
रुद्रपुर बाढ़ का भयावह दृश्य — जगतपुरा की डूबी रातें?वार्ड नंबर 39 — जगतपुरा। 13 अगस्त की रात जैसे किसी दु:स्वप्न ने पूरे मोहल्ले को निगल लिया। आसमान से बरसते बादल और कल्याणी नदी का विकराल रूप… पानी ने कोई चेतावनी नहीं दी, बस सीधे आकर दरवाज़ों को तोड़ते हुए अंदर घुस गया।
अटरिया रोड से शिव नगर तक, 2000 से ज्यादा घरों में पानी। कहीं घुटनों तक, कहीं कमर तक, और कुछ घर तो पूरी तरह डूब गए।रात के अंधेरे में, मोबाइल की टॉर्च और मोमबत्ती की रोशनी में लोग अपने बच्चों को गोद में उठाकर, बिस्तर के ऊपर से उतरकर, ऊँचे स्थानों की ओर भाग रहे थे। बूढ़ी अम्मा को दो लोग सहारा देकर ले जा रहे थे, किसी के हाथ में टीन का डिब्बा जिसमें ज़रूरी कागज़ात रखे थे, किसी के कंधे पर गैस सिलेंडर, तो कोई अपने पालतू कुत्ते को पानी में डुबने से बचाने के लिए सीने से लगाए भाग रहा था।पानी इतना तेज़ था कि अलमारी पलट गई, टीवी बह गया, और बच्चों की किताबें कीचड़ में बिखर गईं” — यह आंसुओं से भरी आवाज़ थी, वार्ड की एक महिला की, जो अभी तक अपने घर वापस नहीं जा पाई है।

पिछली बाढ़ और इस बार की लापरवाही?यह पहली बार नहीं है। पिछली बाढ़ में भी यही नज़ारा था — तब जिला प्रशासन ने मुआवज़ा दिया, राहत शिविर बनाए, राशन पहुंचाया। लेकिन इस बार तस्वीर अलग है।
आज, 24 घंटे बाद भी, न तो राहत शिविर दिख रहे हैं, न ही किसी जनप्रतिनिधि का जिम्मेदाराना दौरा। हाँ, सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें ज़रूर हैं — नेता जी पानी में खड़े होकर फोटो खिंचवा रहे हैं, मुस्कान थोड़ी गंभीर, ताकि लगे कि हालात का जायज़ा ले रहे हैं।जनता का सवाल साफ है — “क्या हम सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए हैं, या हमारी मदद भी होगी?”
अतिक्रमण — त्रासदी की जड़?कल्याणी नदी, जो कभी बरसात में शहर का पानी चुपचाप बहाकर ले जाती थी, आज खुद विनाश का कारण बन चुकी है। क्यों? क्योंकि उसका रास्ता छीन लिया गया है।
पिछले 20 साल में, नदी के किनारे-किनारे पक्के मकान, गोदाम, बिल्डिंग और दुकानें खड़ी कर दी गईं। कई जगह नदी की चौड़ाई 40–50 फीट से घटकर 10–12 फीट रह गई है।और यह सिर्फ ‘ग़रीबों की झुग्गियां’ नहीं, बल्कि बड़े-बड़े कंक्रीट स्ट्रक्चर हैं, जिन्हें नगर निगम की मिलीभगत और राजनीतिक संरक्षण मिला। न तो किसी ने नक्शा चेक किया, न ही जल निकासी योजना देखी। परिणाम — बारिश का पानी बाहर निकलने की जगह घरों में घुस रहा है।
जिम्मेदार कौन?
- जिला प्रशासन — जिसने समय रहते अतिक्रमण नहीं हटाया, तटबंध नहीं बनाए, और न ही बाढ़ नियंत्रण की कोई स्थायी योजना बनाई।
- नगर निगम — जिसने अवैध निर्माण को रोकने की बजाय, आंख मूंदकर उन्हें पनपने दिया।
- जनप्रतिनिधि — जो हर साल बाढ़ के समय ‘जांच’ के नाम पर फोटो खिंचवाते हैं, और फिर पांच साल गायब हो जाते हैं।
- अतिक्रमणकारी — जिन्होंने नदी को नाली समझकर कब्ज़ा किया, और अब पूरे मोहल्ले को डुबो दिया।
पीड़ितों की व्यथा?बिटिया की किताबें, यूनिफॉर्म, सब बह गईं… कल से कुछ नहीं खाया” — वार्ड की एक मां, जिसकी आवाज़ में निराशा और आंसू दोनों थे।
एक बुजुर्ग बोले — “पेंशन से घर चल रहा था, अब तो बिस्तर तक नहीं बचा।”
बच्चे सड़कों पर बिना चप्पलों के भागते दिखे, हाथ में बिस्कुट का पैकेट, जो शायद किसी पड़ोसी ने दिया हो।यह सिर्फ संपत्ति का नुकसान नहीं, बल्कि सम्मान और सुरक्षा की भावना का नुकसान है।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)
राहत और मुआवजे की मांग?हम हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स की ओर से मांग करते हैं:
- हर प्रभावित परिवार को तुरंत ₹50,000 का मुआवज़ा
- अस्थायी आवास और राशन की तत्काल व्यवस्था
- मेडिकल कैंप और बच्चों के लिए अस्थायी स्कूल व्यवस्था
- साफ पानी और सैनिटेशन की गारंटी, ताकि बीमारी न फैले
भविष्य की सुरक्षा और समाधान
- कल्याणी नदी का मूल मार्ग बहाल किया जाए
- सभी अतिक्रमण हटाकर नदी किनारे ग्रीन ज़ोन बनाया जाए
- आधुनिक तटबंध और वर्षा-पूर्व गाद निकासी अभियान
- मास्टर प्लान में नदी किनारे निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध
- आपदा चेतावनी सिस्टम और ड्रेनेज सुधारकौशल्या कॉलोनी में जलभराव से जनजीवन अस्त-व्यस्त
लगातार हो रही बरसात से कौशल्या इन्कलेव, गंगापुर रोड का आधा हिस्सा जलमग्न हो गया है। मन्दिर से नीचे के हिस्से की आठ गलियों में एक फीट से अधिक पानी भरा है, जिससे आवागमन ठप हो गया है। समाजसेवी व सोसाइटी प्रतिनिधि ललित दुम्का ने बताया कि प्रशासन द्वारा स्कूलों की छुट्टी करने से बच्चे सुरक्षित हैं, अन्यथा दुर्घटनाओं की आशंका रहती। दो दिन पूर्व हुई बरसात में भी यही हाल था।
स्थानीय लोगों के अनुसार, दक्ष चौराहे से आने वाला नाला, जिसकी सफाई वर्षों से नहीं हुई, ओवरफ्लो होकर कॉलोनी में पानी भर देता है। इससे न केवल घरों में पानी घुस रहा है, बल्कि सांप-कीड़े भी पहुंच रहे हैं। कॉलोनी के पश्चिमी छोर का मुख्य नाला भी अव्यवस्था का शिकार है, जिसमें उगी झाड़ियां पानी के बहाव को रोक रही हैं।
सिडकुल क्षेत्र का गंदा पानी इस नाले में गिरने से बदबू और बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। मन्दिर से नीचे पानी की निकासी के लिए एकमात्र पुलिया क्षतिग्रस्त है, जिससे चार गलियों का पानी नाले तक नहीं पहुंच पा रहा। वर्षों से नगर निगम व प्रशासन को अवगत कराने के बावजूद समस्या जस की तस है। लोगों ने त्वरित समाधान की मांग की है।
यह मानव निर्मित आपदा है?बाढ़ प्रकृति का खेल हो सकती है, लेकिन उसका यह रूप मानव की गलतियों का परिणाम है।
कल्याणी नदी को बर्बाद करने वाले, उसकी ज़मीन पर कब्ज़ा करने वाले, और चुपचाप तमाशा देखने वाले — सभी समान रूप से दोषी हैं।अगर जनता अब भी चुप रही, तो अगले साल फिर यही तस्वीर होगी — बस चेहरों और घरों का नाम बदल जाएगा।

