इसके लिए उत्तराखंड सरकार ने सामान नागरिक संहिता लागू करने के लिए नियमों/उपनियमों को बनाने के लिए 5 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है. हालांकि, नियमावली बनने के बाद उत्तराखंड सरकार द्वारा इसे पूरे राज्य में लागू कर दिया जाएगा. इसको लेकर सीएम धामी ने प्रदेशवासियों को बधाई भी दी है. कहा, प्रदेश में सामाजिक समानता की सार्थकता को यूसीसी सिद्ध करेगा.
कमेटी में ये 5 सदस्य तय करेंगे नियम
बता दें कि, समान नागरिक संहिता का कानून (UCC) लागू करने के लिए नियम बनाने वाली 5 सदस्यों वाली कमेटी में पूर्व आईएएस शत्रुघ्न सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौर, दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल, अपर पुलिस महानिदेशक अमित सिन्हा और उत्तराखंड के स्थानीय आयुक्त अजय मिश्रा शामिल हैं. यह कमेटी जल्द ही एक बैठक कर यूसीसी कानून लागू करने के लिए जरूरी नियम उप नियम बनाने का काम शुरू करेगी.
6 फरवरी को सीएम धामी ने पेश किया था विधेयक
बता दें कि 6 फरवरी 2024 को विधानसभा में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड-2024 विधेयक पेश कर दिया था. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा सदन में पेश किए गए विधेयक में 392 धाराएं थीं, जिनमें से केवल उत्तराधिकार से संबंधित धाराओं की संख्या 328 थी. चूंकि, समान नागरिक संहिता समवर्ती सूची का विषय है, इस विषय पर राज्य और केंद्र दोनों ही कानून बना सकते हैं. लेकिन समान मुद्दे पर कानून होने पर केंद्र का कानून प्रभावी माना जाता है. इसीलिए इस बिल को उत्तराखंड विधानसभा से पारित होने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा गया था.
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कई मुस्लिम संगठनों ने जताई सहमति
सामान्य नागरिक संहिता कानून लागू होने के बाद माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ सकता है. कुछ नेताओं का आरोप है कि यह मुस्लिम समुदाय के खिलाफ है, जबकि भाजपा और केंद्र सरकार लगातार इसे सभी वर्गों के लिए समान रूप से उपयोगी और विकास की दिशा में उठाया गया क्रांतिकारी कदम बताती रही है. कई मुस्लिम संगठनों और महिला अधिकार संगठनों ने भी सरकार के रुख से अपनी सहमति जताई है.
प्रदेश में सभी धर्मों के व्यक्तियों के लिए समान कानून लागू करने के उद्देश्य से प्रदेश सरकार विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक लेकर आई। विधानसभा से पारित होने पर सरकार ने इसे राजभवन से स्वीकृति मिलने के बाद अनुमति के लिए राष्ट्रपति को भेजा था। अब राष्ट्रपति ने इसे स्वीकृति प्रदान कर दी है।
प्रदेश सरकार ने इसे अब अधिनियम यानी कानून के रूप में अधिसूचित कर दिया है। स्वतंत्रता के बाद उत्तराखंड देश का ऐसा पहला प्रदेश बन गया है, जिसने समान नागरिक संहिता की दिशा में निर्णायक पहल की है।
संहिता में मुख्य रूप से महिला अधिकारों के संरक्षण को केंद्र में रखा गया है। इसे चार खंडों, यानी विवाह और विवाह विच्छेद, उत्तराधिकार, सहवासी संबंध (लिव इन रिलेशनशिप) और विविध में विभाजित किया गया है।
इसमें बहु विवाह, बाल विवाह, तलाक, इद्दत, हलाला जैसी प्रथाओं पर रोक लगाई गई है। विवाह का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। इसमें सभी धर्म व समुदाय के सभी वर्गों में पुत्र व पुत्री को संपत्ति पर बराबर अधिकार दिया गया है। संहिता में जायज व नाजायज बच्चे में कोई भेद नहीं किया गया है। लिव इन रिलेशन का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है।
प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू होने से सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलने के साथ ही महिला उत्पीड़न पर भी रोक लगेगी। प्रदेश में सामाजिक समानता की सार्थकता को सिद्ध करते हुए समरसता को बढ़ावा देने में संहिता महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन के अनुरूप उत्तराखंड सरकार नागरिकों के हितों के संरक्षण और उत्तराखंड के मूल स्वरूप को बनाए रखने के लिए संकल्पित है।
-पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड।