
आज रविदास जी की जयंती है।रविदास उस वैकल्पिक संतमत के अनुयायी थे जो शास्त्रों को दूसरों का सत्य मानकर खारिज करता है।संतमत अपने विवेकपूर्ण साधना पर विश्वास करता है। अपने जीवन के चादर को इतना बेदाग रखना चाहता है कि प्रभु के समक्ष चुनने के सिवा कोई विकल्प ही नहीं बचे। रविदास एक ऐसे नगर की कल्पना करते हैं, जहां कहीं गैरबराबरी न हो।सबके पेट को रोटी मिले।समूचा संत संप्रदाय श्रम का साधक है।वे अपनी रोटी श्रम के बल पर कमाते हैं।सबके सब नीच कहीं जाने वाली जातियों से सम्बन्धित हैं।सगुण भक्त सभी लगभग ऊंची जातियों से सम्बन्धित हैं। कबीर के सामने रोटी का संकट नहीं है, वहां सामाजिक न्याय की चिंता है। रविदास के यहां दोनों की चिंता है। संतों का साहस देखने लायक है, जहां वे शोषक वर्ग को अपने तर्कों से धराशाई कर देते हैं। कबीर में उग्रता है, रविदास जी के व्यक्तित्व में नानक सी स्निग्धता और नम्रता पूर्ण कोमलता है।उनका व्यक्तित्व किसी को बदलने में समर्थ है।हर सामाजिक को रविदास का अनुकरण करना चाहिए।वही उनकी पूजा , अर्चना है।


प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
