✍️ संपादकीय शहीद राज्य आन्दोलनकारी और मुख्यमंत्री का खटीमा दौरा

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रूद्रपुर 30 अगस्त 2025।उत्तराखण्ड के इतिहास का हर पन्ना राज्य आन्दोलनकारियों के बलिदान और संघर्ष की गवाही देता है। यह वही आन्दोलनकारी थे जिनके त्याग और कुर्बानी की बदौलत आज उत्तराखण्ड एक अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में है। खटीमा की धरती विशेष रूप से इस संघर्ष का प्रतीक मानी जाती है, क्योंकि यहां आन्दोलन के दौरान हुए शहीदों ने अपनी जान देकर आने वाली पीढ़ियों को सम्मान और पहचान दिलाई।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का आगामी दो दिवसीय जनपद भ्रमण महज एक सरकारी कार्यक्रम भर नहीं है, बल्कि यह उस पीड़ा और स्मृति को भी पुनर्जीवित करने का अवसर है जिसे राज्य आन्दोलन की चिंगारी ने जन्म दिया था। 31 अगस्त को निजी आवास खटीमा में रात्रि विश्राम के बाद 01 सितम्बर को मुख्यमंत्री प्रातः उत्तराखण्ड आन्दोलन के दौरान शहीद हुए राज्य आन्दोलनकारियों की स्मृति में श्रद्धांजलि कार्यक्रम में शामिल होंगे। यह कार्यक्रम केवल फूलमाला चढ़ाने का औपचारिक आयोजन नहीं होना चाहिए, बल्कि राज्य के भविष्य के लिए आत्ममंथन का क्षण होना चाहिए।

आज 25 वर्ष बाद भी शहीद आन्दोलनकारियों के परिजनों और जीवित आन्दोलनकारियों की स्थिति सवाल खड़े करती है। पेंशन, रोजगार और सम्मान से जुड़ी घोषणाएं अक्सर अधूरी रह जाती हैं। सरकारों ने समय-समय पर लाभ देने की घोषणाएं कीं, लेकिन जमीनी हकीकत में कई परिवार अब भी उपेक्षा का शिकार हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री का खटीमा आगमन उन परिवारों के लिए उम्मीद जगाता है कि शायद सरकार उनकी आवाज सुने और वास्तविक समस्याओं के समाधान की दिशा में कदम बढ़ाए।

इसी दिन मुख्यमंत्री आईटीआई कानपुर के सहयोग से खटीमा के हेमवती नंदन बहुगुणा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में स्थापित “साथी केन्द्र” का शुभारम्भ भी करेंगे। यह केन्द्र युवाओं को तकनीकी शिक्षा और रोजगार से जोड़ने का प्रयास होगा। लेकिन राज्य के असली नायक वे शहीद हैं, जिन्होंने बिना किसी लालच के, केवल पहाड़ की अस्मिता के लिए बलिदान दिया।

इसलिए आवश्यक है कि श्रद्धांजलि कार्यक्रम केवल परंपरा न बनकर सरकार की नीतियों में भी झलके। मुख्यमंत्री यदि खटीमा से यह संदेश दें कि राज्य आन्दोलनकारियों का सम्मान सिर्फ स्मारकों तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि उनकी पीढ़ियों को न्याय और सुविधाएं भी मिलेंगी, तो यह कार्यक्रम सार्थक कहलाएगा।

उत्तराखण्ड की आत्मा उसके शहीद आन्दोलनकारी हैं—और जब तक उनका सम्मान वास्तविक रूप में सुनिश्चित नहीं होता, तब तक विकास के सारे दावे अधूरे रहेंगे।



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