करीब छह महीने पहले केंद्र सरकार ने जब ‘फैक्ट चेक यूनिट’ यानी तथ्य जांच इकाई के गठन संबंधी अधिसूचना जारी की थी, तभी से इस पर विवाद है। मगर इसे लेकर उभरी असहमतियां और उठे सवालों के बावजूद सरकार शायद इस ओर धीरे-धीरे कदम बढ़ा रही थी।

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अब इस मसले पर बंबई हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार के लिए अपने पक्ष को निर्विवाद बताना मुश्किल होगा। बंबई हाईकोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन अधिनियम, 2023 को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया और इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन बताया।

हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट, रुद्रपुर

गौरतलब है कि सूचना प्रौद्योगिकी यानी आइटी नियमों में किए गए संशोधनों के जरिए केंद्र सरकार को सोशल मीडिया मंचों पर अपने कामकाज के बारे में ‘फर्जी और भ्रामक’ सूचनाओं की पहचान करने और उन्हें खारिज करने या झूठा घोषित करने के मकसद से तथ्य जांच इकाई बनाने की इजाजत दी गई थी। इस इकाई को सोशल मीडिया पर केंद्र सरकार और उसकी एजंसियों को लेकर दी गई जानकारियों को चिह्नित करने की शक्ति भी दी गई थी।

इसके तहत यह इकाई अगर फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और एक्स जैसे सोशल मीडिया मंचों पर किसी जानकारी को झूठी बताती, तो वे कंपनियां वह सूचना या टिप्पणी हटाने के लिए कानूनी रूप से बाध्य होतीं या उस पर अपने मंच की ओर से अस्वीकरण जोड़ना होता। प्रथम दृष्टया यह कवायद गलत सूचना या जानकारी को दुरुस्त करने या उस पर लगाम लगाने की कोशिश लगती है, मगर इसका सिरा कहां तक जाएगा, यह तय करना मुश्किल है।

आशंकाओं के आधार पर रद्द किया अधिनियम

अगर कभी ऐसे नियम लागू होते हैं तो इस बात की क्या गारंटी है कि सरकार की तथ्य जांच इकाई जिन जानकारियों को फर्जी, भ्रामक या झूठी बताएगी और वह किसी तथ्य की मनमानी व्याख्या नहीं होगी और किसी खास टिप्पणी या जानकारी का चुनाव अपनी सुविधा के मुताबिक या सरकार की छवि बचाने के लिए नहीं होगा! अगर किन्हीं स्थितियों में ऐसा होता है, तो क्या इससे किसी व्यक्ति के अभिव्यक्ति के संवैधानिक अधिकार बाधित नहीं होंगे? इन्हीं आशंकाओं के मद्देनजर बंबई हाईकोर्ट ने कहा कि इन नियमों ने संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया है।

हालांकि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्ष मार्च में इस इकाई के गठन से संबंधित केंद्र सरकार की अधिसूचना पर इस वजह से रोक लगा दी थी कि इसकी सुनवाई बंबई हाईकोर्ट में चल रही थी। शीर्ष अदालत ने तब कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मौलिक अधिकार है और इस पर नियम के असर का विश्लेषण बंबई हाईकोर्ट में जरूरी है। अब बंबई हाईकोर्ट ने एक तरह से स्थिति स्पष्ट कर दी है।

सवाल है कि अगर तथ्यों की जांच के नाम पर किसी अन्य पक्ष की ओर से किए गए विश्लेषण या दी गई जानकारी को खुद किसी सरकारी एजंसी की ओर से बाधित किया जाएगा, किसी की टिप्पणी को हटाया जाएगा, सोशल मीडिया पर उसका खाता बंद करा दिया जाएगा, तो ऐसी स्थिति में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की क्या जगह रह जाएगी? फिर, किसी जानकारी को भ्रामक या फर्जी बताने की व्यवस्था में क्या सिर्फ सरकार के खिलाफ की गई टिप्पणियों की ही जांच की जाएगी या इसका दायरा विस्तृत होगा? यह ध्यान रखने की जरूरत है कि भारत की लोकतांत्रिक परंपरा में विचारों में भिन्नता और असहमतियों के लिए मजबूत जगह रही है और इसी से देश का लोकतंत्र मजबूत हुआ है।


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