कपड़ा बाजार में बांग्लादेश शिखर पर था और जूतों के बाजार में ‘मेड इन चाइना’ या ‘मेड इन इंडिया’ का डंका बज रहा था. बांग्लादेश के बुनकरों का कौशल था कि कपड़ा बाजार में वे अव्वल थे.
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प्रिंट मीडिया,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर
परंतु 5 अगस्त को जैसे ही बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद को कुर्सी छोड़कर भारत आना पड़ा. बांग्लादेश में चली आ रही व्यवस्था धड़ाम होने लगी. वहां धीरे-धीरे जो स्थितियां उत्पन्न होने लगीं, दूसरे देशों ने उस पर भरोसा करना कम कर दिया. क्योंकि बांग्लादेश में छात्र-आंदोलन के बहाने उन तत्त्वों ने सरकार पर कब्जा कर लिया, जो धार्मिक रूप से उन्मादी और अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं के विरोधी थे.
पाकिस्तान कैसे मदद करेगा!
बांग्लादेश के ये उन्मादी तत्त्व पाकिस्तान समर्थक थे, इसलिए इनका भारत से विरोध स्वाभाविक था. बांग्लादेश जिसकी तीन तरफ से जमीन भारत से घिरी हुई है और एक तरफ बंगाल की खाड़ी है, उस देश से निर्यात बिना भारत की मदद के संभव ही नहीं है. लेकिन बांग्लादेश ने भारत से ऐसे कड़वे संबंध बना लिए हैं कि लगता है इंडिया आउट अब उसका ध्येय वाक्य है. बांग्लादेश भूल जाता है कि पाकिस्तान चाह कर भी बांग्लादेश के आयात-निर्यात में कोई मदद नहीं कर सकता. वह वहां भारत के विरुद्ध माहौल तो बना सकता है, लेकिन आयात-निर्यात में क्या करेगा! यह ठीक है कि 13 नवंबर से पाकिस्तान के साथ उसका सामुद्रिक संबंध बन गया है. इस दिन पाकिस्तान के कराची बंदरगाह से एक मालवाही जहाज बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह पर पहुंचा था. लेकिन इसका रूट इतना लंबा है कि व्यापार इतना आसान और सुगम नहीं है.
उदार बांग्लादेश में अब फंडामेंटलिस्ट
बांग्लादेश अब पूरी तरह पाकिस्तान की तर्ज पर अपने को बदल रहा है. लगता है कि वहां अब उदारवादियों का नहीं कट्टर इस्लामिक फंडामेंटलिस्ट का राज चलेगा. शायद अब बांग्लादेश अपनी भाषा, रीति-रिवाज और विशिष्टता को बदल देगा. जो हालात वहां हैं, वे इसी तरफ संकेत करते हैं. बांग्लादेश में शेख मुजीबुर्रहमान से जुड़ी यादों को जिस तरह से नष्ट किया जा रहा है, उससे यही लगता है. अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने अपने देश के कट्टरपंथियों के आगे सरेंडर कर दिया है. वहां पर अब 20, 100, 500 और 1000 टका (बांग्लादेश की मुद्रा) के नए नोटों की छपाई हो रही है. नए नोटों में बांग्लादेश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले शेख मुजीबुर्रहमान का फोटो नहीं होगा. यही नहीं जॉय बांग्ला जैसे संबोधन अब नहीं बोले जाएंगे. कट्टरपंथियों को यह वाक्य हिंदू परंपराओं की गंध देता लगता है. इस तरह का भारत विरोध बांग्लादेश को कहां ले जाएगा!
भारत मित्र से भारत शत्रु तक
वहां से शेख़ मुजीबुर्रहमान से जुड़े प्रतीकों को भी तोड़ा जा रहा है. साथ ही उन सभी मान्यताओं से बांग्लादेश मुंह मोड़ रहा है, जिनमें बंग-बंधु शेख मुजीबुर्रहमान की महिमा झलकती है. बांग्लादेश का मौजूदा निजाम भूल जाता है कि बांग्लादेश की राष्ट्रीयता और पहचान शेख मुजीबुर्रहमान से जुड़ी हुई है. बांग्लादेश न बनता यदि वहां शेख मुजीबुर्रहमान पाकिस्तान की क्रूर सरकार से न लड़ते. बांग्लादेश पाकिस्तान की सत्ता से 16 दिसंबर 1971 को स्वतंत्र हुआ था और उनका संविधान एक वर्ष बाद 16 दिसंबर 1972 को लागू हुआ. हालांकि बांग्लादेश की आजादी की घोषणा 26 मार्च 1971 को हो गई थी. बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ रही बांग्ला मुक्ति वाहिनी को भारत की फौजें पूरी मदद कर रही थीं. उन्हें हथियार भी भारत से मिली. इसलिए बांग्लादेश की अधिकांश जनता भारत को अपना मित्र मानती रही.
धर्म जोड़ने का आधार नहीं
यूं भी यह संभव नहीं था कि पाकिस्तान अपनी राजधानी से करीब 2000 किमी पूर्वी पाकिस्तान में राज व्यवस्था सुचारू कर पाये. नतीजा पाकिस्तान तो समृद्ध होता गया, लेकिन उसके इस पूर्वी भाग की जनता नौकरी, व्यापार, शिक्षा और स्वास्थ्य में पिछड़ने लगा. धर्म के आधार पर भारत से ही पाकिस्तान का यह बंटवारा हुआ था. परंतु धर्म क्षेत्रीय समाज की विशिष्टताओं, उनके रीति-रिवाज और उनकी बोली-भाषा को खत्म नहीं कर सकता. बांग्लादेश अपनी बंगाली भाषा के कारण 2000 किमी दूर पश्चिम के पाकिस्तान से कोई निकटता महसूस करता था. पाकिस्तान के उर्दू भाषी हुक्मरान पूर्वी पाकिस्तान की बंगाली भाषा और रीति-रिवाज की खिल्ली उड़ाते रहे. नतीजा हुआ कि 24 वर्ष बाद पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बन गया और पाकिस्तान के उसके सारे संबंध खत्म हो गए.
पाकिस्तान की मदद से परमाणु बम!
अभी 13 नवंबर को कराची से चल कर पाकिस्तान का एक मालवाहक जहाज बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह पर पहुंचा. भारत के लिए यह बहुत बड़ी चिंता का सबब है. यदि बांग्लादेश और पाकिस्तान के रिश्ते प्रगाढ़ होते हैं तो नुकसान भारत को होगा. इस तरह भारत अपनी पूर्वी व पश्चिमी सीमा पर शत्रुओं से घिर जाएगा और उसके निर्यात को भी भारी धक्का पहुंचेगा. पाकिस्तान से संबंध बढ़ने का मतलब बांग्लादेश हथियारों की खरीद भी करेगा और परमाणु बम बनाने की डील भी वह पाकिस्तान से कर सकता है. बीबीसी ने बताया है कि बांग्लादेश रिटायर्ड आर्म्ड फोर्सेज़ ऑफिसर्स वेलफ़ेयर एसोसिएशन की एक गोष्ठी में प्रो. शाहिदुज्जमां ने इस बात पर जोर दिया कि बांग्लादेश को पाकिस्तान के साथ परमाणु करार करना चाहिए. यदि वह ऐसा करता है तो भारत को सचेत हो जाता है.
भारत से दूरी बांग्लादेश को बर्बाद करेगी
बांग्लादेश ने पाकिस्तान से 25000 टन चीनी आयात की है, जबकि पहले वह भारत से चीनी मंगाता था. यही नहीं भारत का कपास और भारत से पालतू पशु भी बांग्लादेश जाते थे, क्योंकि बांग्लादेश बड़े (पालतू बड़े पशु) के मांस का सबसे बड़ा उत्पादक देश रहा है. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार जिस तरह व्यवहार कर रही है, उससे प्रतीत होता है कि बांग्लादेश भारत से अपने रिश्ते तोड़ता जा रहा है. यह भारत के लिए चिंताजनक तो है ही बांग्लादेश के लिए भी कोई अच्छी बात नहीं है. बांग्लादेश की सीमा सिर्फ भारत से मिलती है. उसके तीन तरफ समुद्र है और जो उसके पास जमीन है, उसके पार भारत है. क्या बांग्लादेश ऐसे में भारत से 36 का आंकड़ा रखकर अपना अस्तित्त्व बचा कर रख सकेगा! यह लाख टके का सवाल है. भारत से दूरी बनाना उसके लिए बर्बादी का कारण बनेगा.
पाकिस्तान की मदद बहुत महंगी पड़ेगी
इस समय बांग्लादेश में प्याज और आलू की घोर कमी है. भारत से उसे ये सामान जाता था. यही हाल चावल का है. अगर भारत ने बांग्लादेश को खाने-पीने की चीजें न भेजीं तो वहां भुखमरी फैल जाएगी. लेकिन मोहम्मद यूनुस सरकार के समय आलम यह है कि वहां के अधिकतर लोग किसी भी हालत में भारत से अच्छे संबंध नहीं चाहते. ये लोग पाकिस्तान परस्त हैं. इनको लगता है कि पाकिस्तान की मदद से वे भारत को जवाब दे सकेंगे. उनके अनुसार भारत दक्षिण एशिया में अपनी दादागिरी दिखाता है. लेकिन यह उनका भ्रम है, पाकिस्तान उनकी किसी भी तरह से मदद नहीं कर सकता. अगर पाकिस्तान की मदद से उसने परमाणु बम बना लिया तो पश्चिमी देशों का ऐसा जबरदस्त प्रतिबंध झेलना पड़ेगा कि उसका अस्तित्त्व भी खतरे में पड़ जाएगा!