30जून 2024 देहरादून उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों का सीएम आवास कूच, 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण बहाल करने की रखी मांग

Spread the love

देहरादून में 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण बहाल करने की मांग को लेकर राज्य आंदोलनकारी सड़कों पर उतरे. इतना ही नहीं क्षैतिज आरक्षण समेत अन्य मांगों को लेकर मुख्यमंत्री आवास कूच किया, लेकिन पुलिस ने रोक लिया. उनका कहना है वो अपनी मांगों को लेकर लगातार लामबंद हैं, लेकिन सरकार की ओर से कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. “उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच”, “चिन्हित राज्य आंदोलनकारी संयुक्त समिति/

क्षैतिज आरक्षण मामले पर राज्य आंदोलनकारियों ने खोला मोर्चा, सरकार की मंशा पर उठाये सवाल। उत्तराखंड सरकार के द्वारा राज्य आंदोलनकारी के पक्ष में जितने भी शासनादेश निकाले जिसमें चिन्हित करण के साथ-साथ अन्य शासनादेश भी थे जिसमें 13 जिलों के जिला अधिकारियों के द्वारा उनका पूरी तरह से पालन नहीं किया. उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार ने राज्य आंदोलनकारियों को आश्वासन दिया था, लेकिन प्रदेश के अधिकारी सरकार पर शासनादेशों पर पलीता लगाने का काम कर रहे हैं.

हिंदुस्तान Global Times/। प्रिंट मीडिया: शैल Global Times /Avtar Singh Bisht ,रुद्रपुर, उत्तराखंड।

उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी अपने तय समय पर शहीद स्मारक देहरादून से मुख्यमंत्री आवास कुच ‍कार्यक्रम कार्यक्रम किया, उपरांत मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य आंदोलनकारी को वार्ता हेतु अपने कार्यालय पर आमंत्रित किया ।राज्य आंदोलनकारी का प्रतिनिधिमंडल माननीय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी में से जब वार्ता हेतु पहुंचा । माननीय मुख्यमंत्री के द्वारा राज्य आंदोलनकारी को सायं 6:00 बजे का समय दिया गया। राज्य आंदोलनकारी आक्रोशित हैं। अभी भी धरना स्थल पर बैठे हुए हैं । राज्य आंदोलनकारी का स्पष्ट कहना है । धरना स्थल पर ही माननीय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी राज्य आंदोलनकारी से वार्ता करें। उग्र आंदोलन की दे दी है चेतावनी।

धरना स्थल पर स्थिति तनावपूर्ण हो चुकी है लेकिन नियंत्रण में है।

भू अध्यादेश मूल निवास , उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी , उत्तराखंड एकमात्र हिमालयी राज्य है, जहां राज्य के बाहर के लोग पर्वतीय क्षेत्रों की कृषि भूमि, गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए खरीद सकते हैं। वर्ष 2000 में राज्य बनने के बाद से अब तक भूमि से जुड़े कानून में कई बदलाव किए गए हैं और उद्योगों का हवाला देकर भू खरीद प्रक्रिया को आसान बनाया गया है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से राज्य आंदोलनकारी की वार्ता के उपरांत मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी ने आश्वासन दिया कि एक सप्ताह के अंदर माननीय राज्यपाल से वार्ताकार 10% आरक्षण बहाल करने के लिए कोशिश की जाएगी।

लोगों में गुस्सा इस बात पर है कि सशक्त भू कानून नहीं होने की वजह से राज्य की जमीन को राज्य से बाहर के लोग बड़े पैमाने पर खरीद रहे हैं और राज्य के संसाधन पर बाहरी लोग हावी हो रहे हैं, जबकि यहां के मूल निवासी और भूमिधर अब भूमिहीन हो रहे हैं। इसका असर पर्वतीय राज्य की संस्कृति, परंपरा, अस्मिता और पहचान पर पड़ रहा है।

क्षैतिज आरक्षण के मसले पर चढ़ा राज्य आंदोलनकारियों का पारा, सीएम आवास कूच
आंदोलनकारी सरकार से 10% क्षैतिज आरक्षण जो की माननीय राज्यपाल के वहां लंबित पड़ा है।पुनर्बहाल की मांग पूरी करते आ रहे हैं। अपनी मांगें पूरी नहीं होने के बाद आंदोलनकारियों ने मोर्चा खोल दिया है। मुख्यमंत्री आवास पूछ में मुख्य रूप से जगमोहन नेगी, धीरेंद्र प्रताप पूर्व राज्य मंत्री,प्रदीप कुकरेती ,डॉ विजेंद्र पोखरियाल, देवी प्रसाद व्यास,NC भट्ट, बाल गोविंद डोभाल , सावित्री नेगी, शिव शंकर भाटिया,दीपक रौतेला, मायाराम नयाल, विनोद जुगरान,? कमला पांडे, मीरा , पुष्पा नेगी, विसंबर दत्त भौटीयाल राजेंद्र प्रसाद पनौली सुरेश थापा, राजेश शर्मा,,,,,क्रमश:

क्या है मूल निवास प्रमाण पत्र

उत्तराखंड में 1950 के मूल निवास की समय सीमा को लागू करने की मांग की जा रही है। देश में मूल निवास यानी अधिवास को लेकर साल 1950 में प्रेसीडेंशियल नोटिफिकेशन जारी हुआ था।

देश का संविधान लागू होने के साथ वर्ष 1950 में जो व्यक्ति जिस राज्य का निवासी था, वो उसी राज्य का मूल निवासी होगा। वर्ष 1961 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने दोबारा नोटिफिकेशन के जरिये ये स्पष्ट किया था। इसी आधार पर उनके लिए आरक्षण और अन्य योजनाएं चलाई गई ।
पहाड़ के लोगों के हक और हितों की रक्षा के लिए ही अलग राज्य की मांग की गई थी। उत्तराखंड बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी की अगुवाई में बनी भाजपा सरकार ने राज्य में मूल निवास और स्थायी निवास को एक मानते हुए इसकी कट ऑफ डेट वर्ष 1985 तय कर दी। जबकि पूरे देश में यह वर्ष 1950 है। इसके बाद से ही राज्य में स्थायी निवास की व्यवस्था कार्य करने लगी।

लेकिन मूल निवास व्यवस्था लागू करने की मांग बनी रही। वर्ष 2010 में मूल निवास संबंधी मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने देश में एक ही अधिवास व्यवस्था कायम रखते हुए, उत्तराखंड में 1950 के प्रेसीडेंशियल नोटिफिकेशन को मान्य किया।


Spread the love