
गदरपुर ब्लॉक के बीडीसी प्रमाण पत्र विवाद ने जिस तरह सुर्खियां बटोरीं, उसने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि उधम सिंह नगर की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस के बीच अब वैचारिक संघर्ष से ज्यादा ‘आपसी समझ’ हावी है। कांग्रेस पार्टी पहले ही भाजपा के सामने अपने निहित स्वार्थों के लिए पूरी तरह ‘सिलेंडर’ हो चुकी है, फिर प्रमाण पत्र को लेकर यह विरोध का नाटक किसके लिए?।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)

हकीकत यह है कि जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुखों की संख्या, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की राजनीतिक सुरक्षा कवच का अहम हिस्सा बनेगी। इस कवच को मजबूत करने में विपक्ष—विशेषकर कांग्रेस—पूरी तरह कंधे से कंधा मिलाकर भाजपा के साथ खड़ी है। परिणामस्वरूप, स्थानीय स्तर पर सत्ता संतुलन का खेल पहले ही तय हो चुका है, जिसमें विरोध महज एक औपचारिकता है।
2027 के विधानसभा चुनाव में उधम सिंह नगर की कई सीटों पर यह समीकरण निर्णायक भूमिका निभाएगा। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का भाजपा के प्रति यह ‘मुलायम रवैया’ न केवल संगठनात्मक कमजोरी दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि निजी हित और पारिवारिक राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं जनहित और विपक्षी भूमिका पर भारी पड़ रही हैं।
रुद्रपुर विधायक शिव अरोड़ा ने हालिया राजनीतिक घटनाक्रम में एक सधे हुए किंगमेकर की भूमिका निभाई है। उधम सिंह नगर में जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुखों के समीकरणों को साधने में उनकी रणनीति और समन्वय क्षमता स्पष्ट दिखी है। उन्होंने भाजपा संगठन को मजबूत रखते हुए, विरोधी खेमों में भी संवाद के पुल बनाए, जिससे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए सुरक्षित माहौल तैयार हुआ। स्थानीय मुद्दों पर उनकी पकड़, कार्यकर्ताओं से सीधा जुड़ाव और राजनीतिक दूरदृष्टि ने उन्हें न केवल रुद्रपुर बल्कि जिले की राजनीति में निर्णायक शक्ति बना दिया है—जो 2027 में भाजपा के लिए बड़ा लाभकारी साबित हो सकती है।
उत्तराखंड की राजनीति में यह प्रवृत्ति खतरनाक है—जहां विपक्ष सत्ता का विकल्प बनने के बजाय, सत्ता के लिए बैकअप प्लान बन जाता है। ऐसे में लोकतंत्र का असली नुकसान जनता का विश्वास खोना है। उधम सिंह नगर में आज का विरोध कल के गठजोड़ में बदल सकता है, और यही राजनीतिक हकीकत आने वाले वर्षों का चेहरा तय करेगी।
गदरपुर ब्लॉक के पांच निर्वाचित बीडीसी सदस्यों को प्रमाण पत्र न मिलने का मामला सिर्फ एक प्रशासनिक गड़बड़ी नहीं था—यह उस सच्चाई को उजागर करने वाला आईना था, जिसमें उधम सिंह नगर की राजनीति का असली चेहरा साफ नज़र आता है। पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल और किसान नेता तजिंदर सिंह विर्क का कलेक्ट्रेट परिसर में धरना इस बात का संकेत है कि लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरना अब केवल विपक्ष का ही नहीं, बल्कि सत्ता से नाराज़ अपने ही लोगों का भी काम बन चुका है।
हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी और शाम तक प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश प्रशासन की सुस्ती और दबाव-प्रेरित कार्यशैली पर बड़ा तमाचा था। लेकिन इस कानूनी झटके से इतर, असली राजनीतिक तस्वीर और भी दिलचस्प है—उधम सिंह नगर में भाजपा और कांग्रेस के बीच कोई वैचारिक दीवार बची ही नहीं। जिला पंचायत अध्यक्ष से लेकर ब्लॉक प्रमुख तक, हर पद पर भाजपा के कब्जे का रास्ता कांग्रेस खुद साफ कर रही है।
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का सत्ता पक्ष के प्रति यह ‘मुलायम रुख’ महज राजनीतिक रणनीति नहीं, बल्कि निहित स्वार्थों और निजी समीकरणों का परिणाम है। सूत्र बताते हैं कि पार्टी के बड़े नेता मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के प्रति ‘अटूट आस्था’ रखते हैं—इतनी अटूट कि संगठनात्मक मजबूती, कार्यकर्ताओं की भावनाएं और विपक्ष की साख सब कुर्बान करने को तैयार हैं। फेसबुक पर वायरल पोस्टर और सोशल मीडिया चर्चाएं इस ‘अनकहे गठजोड़’ को उजागर करती हैं।
मुख्यमंत्री धामी को इसमें दोहरा लाभ है—एक तरफ भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा रहता है, दूसरी तरफ विपक्ष के बड़े चेहरे भी उनके ‘प्रबंधन कौशल’ से प्रभावित होकर सहयोगी बन जाते हैं। यह उनकी राजनीतिक पकड़ और नेटवर्किंग का प्रमाण है। आज विपक्ष का भी वही रुतबा है जो सत्ता पक्ष का—क्योंकि दोनों एक ही मंच पर खड़े हैं, बस झंडे अलग हैं।
उधम सिंह नगर की इस सियासी हकीकत में टकराव की राजनीति बेमानी है। कार्यकर्ताओं को यह समझना होगा कि यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच का फर्क अब केवल चुनावी पोस्टरों तक सीमित है। जब शीर्ष नेतृत्व एक-दूसरे के हित साधने में व्यस्त है, तो ज़मीनी कार्यकर्ताओं को भी अनावश्यक भिड़ंत छोड़कर, स्थानीय विकास और जनहित के मुद्दों पर एकजुट होना चाहिए।
यह दौर पुष्कर सिंह धामी के लिए सुनहरा है—वो न केवल अपनी पार्टी को संभाल रहे हैं, बल्कि विपक्ष को भी ‘मैनेज’ कर एक ऐसा राजनीतिक समीकरण गढ़ रहे हैं, जिसमें 2027 की राह और भी आसान हो सकती है। सवाल यह है कि क्या यह लोकतंत्र की सेहत के लिए अच्छा है, या फिर यह उस ‘सहज विपक्ष’ की शुरुआत है जो सिर्फ दिखावे के लिए विरोध करता है और असल में सत्ता का सहयोगी बना रहता है।


