उत्तराखंड सरकार और खनन विवाद: राजनीति से परे देखना जरूरी!आंकड़ों की सच्चाई और सरकार का पक्ष! राजनीतिक मतभेद और उत्तराखंड का भविष्य

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संपादकीय लेख;उत्तराखंड में अवैध खनन का मुद्दा एक बार फिर राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया है। हाल ही में भाजपा सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने संसद में खनन माफियाओं की गतिविधियों पर सवाल उठाते हुए राज्य सरकार की भूमिका पर उंगली उठाई, जिससे पार्टी के भीतर ही मतभेद उभर आए। वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और अन्य नेताओं ने राज्य में खनन राजस्व में हुई वृद्धि को सरकार की पारदर्शिता और सख्त नीति का परिणाम बताया है।

आंकड़ों की सच्चाई और सरकार का पक्ष

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, उत्तराखंड में खनन से मिलने वाला राजस्व 2017 में 335.27 करोड़ रुपये था, जो अब बढ़कर 1000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण संकेत है कि सरकार ने अवैध खनन पर नियंत्रण पाने के लिए प्रभावी कदम उठाए हैं। राजस्व में यह वृद्धि न केवल प्रशासनिक पारदर्शिता को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि सरकार अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाने में सफल रही है।

खनन विभाग के सचिव बृजेश कुमार संत ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार ने टेक्नोलॉजी और टास्क फोर्स का सहारा लेकर अवैध खनन को नियंत्रित किया है। इसके परिणामस्वरूप, राजस्व में वृद्धि हुई है और माफिया गतिविधियों में कमी आई है। ऐसे में त्रिवेंद्र सिंह रावत का बयान न केवल सरकार की नीतियों को कमजोर करता है, बल्कि यह विपक्ष को अनावश्यक रूप से हमलावर होने का अवसर भी प्रदान करता है।

राजनीतिक मतभेद और उत्तराखंड का भविष्य

त्रिवेंद्र रावत के बयान से पार्टी के भीतर असहमति की स्थिति उत्पन्न हुई है। हालांकि, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर संयम बनाए रखना आवश्यक है। किसी भी वरिष्ठ नेता को सार्वजनिक रूप से ऐसा बयान देने से बचना चाहिए जिससे पार्टी और सरकार की छवि धूमिल हो।

इस पूरे विवाद के बीच एक और चिंताजनक पहलू यह है कि नौकरशाही भी इस मामले में खुलकर प्रतिक्रिया देने लगी है। उत्तराखंड आईएएस एसोसिएशन ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के एक बयान पर आपत्ति जताई और इसे अधिकारियों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाला करार दिया। राजनीति और प्रशासन के बीच इस तरह की खींचतान सरकार की कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकती है।

मुख्यमंत्री धामी के नेतृत्व में आगे का रास्ता

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में उत्तराखंड सरकार ने कई सुधारात्मक कदम उठाए हैं, जिनमें पारदर्शी खनन नीति भी शामिल है। हालांकि, यह आवश्यक है कि सरकार अपने सभी नेताओं को एकजुट रखते हुए नीतिगत फैसलों को जनता तक स्पष्ट रूप से पहुंचाए।

उत्तराखंड एक संवेदनशील पर्यावरणीय क्षेत्र है, जहां खनन को लेकर संतुलन बनाए रखना अनिवार्य है। सरकार को चाहिए कि वह पारदर्शी नीतियों के साथ खनन प्रक्रिया को नियंत्रित रखे और उन गलतफहमियों को दूर करे, जो राजनीतिक बयानों के कारण उत्पन्न होती हैं।

इस पूरे प्रकरण से यह स्पष्ट होता है कि सरकार को अपने ही नेताओं को नसीहत देने की जरूरत है कि वे किसी भी मुद्दे को राजनीतिक मंच पर लाने से पहले पार्टी के भीतर विचार-विमर्श करें। मुख्यमंत्री धामी के नेतृत्व में उत्तराखंड सरकार ने खनन क्षेत्र में कई सकारात्मक कदम उठाए हैं, जिन्हें और अधिक मजबूती से लागू करने की आवश्यकता है। राजस्व वृद्धि के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय समुदायों के हितों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। उत्तराखंड को विकास और पर्यावरणीय संतुलन के बीच एक मजबूत नीति अपनानी होगी, ताकि राज्य की जनता का सरकार पर भरोसा बना रहे।


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