वैद्य की बेदर्दी: उत्तराखंड में झोलाछाप डॉक्टरों का फैलता जाल और जनता की लुटती ज़िंदगियाँ!खोई हुई जवानी के झूठे वादे: झोलाछाप इलाज और भ्रामक इश्तिहारों की खतरनाक दुनिया

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वैद्य की बेदर्दी: उत्तराखंड में झोलाछाप डॉक्टरों का फैलता जाल और जनता की लुटती ज़िंदगियाँ

लेखक: अवतार सिंह बिष्ट, रुद्रपुर

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स विशेष संपादकीय

उत्तराखंड जैसे पहाड़ी और शांत राज्य में जहां की मिट्टी ने देश को ऋषि, वेद, और आयुर्वेद जैसे अमूल्य उपहार दिए, वहीं आज उसी भूमि पर नकली वैद्य और झोलाछाप डॉक्टरों की भरमार हो गई है। ये नकली वैद्य सस्ते दामों पर एक्सपायरी दवाएं, झूठी जड़ी-बूटियों और फर्जी इलाज के नाम पर लोगों की सेहत और जिंदगी दोनों से खिलवाड़ कर रहे हैं। यह सिर्फ स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा नहीं है, बल्कि यह कानून, व्यवस्था और मानवता के खिलाफ खुला षड्यंत्र है।

शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता

चरखी दादरी से उत्तराखंड तक—झोलाछाप का नेशनल नेटवर्क

हरियाणा के चरखी दादरी में हाल ही में उजागर हुआ एक क्लीनिक इस पूरे गिरोह की कार्यप्रणाली की बानगी भर है। बिना लाइसेंस, बिना डिग्री, एक झोलाछाप हकीम लुकमान कुरैशी सड़कों पर क्लीनिक चलाता है और ‘मर्दाना शक्ति’ बढ़ाने के नाम पर नकली तेल, गोलियाँ और पुड़िया बेचता है। जांच में पता चला कि ये दवाएं उत्तराखंड, तेलंगाना और अन्य राज्यों में भी कुरियर की जाती थीं। सवाल उठता है कि उत्तराखंड में ऐसी कितनी दुकानें हैं जो वैधता की परवाह किए बिना जनता को बीमार कर रही हैं?

दवाओं की असली पहचान या मौत की पुड़िया?

उत्तराखंड के बाज़ारों, मेलों, और सड़कों के किनारे बिक रही आयुर्वेदिक दवाओं की सच्चाई बड़ी खौफनाक है। मेडिकल स्टोर से एक्सपायरी डेट की सेक्स पावर, शुगर, कैंसर, और पथरी की दवाएं झोलाछाप वैद्य सस्ते में खरीद लेते हैं। फिर इन दवाओं को पीसकर, उनमें इमली की चटनी जैसी गंध मिलाकर, गोल-गोल गोलियाँ बनाकर बेचते हैं। ये गोलियाँ या तो असर नहीं करतीं या फिर शरीर में ज़हर का काम करती हैं। कई मामलों में इन दवाओं के कारण मरीजों की हालत गंभीर हो जाती है या उनकी मृत्यु तक हो जाती है।

इमली की चटनी और जड़ी-बूटियों का ‘लॉलीपॉप’

ऐसे झोलाछाप वैद्य नकली दवाओं को प्राकृतिक बताकर लोगों को भ्रमित करते हैं। वे कहते हैं कि इन गोलियों में ‘शुद्ध हिमालयी जड़ी-बूटी’ है, पर असल में वे पुरानी एक्सपायरी दवाएं होती हैं जिनका प्रभाव खत्म हो चुका होता है। इन्हें 2000 माग की खुराक बनाकर दिया जाता है, जबकि असली डॉक्टर इतनी भारी खुराक की कल्पना भी नहीं करता। यह सब इसलिए किया जाता है ताकि मरीज को ‘तुरंत’ असर महसूस हो और वह दोबारा उसी वैद्य के पास लौटे।

झूठे इलाज, असली मौतें

रुद्रपुर, हल्द्वानी, कोटद्वार और श्रीनगर जैसे शहरों में पिछले तीन वर्षों में दर्जनों मामले सामने आए हैं, जहां नकली दवाओं से लोगों की सेहत बिगड़ गई या उनकी मृत्यु हो गई। कई मरीजों के शरीर में फोड़े-फुंसी, मानसिक असंतुलन, हृदयगति रुकने जैसी समस्याएं उत्पन्न हुईं। लेकिन इन मामलों में कार्रवाई या तो नहीं हुई या फिर दिखावटी जांच के बाद फाइलें ठंडे बस्ते में डाल दी गईं।

सरकार और प्रशासन की नाकामी या मिलीभगत?

उत्तराखंड में ड्रग्स कंट्रोलर विभाग और स्वास्थ्य महकमा, दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि वे नियमित जांच करें। परंतु, अक्सर देखने में आया है कि झोलाछाप वैद्य या तो नेताओं के संरक्षण में फलते-फूलते हैं या स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत से बच निकलते हैं। हर जिले में सड़कों के किनारे बिना लाइसेंस क्लीनिक चल रहे हैं, पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। यह सवाल खड़ा करता है—क्या राज्य की कानून व्यवस्था इन फर्जी डॉक्टरों से हार मान चुकी है?

कानून क्या कहता है, और उस पर अमल क्यों नहीं होता?

इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट 1956 और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 के तहत बिना लाइसेंस दवा बेचना, इलाज करना और झोलाछाप क्लीनिक चलाना गैरकानूनी है। फिर भी उत्तराखंड में ये लोग खुलेआम नियमों की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। ड्रग इंस्पेक्टर की भूमिका अक्सर संदेह के घेरे में रहती है। अगर वे समय-समय पर मेडिकल स्टोर और सड़कों पर बिक रही दवाओं की जांच करें तो ये जाल खत्म किया जा सकता है।

जनता की ज़िम्मेदारी और जागरूकता का अभाव

अक्सर मरीज खुद ही ऐसे वैद्यों के पास जाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ये सस्ता और जल्दी असर करने वाला इलाज है। पढ़े-लिखे लोग भी शर्म या डर के कारण सेक्स पावर की दवाएं खुले मेडिकल से लेने की बजाय इन फर्जी वैद्यों के पास जाते हैं। लेकिन उन्हें यह नहीं समझ आता कि ये इलाज उनकी सेहत के लिए जानलेवा हो सकता है। जागरूकता की कमी और अंधविश्वास इन झोलाछापों को फलने-फूलने का मौका देता है।

स्वस्थ उत्तराखंड के लिए संकल्प और सुझाव

  1. राज्य सरकार को विशेष टास्क फोर्स बनाकर हर जिले में नियमित छापेमारी करनी चाहिए।
  2. सभी मेडिकल स्टोर को एक्सपायरी दवाएं बेचने से रोकने के लिए कड़ी निगरानी की जानी चाहिए।
  3. झोलाछाप वैद्यों की पहचान कर उनका नाम और ठिकाना सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
  4. आयुष मंत्रालय की वैद्य मान्यता प्रणाली को पारदर्शी और डिजिटली सुलभ बनाना होगा।
  5. सोशल मीडिया, अखबार और टीवी के माध्यम से जन-जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए।
  6. स्कूल और कॉलेज स्तर पर स्वास्थ्य शिक्षा में ऐसे विषयों को शामिल करना जरूरी है।

उत्तराखंड की मिट्टी से अगर वेदों की आवाज़ उठी है, तो यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि हम इन नकली वैद्य से अपने समाज को मुक्त करें। ये झोलाछाप डॉक्टर, एक्सपायरी दवाएं और नकली इलाज सिर्फ स्वास्थ्य नहीं, हमारे विश्वास, परंपरा और संस्कृति पर भी चोट हैं। उत्तराखंड को अगर स्वस्थ, स्वच्छ और सुरक्षित बनाना है, तो इन 420 वैद्यों को सलाखों के पीछे डालना ही होगा। यह काम सिर्फ सरकार का नहीं, बल्कि समाज के हर जागरूक नागरिक का भी है। अब समय आ गया है कि जनता, प्रशासन और मीडिया मिलकर इस बीमारी का स्थायी इलाज खोजें।


खोई हुई जवानी के झूठे वादे: झोलाछाप इलाज और भ्रामक इश्तिहारों की खतरनाक दुनिया

लेखक: अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स

“खोई हुई जवानी फिर से प्राप्त करें”, “मर्दाना कमजोरी का शर्तिया इलाज”, “हर रोग का इलाज सिर्फ एक हफ्ते में” – ये कुछ ऐसे जुमले हैं जो हमें रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों, शौचालय की दीवारों, यहाँ तक कि राष्ट्रीय अखबारों के कोनों में चिपके या छपे हुए मिल जाते हैं। ये इश्तिहार न केवल हमारी सार्वजनिक जगहों की मर्यादा को ठेस पहुँचाते हैं, बल्कि सीधे-सीधे हमारे समाज की सेहत, मानसिकता और कानून-व्यवस्था पर हमला करते हैं।

भ्रामक विज्ञापन और ठगी का जाल

इन इश्तिहारों के पीछे वे झोलाछाप डॉक्टर या फर्जी संस्थाएं होती हैं जिनके पास न तो कोई डिग्री होती है, न लाइसेंस और न ही किसी इलाज की वैज्ञानिक पद्धति। वे केवल लोगों की कमजोरी, डर और असुरक्षा का फायदा उठाकर उन्हें झूठे वादों और नकली दवाओं के जाल में फँसाते हैं।

युवाओं को मानसिक शोषण

“मर्दाना ताकत”, “शादीशुदा जीवन में खुशहाली” जैसी बातों के नाम पर ये इश्तिहार युवाओं को भ्रमित करते हैं। वे शरीर को लेकर असंतोष, शर्म और आत्मग्लानि की भावना भरते हैं। यह मानसिक शोषण है, जो न केवल व्यक्ति की आत्मछवि को प्रभावित करता है, बल्कि आत्मविश्वास को भी तोड़ता है।

स्वास्थ्य के लिए घातक

इन भ्रामक इलाजों से कई बार मरीजों को शारीरिक नुकसान होता है – जैसे कि किडनी, लिवर पर असर, हार्मोनल असंतुलन या साइड इफेक्ट्स। कुछ मामलों में यह जानलेवा भी साबित हो सकता है।

समाज में अश्लीलता और अवैज्ञानिक सोच को बढ़ावा

सार्वजनिक स्थानों पर लगे ये इश्तिहार न सिर्फ अश्लीलता फैलाते हैं, बल्कि वैज्ञानिक सोच के विरोध में एक माहौल बनाते हैं। जब लोग आधुनिक चिकित्सा प्रणाली पर विश्वास खोकर झोलाछाप इलाज की ओर मुड़ते हैं, तो यह देश की संपूर्ण स्वास्थ्य नीति और जागरूकता अभियानों को नुकसान पहुँचाता है।

कानून की अनदेखी

इन विज्ञापनों पर ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 और भारतीय दंड संहिता की धारा 420 जैसी कई धाराएं लागू हो सकती हैं। लेकिन इन पर शायद ही कभी कोई सख्त कार्रवाई होती है।


समाधान की राह:

  1. सरकारी निगरानी और कार्रवाई: स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि वह ऐसे विज्ञापनों पर निगरानी रखे और फर्जी इलाज करने वालों पर कठोर कार्रवाई करे।
  2. जन-जागरूकता अभियान: लोगों को यह बताना ज़रूरी है कि ‘खोई जवानी’ जैसी कोई बीमारी नहीं होती और हर शारीरिक समस्या का वैज्ञानिक इलाज ही एकमात्र विकल्प है।
  3. मीडिया की भूमिका: समाचार पत्रों और टीवी चैनलों को ऐसे विज्ञापन छापने से इनकार करना चाहिए, चाहे मुनाफा कितना ही बड़ा क्यों न हो।
  4. पब्लिक हेल्थ के लिए हेल्पलाइन और परामर्श केंद्र: सरकार और NGOs मिलकर युवाओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य और यौन स्वास्थ्य पर खुलकर बात करने वाले प्लेटफॉर्म तैयार करें।


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