अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शपथ ग्रहण से पहले ही स्पष्ट कर चुके थे कि वे अवैध प्रवासियों के साथ कड़ाई से निपटेंगे। यहां तक कि उन्होंने एच-वनबी वीजा समाप्त करने की भी घोषणा कर दी थी, मगर कड़े विरोध के कारण उन्होंने अपना कदम रोक लिया था।

Spread the love

अब अमेरिका प्रशासन ने एक सौ चार अवैध प्रवासी भारतीयों का पहला जत्था वापस भेज दिया है। बताया जा रहा है कि ऐसे करीब अठारह हजार भारतीय मूल के लोग अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे हैं और उन सभी को वापस भेजा जाएगा।

निश्चय ही इस तरह अमेरिका ने भारत सहित दुनिया के तमाम देशों को सख्त संदेश दिया है कि वह अपने आव्रजन कानूनों को सख्ती से लागू कर रहा है। इससे बिना जरूरी कागजात के, अवैध तरीके से, अमेरिका में प्रवेश की कोशिश करने वालों पर लगाम लगेगी। गौरतलब है कि अमेरिका में अवैध घुसपैठ करने वालों में सबसे अधिक लोग भारत के होते हैं। ट्रंप ने कहा था कि ऐसे लोगों की वजह से अमेरिका पर नाहक भारी वित्तीय बोझ पड़ता और सुरक्षा को खतरा पैदा होता है। इसलिए उन सीमाओं पर भारी संख्या में सुरक्षाबल तैनात कर दिए गए हैं, जहां से अवैध प्रवासी प्रवेश करते हैं।

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

विमान का दृश्य विचलित करने वाला था

कोई भी देश अपने यहां लोगों को अवैध रूप से प्रवेश की इजाजत नहीं देता। युद्ध, अकाल आदि स्थितियों में कुछ लोग पलायन कर दूसरे देशों में शरण लेने का प्रयास करते हैं, उन्हें कुछ समय के लिए नजरअंदाज कर दिया जाता है। मगर रोजी-रोजगार की तलाश में गलत तरीके से प्रवेश करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। इसलिए जब ट्रंप ने अवैध प्रवासियों का मुद्दा उठाया, तो भारत ने कहा कि वह अपने नागरिकों को वापस लेने को तैयार है। मगर अमेरिका चूंकि उन्हें अपराधी मानता है, इसलिए वह उनके साथ उसी तरह निपटना चाहता है।

पहली खेप में वापस भेजे गए लोगों को जिस तरह बेड़ियों में जकड़ कर सेना के विमान पर बिठाया गया, वह विचलित करने वाला दृश्य था। जबकि यह हकीकत किसी से छिपी नहीं है कि अवैध रूप से अमेरिका गए लोगों का इरादा किसी प्रकार की आपराधिक गतिविधियां चलाने का नहीं था। वे बेरोजगारी के मारे हुए लोग हैं और वहां जाकर कुछ बेहतर जीवन जीना चाहते हैं। इसलिए उन्हें वापस भेजते वक्त अपराधियों की तरह परेड कराने के बजाय मानवीय तरीका अपनाने की अपेक्षा गलत नहीं है। भारत के साथ तालमेल करके कोई गरिमापूर्ण रास्ता निकाला जा सकता है।

ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी हितों को रखा सर्वोपरि

ट्रंप प्रशासन अमेरिकी हितों को सर्वोपरि रखते हुए कठोर पर कठोर फैसले कर रहा है। उसमें आव्रजन नीतियों को कड़ा बनाने पर विशेष बल है। इससे वहां रह रहे भारतीय मूल के लोगों में स्वाभाविक ही भय है। मगर हकीकत यह भी है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भारतीय मूल के लोगों का योगदान महत्त्वपूर्ण है। उन्हें अगर ट्रंप प्रशासन बिना तार्किक आधार के निकालने या रोकने का प्रयास करेगा, तो उसकी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव जल्दी ही दिखना शुरू हो जाएगा।

यही वजह है कि ट्रंप के जन्मजात नागरिकता संबंधी संवैधानिक प्रावधान के विरुद्ध फैसले को लेकर विरोध तल्ख हो गया है। उसे वहां की अदालत में चुनौती दी गई है। देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा की चिंता ट्रंप को होनी ही चाहिए, मगर मनमाने तरीके से कानून बदलने और फैसले थोपने को वहां कोई स्वीकार नहीं करेगा। इसीलिए उन्हें विरोधों का सामना करना पड़ रहा है।

अमेरिका से भारत लौटने के दौरान उनका दर्दनाक अनुभव सामने आया, जिसमें उनका शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न हुआ.

अमेरिका से भारत लौटने वाले 104 निर्वासितों में 19 महिलाएं और 13 बच्चे भी शामिल थे. इनमें से कुछ ने बताया कि वे पूरी यात्रा के दौरान अपनी कड़ी सुरक्षा में थे, जिनमें हाथों में हथकड़ी और पैरों में जंजीरें बांधी गई थीं. पंजाब के गुरदासपुर से संबंध रखने वाले जसपाल सिंह ने बताया कि “हमें सिर्फ अमृतसर हवाई अड्डे पर पहुंचने के बाद ही हथकड़ी और जंजीरें खोली गईं.”

भारतीयों ने सुनाई दर्दनाक आपबीती

जसपाल सिंह ने बताया कि उन्हें यह भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उन्हें भारत भेजा जा रहा है. वह समझ रहे थे कि उन्हें एक अन्य शिविर में भेजा जाएगा, लेकिन एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि वे भारत वापस जा रहे हैं. जसपाल ने कहा कि वह अमेरिका में 11 दिन तक हिरासत में रहे थे और इसके बाद उन्हें निर्वासित कर दिया गया.

एक और निर्वासित हरविंदर सिंह ने बताया कि उनका यात्रा अनुभव बेहद कठिन था. उन्होंने बताया कि उन्हें कतर, ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, पनामा और निकारागुआ होते हुए मेक्सिको तक भेजा गया. मेक्सिको से अमेरिका जाते समय उन्हें एक नाव में समुद्र पार करना पड़ा, जो डूबने के कगार पर थी, लेकिन किसी तरह वे बच गए. हरविंदर ने कहा, “मैंने पनामा के जंगल में एक व्यक्ति को मरते हुए और समुद्र में एक अन्य व्यक्ति को डूबते हुए देखा.”

ट्रैवेल के दौरान चोरी हो गए सामान

पंजाब से एक और निर्वासित ने बताया कि यात्रा के दौरान उनका सामान चोरी हो गया. उन्होंने कहा, “हमारे कपड़े, जिनकी कीमत लगभग 30,000 से 35,000 रुपये थी, चुराए गए.” यह सब उस कठिन ‘गधे के रास्ते’ के दौरान हुआ, जिसे वे अमेरिका पहुंचने के लिए पार कर रहे थे.

ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद हुई कार्रवाई

अमेरिका द्वारा किए गए यह निर्वासन भारतीय प्रवासियों के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ है. कुछ दिन पहले ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे से पहले यह कार्रवाई की गई, जब अमेरिकी अधिकारियों ने 18,000 अवैध भारतीय प्रवासियों की सूची तैयार की थी. यह घटना भारत और अमेरिका के संबंधों में एक नया मोड़ ला सकती है, क्योंकि इन निर्वासितों के अनुभव और संघर्ष से यह साफ हो जाता है कि अवैध प्रवासन कितनी बड़ी और कठिन समस्या बन चुका है.


Spread the love