तिरंगे की शपथ: जब राष्ट्र के सम्मान में उठे ठुकराल और जनसैलाब”

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देश जब-जब चुनौतियों के दौर से गुज़रा है, तब-तब राष्ट्रभक्त जननेता और जागरूक संगठन आगे आकर भारतीय आत्मा को न केवल बल देते हैं, बल्कि जनता को भी राष्ट्रधर्म निभाने की प्रेरणा देते हैं। ऐसा ही एक प्रेरणादायक दृश्य उत्तराखंड के रुद्रपुर नगर में उस समय देखने को मिला जब राष्ट्रीय चेतना मंच के तत्वावधान में, पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल के नेतृत्व में, भारतीय सेना सम्मान तिरंगा यात्रा का आयोजन किया गया। यह यात्रा न केवल भारत माता के सम्मान में एक संकल्प थी, बल्कि देशविरोधी ताक़तों—विशेषकर पाकिस्तान—को जनआक्रोश के माध्यम से स्पष्ट संदेश भी थी।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

यात्रा की शुरुआत: गाँधी पार्क से

  • प्रमुख स्थल: भगत सिंह चौक, पंजाब एंड सिंध बैंक, पाँच मंदिर, गुडमंडी, विधवानी मार्केट, अंबेडकर चौक से महाराजा रणजीत सिंह चौक तक
  1. ऐतिहासिक संदर्भ और यात्रा का उद्देश्य
  2. राष्ट्रीय चेतना मंच की भूमिका

ऐतिहासिक संदर्भ और यात्रा का उद्देश्य भारत का इतिहास केवल उसके भूगोल, राजा-महाराजाओं और युद्धों में नहीं बसता। यह इतिहास जनमानस की उस चेतना में जीवित है, जो हर पीढ़ी में बार-बार जन्म लेती है—कभी भगत सिंह के रूप में, तो कभी परमवीर चक्र विजेता विक्रम बत्रा के रूप में। यही चेतना जब किसी नगर, गली या चौक पर उमड़ती है, तो वह मात्र एक भीड़ नहीं रहती, वह राष्ट्र का स्वर बन जाती है।

रुद्रपुर उत्तराखंड का एक अपेक्षाकृत शांत शहर, अचानक उस दिन राष्ट्रवाद की तीव्र लहर से गूंज उठा जब राष्ट्रीय चेतना मंच के तत्वावधान में पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल के नेतृत्व में “भारतीय सेना सम्मान तिरंगा यात्रा” का आयोजन किया गया। इस यात्रा की आवश्यकता केवल एक प्रतीकात्मक विरोध या औपचारिक सम्मान नहीं था, बल्कि यह उन हालिया घटनाओं की प्रतिक्रिया थी, जहाँ पाकिस्तान ने बार-बार भारत की अखंडता को चुनौती देने की चेष्टा की।

भारतीय सेना पर गर्व की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भारतीय सेना केवल एक रक्षा बल नहीं, बल्कि वह आधार है जिस पर भारत जैसे विविधताओं वाले देश की एकता टिकी हुई है। चाहे वह 1947 के विभाजन के दौरान दंगे रहे हों, 1962 की चीन से लड़ाई, या फिर कारगिल युद्ध—हर बार भारतीय सेना ने न केवल शत्रु से देश की रक्षा की, बल्कि जनता के विश्वास और आत्मसम्मान को भी सुरक्षित रखा।

आज जब कुछ तथाकथित “बौद्धिक वर्ग” भारतीय सेना की आलोचना कर उसे राजनीतिक बहस का हिस्सा बनाना चाहते हैं, तब ठुकराल जैसे जननेता द्वारा आयोजित यह यात्रा उस मौन बहुसंख्यक भारत की आवाज़ है जो कहता है—

“सेना पर सवाल नहीं, केवल सम्मान हो।”यात्रा का उद्देश्य
इस यात्रा के तीन स्पष्ट उद्देश्य थे:

  1. देशभक्ति की भावना को पुनः जनचेतना में स्थापित करना
    • जहाँ आज की युवा पीढ़ी सोशल मीडिया के ‘ट्रेंड्स’ में उलझ गई है, वहीं इस यात्रा के माध्यम से उन्हें यह संदेश दिया गया कि “देश का ट्रेंड तिरंगा है।”
  2. भारतीय सेना के प्रति पूर्ण समर्थन और सम्मान प्रकट करना
    • यह यात्रा केवल शब्दों तक सीमित नहीं थी, बल्कि हर नारा, हर झंडा और हर कदम सेना के जवानों के पराक्रम को नमन था।
  3. पाकिस्तान और आतंकवाद को जनता की ओर से स्पष्ट संदेश देना
    • “अगर एक सैनिक की शहादत पर खून नहीं खौले, तो वह खून नहीं पानी है”—इस विचार को लेकर जनता का सैलाब शांति से लेकिन गरिमामयी ढंग से एकता का प्रदर्शन कर रहा था।

राष्ट्रीय चेतना मंच की भूमिका
भारत की राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों में अनेक संगठन हैं, परंतु कुछ संगठन ऐसे होते हैं जो वक्त आने पर समाज के उस वर्ग को जगाते हैं जो या तो निष्क्रिय हो गया है या दिशाहीन।राष्ट्रीय चेतना मंच ऐसा ही एक संगठन है—न तो केवल राजनीतिक, न ही केवल सांस्कृतिक। यह मंच एक वैचारिक आंदोलन है जो राष्ट्र, संस्कृति और भारतीय अस्मिता को फिर से केंद्र में लाने के लिए कार्यरत है।मंच की उत्पत्ति और विचारधारा
राष्ट्रीय चेतना मंच की स्थापना कुछ पूर्व सैन्यकर्मियों, शिक्षाविदों और समाजसेवियों ने मिलकर की थी। इसका उद्देश्य था।


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