news/hindustan- global-times- उत्तराखण्ड “देवभूमि” के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह समग्र क्षेत्र धर्ममय और दैवशक्तियों की क्रीड़ाभूमि तथा हिन्दू धर्म के उद्भव और महिमाओंं की सारगर्भित कुंजी व रहस्यमय है। 

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09 नवंबर 2000 को भारत के 27 वें राज्य के रूप में उत्तराखंड का गठन हुआ, और इसे उत्तर प्रदेश के उत्तरी हिस्से से अलग किया गया, तब इसे उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था,

साल 2007 में इसका नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया. उत्तराखंड पूरी तरह पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है. उत्तराखंड की स्थापना की 23वीं वर्षगांठ पर इससे जुड़े तमाम पहलुओं पर बात करेंगे. हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं के आंचल में स्थित, यह मुख्यतः एक पहाड़ी राज्य है. इसके उत्तर में तिब्बत (जो अब चीन के हिस्से में है) और पूर्व में नेपाल के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमाएं हैं.

देव भूमि है उत्तराखंड

 उत्तराखंड के ग्लेशियरों, नदियों, घने जंगलों और बर्फ से ढकी पर्वत चोटियों के साथ प्राकृतिक संसाधनों, विशेष रूप से जल और जंगलों का प्रमुख स्त्रोत है. चार-धाम, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के चार सबसे पवित्र और पूजनीय हिंदू मंदिर इन पहाड़ी अंचलों में स्थित हैं. इसलिए यह देवभूमि के नाम से भी लोकप्रिय है.

उत्तराखंड की जनसंख्या

  उत्तराखंड राज्य के मूल निवासियों को आमतौर पर उनके क्षेत्र के आधार पर गढ़वाली या कुमाऊंनी कहा जाता है. भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, यहां की जनसंख्या 10,086,292 है, जो इसे भारत का 20वां सबसे अधिक आबादी वाला राज्य प्रमाणित करती है. यहां की प्रचलित भाषाएं गढ़वाली, कुमाऊनी, पंजाबी और नेपाली हैं, लेकिन आधिकारिक भाषा हिंदी है.

यूनेस्को प्रमाणित विश्व धरोहर स्थल

यहां के दो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल यानी फूलों की घाटी ‘नंदा देवी’ और राष्ट्रीय उद्यान दुनिया भर में लोकप्रिय हैं. उत्तराखंड अपने भीतर बहुमूल्य वनस्पतियों और जीवों की दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों का स्थल भी माना जाता है.

भारतीय सेना में सबसे ज्यादा सैनिक उत्तराखंड के हैं

किसी भी अन्य भारतीय राज्य की तुलना में भारतीय सेना में सबसे ज्यादा सैनिक उत्तराखंड से हैं. यही नहीं, पिछले 10 वर्षों से उत्तराखंड ने देश में सबसे अधिक सैन्य अधिकारी भी दिये हैं. उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य से भारतीय सेना में यह योगदान यकीनन प्रशंसनीय एवं हैरान करने वाला है.

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, अवतार सिंह बिष्ट, अध्यक्ष उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद

गंगा यमुना का उद्गम स्थल

भारत की दो सर्वाधिक पूजनीय एवं पवित्र नदियों, गंगा और यमुना का उद्गम स्थल भी उत्तराखंड ही है. गौरतलब है कि गंगा नदी गंगोत्री से निकलती है, जबकि यमुना हिमालय में यमुनोत्री से निकलती है. अपने पवित्र जल से ये संपूर्ण भारतवासियों को मोक्ष दिलाती हैं. हिंदू पुराण इन नदियों की चर्चा बिना अधूरी मानी जाएगी.

राजनीतिक बिसात पर दो पार्टियों का वर्चस्व

राजनीति की बिसात पर यहां भारतीय जनता पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वर्चस्व है. राज्य के गठन के बाद से इन दोनों पार्टियों ने बारी-बारी से उत्तराखंड पर शासन किया है. वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और 5वीं विधानसभा में सदन के नेता हैं.

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था

उत्तराखण्ड की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है. राज्य की 90 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्यों में लगी हुई है. उत्तराखंड का सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2004 के लिए वर्तमान मूल्यों के आधार पर अनुमानित 280.32 अरब रुपए था. उत्तर प्रदेश से अलग होकर बना यह राज्य, पुराने उत्तर प्रदेश के कुल उत्पादन का 8 प्रतिशत उत्पन्न करता है. आर्थिक सर्वेक्षण 2021 से 2022 के अनुसार उत्तराखंड की विकास दर 6.13 प्रश रही तथा अर्थव्यवस्था के आकार में 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई. साल 2020-2021 में प्रचलित भावों पर राज्य सकल घरेलू उत्पाद 53.832 करोड़ रहने का अनुमान है.

पर्यटकों की सैरगाह है उत्तराखंड

उत्तराखंड में कई पर्यटनों का मनोरम स्थल है. उदाहरण के लिए मसूरी जिसे पहाड़ों की रानी भी कहा जाता है, औली, ऋषिकेश, हरिद्वार, उत्तरकाशी, नैनीताल, अल्मोड़ा, धनोल्टी, रुद्रप्रयाग तथा दर्जनों ऐसी जगहें हैं, जो दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. यहां पूरे साल देशी-विदेशी सैलानियों का आवागमन बना रहता है. इसलिए इसे पर्यटकों की सैरगाह भी कहा जाता है.

यहां विश्व प्रसिद्ध पर्वतारोहण संस्थान हैं

भारत के शीर्ष दो पर्वतारोहण संस्थान उत्तराखंड में स्थित हैं. इसमें एक उत्तरकाशी में स्थिति नेहरू पर्वतारोहण संस्थान है, जिसे 1965 में स्थापित किया गया था. यह देश के सबसे प्रसिद्ध स्थानों में से एक है

उत्तराखंड प्रागैतिहासिक काल को चित्र शैली का काल भी कहा जाता है क्योंकि इस काल में ज्यादातर सूचनाएं चित्र शैलियों के माध्यम से मिलती थी ऋग्वेद में उत्तराखंड को देवभूमि या मनीषियों की पुण्य भूमि और एतरेयपरिषद (आत्रेयब्राह्मण) में उत्तरकुरु ,व स्कंद पुराण में मानस खंड व केदारखंड दो भागों में बताया गया है जिसमें मानस खंड शब्द कुमाऊं और केदारखंड शब्द का प्रयोग गढ़वाल क्षेत्र के लिए किया गया है।
उत्तराखंड को इस काल में अन्य नाम ब्रह्मपुर उत्तरखंड और पाली भाषा में लिखे बौद्ध ग्रंथों में हिमवंत भी कहा गया है। इस काल में गढ़वाल क्षेत्र को बद्री का आश्रम और स्वर्ग आश्रम कहते थे और कुमाऊं क्षेत्र को कुर्मांचल नाम से संबोधित किया जाता था। उत्तराखंड में दो प्रसिद्ध विद्यापीठ भी स्थित थे बद्री का आश्रम और कण्वाश्रम।

कण्वाश्रम मालिनी नदी के तट पर था और यह स्थान राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कहानी के लिए प्रसिद्ध है और इसी आश्रम में शकुंतला के पुत्र भरत का जन्म हुआ इनके बारे में शेर के दांत गिरने वाली कथा प्रचलित है और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा इसके साथ ही महाकवि कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतलम् की रचना भी इसी आश्रम में की थी।
वर्तमान समय में यह स्थान पौड़ी (चौकाघाट) के नाम से जानी जाती है उत्तराखंड राज्य कितना प्राचीन है इसके सबूत आज भी यहां मौजूद है जैसे अल्मोड़ा में स्थित लाखु गुफा, लवेथाप, पेट शाला और चमोली में स्थित गोरखा गुफा, मलारी गुफा और कीमिनी गांव, उत्तरकाशी में हुडली, बनकोट पिथौरागढ में रामगंगा घाटी।

उत्तराखंड का ऐतिहासिक काल

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स

कुणिंद वंश / शक वंश /नाग वंश

ऐतिहासिक काल के दौरान अनेक राजनीतिक शक्तियों का उदय हुआ। उत्तराखंड की पहली राजनीतिक शक्ति कुणिंद वंश थी और इस वंश का परम प्रतापी राजा अमोघभूति था। इस वंश ने सोने चांदी व तांबे के सिक्के बनाएं जिस पर राज कुणिंदस अमोघभूति लिखा था। चांदी के सिक्कों पर मृग और देवी के चित्र बनाए गए।
उसके बाद आए शक वंश जिन्होंने कई सूर्य मंदिर बनाए। जिनमें से कटारमल का सूर्य मंदिर सबसे प्रसिद्ध है जो अल्मोड़ा में स्थित है और शक संवत चलाया जो कि एक प्रकार का कैलेंडर है । इसके बाद बहुत कम समय तक राज करने वाले नागवंश और मौखरीवंश आए।  फिर आए वर्धन वंश जिसके राजा हर्षवर्धन थे। हर्षवर्धन के राज के समय बाणभट्ट ने अपनी पुस्तक हर्ष चरित लिखी।

चीनी यात्री ह्वेनसांग भी इसी समय भारत आए उन्होंने अपनी पुस्तक सी -यू -की (si-yu-ki) में उत्तराखंड को (po-li-hi-mo-pu-lo) कहा था । साथ ही हरिद्वार को मो-यो-ली (mo-yo-li ) कहा था। 648 ईसवी में राजा हर्षवर्धन की मृत्यु हो गई और उसका राज्य कई टुकड़ों में विभाजित हो गया। फिर इसके बाद कार्तिकेयपुर राजवंश का का उदय हुआ ।
 

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम

कार्तिकेयपुर राजवंश

कार्तिकेयपुर राजवंश को कुमाऊं का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश माना जाता है ,और इस राजवंश के प्रथम राजा ,राजा बसंत देव थे।  जिन्हें परमभदवारक महाराजाधिराज परमेश्वर की उपाधि प्राप्त थी। उनकी शाखाएं कुछ इस प्रकार थी रजवार वंश जो असकोटा में था। मलल वंश दोती में ,और असंतिदेव वंश कतयूर में था। जिसमें सबसे ज्यादा प्रचलित रहा कत्यूरी वंश।
इस राजवंश ने लगभग 300 सालो सालों तक कार्तिकेय पुर को अपनी राजधानी बना कर रखा। जो वर्तमान का चमोली स्थित जोशीमठ है । इसी समय एक नया वंश पँवार वंश का उदय हो रहा था। और असुरक्षा को ध्यान में रखकर कार्तिकेयपुर वंश ने अपनी राजधानी कार्तिकेय पुर बदलकर कुमाऊं में बैजनाथ (बागेश्वर) और कार्तिकेयपुर के बीच की घाटी कत्यूरी घाटी में स्थापित कर दी ।
इस वंश के शासनकाल में आदि गुरु शंकराचार्य उत्तराखंड आए जिन्होंने विस्तृत रूप से बद्रीनाथ और केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया। जिसकी वजह से यहां बौद्ध धर्म का प्रभाव कम हुआ ऐसी भी मान्यता है कि बद्रीनाथ पहले बौद्ध मठ हुआ करता था जिसे सम्राट अशोक ने बनवाया था आदि गुरु शंकराचार्य की मृत्यु 820 ईसवी में केदारनाथ में हुई।
इसके बाद सन् 1515 में पँवार वंश के 37वें शासक अजय पाल आए जिन्होंने गढ़वाल के 52 गढ़ो को जीतकर बनाया गढ़वाल, जिसकी राजधानी पहले देवलगढ़ थी और 1517 में बदलकर श्रीनगर कर दी गई इसके बाद इसी वंश के शासक रहे बलभद्र को ‘बहलोल लोदी’ ने शाह की उपाधि दी और इसके बाद पवॉर वंश के शासकों ने अपने नाम के आगे शाह लगाना शुरू कर दिया।
इसी बीच पश्चिमी नेपाल के राजा अशोक चलल ने कत्यूरी वंश पर आक्रमण कर दिया और कुछ हिस्सों पर अधिकार भी कर लिया। और कत्यूरी वंश का आखिरी शासक था ब्रह्मदेव जिसे वीरमदेव और वीर देव भी कहते थे। जब 1896 में तैमूर लंग का आक्रमण भारत में हुआ तो कत्यूरी वंश का आखिरी शासक हरिद्वार में शहीद हो गया और यहीं कत्यूरी वंश की समाप्ति हो गई।

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम अवतार सिंह बिष्ट

कुमाऊं का चंद राजवंश

इसके बाद आया चंद वंश ,चंद वंश का पहला राजा सोमचंद था और उनकी राजधानी चंपावत मे थी। चंद वंश का राजचिह्न गाय थी। इसी राजवंश में एक राजा भीष्म चंद आए इन्होंने राजधानी चंपावत से अल्मोड़ा बदलने की सोची और इसी उद्देश्य से उन्होंने खगमरा किले का निर्माण भी करवाया ,किंतु जब यह किला बनकर तैयार हुआ तो राजा भीष्म चंद की मृत्यु हो गई ।

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स अवतार सिंह बिष्ट

इसके बाद इसी वंश के राजा बालों कल्याण चंद ने चंपावत राजधानी को बदलकर अल्मोड़ा कर दिया और वहां लाल मंडी किला और मल्ला महल किले का निर्माण किया। मुगल कालीन साहित्य तुजुक जहांगीर और शाहनामा से ही पता चलता है कि चंद राजाओं के मुगल राजाओं से भी संबंध थे 1790 में चंद्र वंश के अंतिम राजा महेंद्र चंद्र को हराकर गोरखाओं ने कुमाऊं क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।
गढ़वाल का पंवार राजवंश

इसके बाद आती है नवीं शताब्दी जिसमें गढ़वाल 52 गढ़ो में बट गया था इसमें सबसे शक्तिशाली राजा थे भानु प्रताप । इसी दौरान गुजरात का एक शासक कनक पाल यहां आया जिसने भानु प्रताप की पुत्री से शादी कर यही बचने की सोची जिसके पश्चात कनक पाल ने पवॉर व परमार वंश की स्थापना की और चांदपुर जो वर्तमान समय में गैरसैंण है उसको अपनी राजधानी बनाया।
इसके बाद 1936 में राजा महापति शाह की मृत्यु के बाद उनके अल्प वयस्क पुत्र पृथ्वीपति शाह के को राजा बनाया गया। अल्प वयस्क होने के कारण उन्हें एक संरक्षिका रानी कर्णावती के साथ रखा गया ।
1936 में ही मुगल सम्राट के सेनापति नवजातखान ने दून घाटी पर आक्रमण कर दिया पर तब रानी कर्णावती ने यह हमला संभाल लिया और साथ ही कई मुगल सैनिकों को बंदी बना लिया था जिनकी नाक रानी कर्णावती के आदेश पर कटवा दी गई थी इसी वजह से रानी कर्णावती को नाक कटी रानी भी कहा जाता था।

उत्तराखंड पर गोरखाओं का शासन

•1790 में गोरखाओ ने गढ़वाल पर आक्रमण किया और उन्हें पराजय मिली ,1803 में गढ़वाल जब भयंकर भूकंप से पीड़ित था तो गोरखाओ ने फिर एक बार गढ़वाल पर आक्रमण किया और इस बार कुछ हिस्सों पर जीत भी पाली 14 मई 1804 में राजा प्रद्युमन शाह ने देहरादून के खुड़बूड़ा मैदान में गोरखाओ के खिलाफ युद्ध लड़ा जिसमें उनकी मृत्यु हो गई इसके पश्चात ज्यादातर उत्तराखंड गोरखाओ के अधीन हो गया।

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स के माध्यम से उत्तराखंड की संस्कृति, रीति रिवाज ,अध्यात्म, पलायन, बेरोजगारी, राजनीतिक पार्टियों का सत्ता का संघर्ष, सरकार की नीतियों को जन-जन तक पहुंचाना, भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड की परिकल्पना को सार्थक रूप देने के लिए पहल करना।। हर वह छोटी व बड़ी खबर जो उत्तराखंड राज्य से संबंधित होंगी ,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स प्राथमिकता से छपेगा। सभी पाठक जो नियमित रूप से हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स का अनुसरण करते हैं। एवं सभी प्रदेशवासियों को उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस की शुभकामनाएं, जय उत्तराखंड अवतार सिंह बिष्ट रूद्रपुर उत्तराखंड


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