भारत में सरकारी नौकरी का काफी क्रेज है. उससे भी ज्‍यादा गवर्नमेंट जॉब में प्रमोशन पाने के अधिकार का भी है. सुप्रीम कोर्ट ने गवर्नमेंट जॉब में प्रमोशन के अधिकार को लेकर बड़ा और ऐतिहासिक फैसला दिया है.

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हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /प्रिंटिंग मीडिया शैल ग्लोबल टाइम्स /संपादक अवतार सिंह बिष्ट , रूद्रपुर, उत्तराखंड

CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्‍यक्षता वाली तीन जजों की पीठ सरकारी नौकरी में प्रमोशन से जड़े एक मामले की सुनवाई के बाद बड़ा फैसला दिया है. शीर्ष अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि नौकरी में प्रमोशन संवैधानिक अधिकार नहीं है. संविधान में इसके लिए किसी तरह के क्राइटेरिया का उल्‍लेख नहीं किया गया है, ऐसे में सरकारी कर्मचारी नौकरी में प्रमोशन का दावा नहीं कर सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि प्रमोशन को लेकर कार्यपालिका (केंद्र के मामले में संसद और राज्‍यों के मामले में विधानसभा) नियम कायदे बना सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात में जिला जज के सेलेक्‍शन से जुड़े एक मामले को निपटाते हुए सरकारी नौकरी में प्रमोशन के अधिकार पर महत्‍वपूर्ण फैसला दिया. इससे लाखों-करोड़ों सरकारी कर्मचारी प्रभावित हो सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को किस आधार पर प्रमोशन दिया जाए, इसको लेकर हमारा संविधान साइलेंट है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा कि विधाय‍िका और कार्यपालिका प्रमोशनल पोस्‍ट की जरूरतों को ध्‍यान में रखते हुए इसको लेकर नियम बनाने के लिए स्‍वतंत्र है. सीजेआई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा, ‘भारत में सरकारी कर्मचारी को प्रमोशन को अधिकार के तौर पर जताने का अधिकार नहीं है. संविधान प्रमोशनल पोस्‍ट को भरने के लिए क्राइटेरिया का उल्‍लेख नहीं करता है.’

फैसले की खास बातें

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नौकरी में प्रमोशन पाना संवैधानिक अधिकार नहीं है.
  • विधाय‍िका या कार्यपालिका प्रमोशन को लेकर नियम कायदे बना सकती है.
  • सीनियॉरिटी-कम-मेरिट और मेरिट-कम-सीनियॉरिटी का भी उल्‍लेख किया.
  • संविधान में सरकारी नौकरी में प्रमोशन के लिए क्राइटेरिया निर्धारित नहीं है.
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रमोशन को लेकर सरकार नियम बना सकती है.

सरकार का काम
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया कि नौकरी में प्रमोशन देने के लिए नियम कायदे और कानूनी प्रावधान तय करने का काम विधाय‍िका और कार्यपालिका यानी कि सरकार का है. सरकार को यह देखना है कि वह किसी सरकारी कर्मचारी से किस तरह का काम करवाना चाहती है, ताकि उसे प्रमोशन दिया जाए. साथ ही शीर्ष अदालत ने यह भी तय कर दिया कि ज्‍यूडिशियरी इस बात की समीक्षा नहीं करेगा कि प्रमोशन सेलेक्‍शन के लिए बनाई गई नीति पर्याप्‍त है या नहीं. हालांकि, संविधान के अनुच्‍छेद 16 (समान अवसर की समानता) के तहत विचार किया जा सकता है कि इसका उल्‍लंघन तो नहीं हुआ है.

प्रमोशन के दो तरीके
सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्‍यक्षता वाली पीठ ने सीनियॉरिटी-कम-मेरिट और मेरिट-कम-सीनियॉरिटी का भी उल्‍लेख किया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीनियॉरिटी को प्रमोशन का आधार इसलिए बनाया जाता है कि संबंधित कर्मचारी के पास ज्‍यादा अनुभव है, लिहाजा वह बेहतर तरीके से सक्षम है. साथ ही इससे भाई-भतीजावाद पर भी काफी हद तक लगाम लगता है. कोर्ट ने सीनियॉरिटी-कम-मेरिट और मेरिट-कम-सीनियॉरिटी का भी उल्‍लेख किया. सुप्रीम कोर्ट ने स्‍पष्‍ट किया कि यह केस को देखते हुए तय किया जाता है और यह पत्‍थर की लकीर नहीं है.


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