछ मामलों में कुछ मतदान केंद्रों पर डाले गए मतों की गणना ‘आयोग द्वारा जारी मौजूदा प्रोटोकॉल जो विभिन्न मैनुअल और हैंडबुक में दिए जाते हैं’ के अनुसार नहीं की जाती है.
उन्होंने आगे कहा कि ‘जिन मतदान केंद्रों पर डाले गए मतों की गणना नहीं की जाती है, वे दो श्रेणियों के होते हैं’:
‘(1) जहां पीठासीन अधिकारी वास्तविक मतदान शुरू करने से पहले गलती से कंट्रोल यूनिट से मॉक पोल डेटा को साफ़ करने में विफल रहते हैं या वह वास्तविक मतदान शुरू करने से पहले वीवीपैट से मॉक पोल पर्चियों को हटाने में विफल रहते हैं.’
(2) कंट्रोल यूनिट में डाले गए कुल वोट पीठासीन अधिकारी द्वारा तैयार किए गए फॉर्म 17-सी में दर्ज वोटों के रिकॉर्ड से मेल नहीं खाते हैं और पीठासीन अधिकारी गलती से गलत संख्या दर्ज कर देते हैं.
मतगणना के अंत में तभी की जाती है जब ऐसे सभी मतदान केंद्रों में डाले गए वोटों का कुल योग पहले और दूसरे उम्मीदवार के बीच के अंतर के बराबर या उससे अधिक हो। यदि यह अंतर से कम है तो वोटों की गिनती बिल्कुल नहीं की जाती है और इसलिए ईवीएम द्वारा डाले गए कुल वोटों और गिने गए वोटों के बीच अंतर पैदा होता है.’
लेकिन चुनाव आयोग ने इस बात पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है कि 150 से ज्यादा लोकसभा क्षेत्रों में अधिक वोट कैसे गिन लिए गए. मतदान खत्म होने के बाद जादुई तरीके से ईवीएम में ज़्यादा वोट कैसे दर्ज हो गए?
गिने गए ईवीएम वोटों की संख्या डाले गए ईवीएम वोटों की संख्या से कम क्यों रही, इसके लिए चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण भी पूरी तरह से संतोषजनक नहीं है. लेकिन पहले इन चार लोकसभा क्षेत्रों पर विचार करें जहां जीत का अंतर बहुत कम था.
पहला, महाराष्ट्र के मुंबई उत्तर पश्चिम में 9,51,580 ईवीएम वोट डाले गए, लेकिन 9,51,582 ईवीएम वोट गिने गए यानी दो अतिरिक्त वोट गिने गए. शिवसेना के रवींद्र दत्ताराम वायकर ने सबसे कम 48 मतों से जीत दर्ज की और शिवसेना (यूबीटी) के उम्मीदवार अमोल गजानन को हराया.
दूसरा, राजस्थान के जयपुर ग्रामीण में 12,38,818 ईवीएम वोट डाले गए, लेकिन 12,37,966 ईवीएम वोट गिने गए, यानी 852 वोट गिने नहीं गए. भाजपा के राव राजेंद्र सिंह ने 1,615 वोटों के मामूली अंतर से यह सीट जीती.
तीसरा, छत्तीसगढ़ के कांकेर में 12,61,103 ईवीएम वोट डाले गए, लेकिन 12,60,153 ईवीएम वोट गिने गए, यानी 950 वोट गिने नहीं गए. भाजपा के भोजराज नाग ने 1,884 वोटों के मामूली अंतर से यह सीट जीती.
चौथा, उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में 10,32,244 ईवीएम वोट डाले गए लेकिन 10,31,784 ईवीएम वोट गिने गए, यानी 460 वोट नहीं गिने गए. भाजपा के मुकेश राजपूत ने 2,678 वोटों के अंतर से यह सीट जीती.
एक राय यह भी है कि इन सीटों और अन्य सीटों, जहां जीत का अंतर बहुत कम था, पर हारने वाले उम्मीदवारों को सौ फीसदी मतों की गिनती की मांग करनी चाहिए. अगर ईवीएम में गड़बड़ी पाई जाती है या पीठासीन अधिकारी ने कोई लिपिकीय त्रुटि की है तो वीवीपैट पर्चियों की गिनती होनी चाहिए.
गिने गए मतों की संख्या में कमी पर उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की टिप्पणी के बावजूद अन्य गंभीर प्रश्नों के उत्तर दिए जाने की जरूरत है:
- चुनाव आयोग अतिरिक्त मतों की गणना कैसे कर सकता है, अर्थात डाले गए मतों से अधिक मतों की गणना की गई?
2.चुनाव आयोग संसदीय क्षेत्रवार गिने गए ईवीएम मतों की कमी या अधिकता के बारे में स्पष्टीकरण क्यों नहीं दे रहा है, बजाय इसके कि वह सामान्य बयान दे?
- वह इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचे कि डाले गए और गिने गए वोटों के बीच का अंतर मॉक पोल डेटा को न हटाने के कारण है?
- क्या चुनाव आयोग यह स्वीकार कर रहा है कि फॉर्म 17सी में बताए गए मतदान की संख्या और कुछ मतदान केंद्रों में कंट्रोल यूनिट में दर्ज मतों की संख्या में विसंगतियां थीं?
- औसतन, एक ईवीएम प्रति मतदान केंद्र 700 से 800 वोट दर्ज करती है. फिर कुछ मामलों में कम वोटों की संख्या 20-30 वोटों जितनी कम क्यों है?
- चुनाव आयोग ने ईवीएम से डाले गए सभी वोटों की गिनती क्यों नहीं की, अगर ज़रूरत पड़ती तो उन जगहों पर वीवीपैट की पर्चियों की गिनती की जा सकती थी जहां जीत का अंतर बहुत कम था?
- क्या चुनाव आयोग जनता को बताएगा कि कितनी ईवीएम मशीनें मतगणना प्रक्रिया से अलग कर दी गईं और क्यों?
2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग की ईमानदारी इसके निम्नतम स्तर पर पहुंच गई थी, खासकर तब जब इसने डाले गए वोटों की कुल संख्या साझा करने में अनिच्छा दिखाई थी.
मैंने ईमेल और एक्स के माध्यम से डाले गए ईवीएम वोटों की संख्या और गिने गए ईवीएम वोटों की संख्या के बीच विसंगति के बारे में चुनाव आयोग से पूछा है, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है. चुनाव आयोग का जवाब मिलने पर उसे खबर में जोड़ा जाएगा.
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