रूठी पार्वती को मनाने आते है शिव।
कुमाऊं में सातू-आठू यानि गमारा पर्व मनाया जाता है। शिव-पार्वती (गौरा-महेश) की उपासना का ये पर्व ख़ासतौर से महिलाएं करती हैं। सोरघाटी पिथौरागढ़ में इसे अलग ही अंदाज में मनाने की परम्परा है।
देखिये पिछले वर्ष पिथौरागढ़ का सातू-आठु महोत्सव।
पहले दिन कलश यात्रा का शुभारंभ राजा होटल से केमू स्टेशन से होते हुए पुरानी बाज़ार से होते हुए सिमलगैर बाज़ार से रामलीला मैदान पहुची जिसमे स्कूली बच्चों ने प्रतिभाग किया
सातू आठू महोत्सव 2023बिरुड़ पंचमी की शुभकामनाएं।
कुमाऊं में सातू-आठू यानि गौरा पर्व मनाया जाता है। शिव-पार्वती की उपासना का ये पर्व ख़ासतौर से महिलाएं करती हैं। पिथौरागढ़ में इसे अलग ही अंदाज में मनाने की परम्परा है।
इस परंपरा की शुरुआत करी जाती है बीरूड़ (पांच प्रकार का अनाज) भीगा कर। भाद्र माह के पंचमी को बीरूड़ भिगाये जाते है, बिरुड़े का अर्थ उन पांच या सात तरह के भीगे हुए अंकुरित अनाज से है। बिरुड़ पंचमी के दिन एक साफ तांबे के बर्तन में पांच या सात तरह के अनाज को मंदिर के पास भिगोकर रखा जाता है. भिगोये जाने वाले अनाज मक्का, गेहूं, गहत , ग्रूस(गुरुस), चना, मटर और कलों हैं, तांबे या पीतल के बर्तन को साफ़ कर उसमें धारे अथवा नौले का शुद्ध पानी भरा जाता है. बर्तन के चारों ओर नौ या ग्यारह छोटी-छोटी आकृतियां बनाई जाती हैं ये आकृतियां गोबर से बनती हैं, गोबर से बनी इन आकृति में दूब डोबी जाती है।
सातू-आठू पर्व भाद्र महीने की पंचमी से शुरू होता है और पूरे हफ्ते भर चलता है…. महिलाएं इस पर्व में शिव-पार्वती के जीवन पर आधारित लोक गीतों पर नाचती-गाती और खेल लगाती हैं….पिथौरागढ़ में सातू-आठू और पश्चिम नेपाल में गौरा-महेश्वर के रूप में ये पर्व मनाया जाता है… इस पर्व में शिव-पार्वती की जीवन लीला का प्रदर्शन करते है…और कहते हैं कि जब पार्वती भगवान शिव से नाराज होकर मायके आतीं हैं तो शिवजी उन्हें वापस लेने धरती पर आते है… घर वापसी के इसी मौके को यहां गौरा देवी के विदाई के रूप में मनाया जाता है। स्थानीय लोग इसे प्रकृति से जुड़ा पर्व भी मानते हैं।