उत्तराखंड के तीन वीर सपूतों को उनके अद्वितीय साहस के लिए वीरता पदक से सम्मानित किया गया है। पैरा कमांडो मेजर दिग्विजय सिंह रावत ‘कीर्ति चक्र’ से अलंकृत हुए हैं।

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राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने शुक्रवार को राष्ट्रपति भवन में इन्हें सम्मानित किया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तीनों सैन्य अधिकारियों को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि तीनों सैन्य अधिकारियों को मिले सम्मान से उत्तराखंड गौरवान्वित हुआ है।

टेक्निकल एंट्री के जरिये सेना का हिस्सा बने दिग्विजय

मेजर दिग्विजय सिंह रावत मूल रूप से पौड़ी गढ़वाल जिले के धूमाकोट क्षेत्र के रहने वाले हैं। उन्होंने स्कूली शिक्षा श्रीनगर गढ़वाल से ग्रहण की। डांग में उनका घर है, जहां उनके माता-पिता रहते हैं। उनके पिता दिगंबर सिंह रावत हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के खेल विभाग से 2019 में सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

बेटे को कीर्ति चक्र मिलने पर वह बेहद खुश हैं। वह बताते हैं कि दिग्विजय टेक्निकल एंट्री के जरिये सेना का हिस्सा बने। रुड़की में बंगाल इंजीनियरिंग यूनिट में सेवा देने के बाद जून 2014 में उन्हें पैरा (स्पेशल फोर्सेज) के लिए चुना गया। उनकी खेलकूद में रुचि रही है। लान टेनिस में वह उत्तराखंड चैंपियन रह चुके हैं और केंद्रीय विद्यालय की राष्ट्रीय स्तर की लान टेनिस और बैडमिंटन प्रतियोगिता में उपविजेता रहे हैं।

21 पैरा (स्पेशल फोर्सेज) के मेजर दिग्विजय सिंह रावत के खुफिया नेटवर्क ने मणिपुर में आ रहे एक वीआइपी को निशाना बनाने की साजिश का पर्दाफाश किया। इस खुफिया जानकारी के बाद उन्होंने एक जवाबी आपरेशन की योजना बनाई। आटोमैटिक हथियारों से लैस आतंकियों ने सेना से सामना होने पर गोलीबारी शुरू कर दी।

मेजर रावत कौशल और अदम्य साहस का परिचय देते हुए रेंगकर एक तरफ गए और उग्रवादियों के एक स्वयंभू कैप्टन को मार गिराया और दूसरे को घायल कर दिया। ये दोनों असम राइफल्स पर घात लगाकर हुए हमले के मास्टरमाइंड भी थे। उन्होंने मणिपुर में एक खुफिया निगरानी तंत्र बनाया। इसकी मदद से वह वीबीआइजी की सही मैपिंग करने में सफल रहे।

26 मार्च 2023 को एक अन्य आपरेशन के दौरान उग्रवादियों की घुसपैठ की सूचना मिलने पर उन्होंने जाल बिछाया और नजदीकी लड़ाई के बाद तीन आतंकियों को सरेंडर करने के लिए मजबूर कर दिया।

मेजर रविंद्र की सेना में तीसरी पीढ़ी

मेजर रविंद्र सिंह रावत मूलरूप से चमोली जिले के अंगोत गांव के निवासी हैं। वर्तमान में उनका परिवार सेवलाकलां देहरादून में रहता है। वह तीसरी पीढ़ी के रूप में सेना में सेवा दे रहे हैं। उनके पिता बादर सिंह रावत भी सेना से सूबेदार मेजर रैंक से सेवानिवृत्त हुए थे। दादा स्वर्गीय बालम सिंह रावत भी सेना में थे।

बड़ी बहन शशि रावत भी आर्मी मेडिकल कोर में ले. कर्नल के रैंक पर सेवारत हैं। मार्च 2020 से सितंबर 2022 तक मेजर रविंद्र रावत ने भारतीय सेना की 44वीं राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात रहते हुए 11 सफल आपरेशन किए थे। जिसमें 28 आतंकवादियों का खात्मा करने में उनका अहम योगदान रहा।

राष्ट्रीय राइफल्स की 44 बटालियन के मेजर रविंद्र सिंह रावत ने 30 अगस्त 2022 को जम्मू-कश्मीर के शोपियां जिले के एक गांव में तीन आतंकवादियों की मौजूदगी की सूचना मिलने पर प्रारंभिक घेराबंदी की। उन्होंने तीन आतंकवादियों को घने जंगल की ओर भागते देखा।

उसी बीच आतंकियों ने सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश की। आतंकियों की अंधाधुंध फायरिंग का मुंह तोड़ जवाब देते हुए मेजर रावत ने सैन्य टुकड़ी का सफल नेतृत्व करते हुए तीनों आतंकवादियों को मुठभेड़ में ढेर कर दिया था। उनके इस अद्वितीय शौर्य व साहस के लिए उन्हें शौर्य चक्र प्रदान किया गया।

राष्ट्रीय राइफल्स की 55वीं बटालियन में तैनात हैं मेजर सचिन नेगी

ग्रेनेडियर के मेजर सचिन नेगी राष्ट्रीय राइफल्स की 55वीं बटालियन में तैनात हैं। उन्होंने नवंबर 2020 से राष्ट्रीय राइफल्स के कार्यकाल के दौरान कई सफल अभियानों में भाग लिया जिसमें उनकी बटालियन ने 14 आतंकियों का खात्मा किया।

एक नवंबर 2022 को पुलवामा जिले में एक वाहन चेक पोस्ट एक गाड़ी में आतंकियों ने गोलाबारी करते हुए ग्रेनेड से हमला किया। संयम एवं सामरिक कौशल का परिचय देते हुए मेजर सचिन नेगी रेंगकर आतंकवादियों की ओर बढ़े। अपनी जान की परवाह किए बिना एक आतंकी को बेहद नजदीक से मार गिराया और एक अन्य को घायल कर दिया।


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