
हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा है कि उसने आरक्षण किस आधार पर तय किया।




चीफ जस्टिस ऋतु बाहरी और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की डिविजन बेंच ने गुरुवार को इस मामले में सुनवाई की। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि आदेश की एक कॉपी लोक सेवा आयोग को भी भेजें, ताकि कोई कार्यवाही आगे न हो। हालांकि हाईकोर्ट ने ऐक्ट पर तत्काल किसी भी तरह की कोई रोक से इनकार कर दिया।
याचिकाकर्ता बोले : इस मामले में देहरादून निवासी भुवन सिंह समेत अन्य ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर संबंधित ऐक्ट को असंवैधानिक बताते हुए निरस्त करने की मांग की है।याचिकाकर्ताओं ने सुनवाई के दौरान अदालत को बताया कि पहले इस मामले में एक महत्वपूर्ण आदेश देते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण नहीं दे सकती क्योंकि राज्य के सभी नागरिक आंदोलनकारी हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश को चुनौती तक नहीं दी और अब 18 अगस्त 2024 को राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण देने के लिए कानून भी बना दिया। याचिकाकर्ता ने कहा कि यह कानून हाईकोर्ट के पूर्व में दिए आदेश के खिलाफ है।
सरकार का तर्क : याचिकाकर्ताओं के तर्क का विरोध करते हुए राज्य के महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) ने कहा कि राज्य सरकार को इसमें कानून बनाने की शक्ति है। सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए नई आरक्षण नीति तय करने का आदेश दिया है। वर्तमान में राज्य की परिस्थितियां बदल गई हैं, उसी को आधार मानते हुए सरकार ने आरक्षण संबंधी कानून बनाया।
उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद
