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अब उसी पाकिस्तान ने सबसे ताजा जख्म पहलगाम की सूरत में दिया है. वही पहलगाम जो कश्मीर में है और वही कश्मीर जो हमेशा पाकिस्तान की आंखों में खटकता रहा है. चलिए जानते हैं कश्मीर के जख्मों की पूरी कहानी.

जम्मू कश्मीर में 78 साल पहले एक कबायली हमला हुआ था, जो एक साल दो महीने, एक हफ्ता और तीन दिन बाद खत्म हुआ. इस हमले ने कश्मीर की सूरत बदल कर रख दी थी. इसी हमले ने जमीन की जन्नत को जहन्नम बनने की बुनियाद रखी. और उसी हमले ने पहली बार मुजाहिदीन को पैदा किया, जिसने कश्मीर की एक नई कहानी लिख डाली.

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

करीब 700 साल पहले जिस गुलिस्तान को शम्सुद्दीन शाह मीर ने सींचा था, उनके बाद तमाम नवाबों और राजाओं ने जिसको सजाया-संवारा, जिसकी आस्तानों और फिजाओं में चिनार और गुलदार की खुशबू तैरती थी, जिसे आगे चलकर जमीन के जन्नत का खिताब मिला- वही कश्मीर. उसी कश्मीर में आज से ठीक 70 साल पहले एक राजा की नादानी और एक हुक्मरान की मनमानी ने फिजाओं में बारूद का ऐसा ज़हर घोला, जिसका गंध आज भी कश्मीर में महसूस किया जा सकता है.

‘मेरा मुल्क… तेरा मुल्क… मेरा मज़हब… तेरा मज़हब… मेरी ज़मीन तेरी ज़मीन… मेरे लोग तेरे लोग.’ इस गैर इंसानी ज़िद ने पहले तो एक हंसते-खिलखिलाते मुल्क के दो टुकड़े कर दिए. लाखों लोगों को मज़हब के नाम पर मार डाला गया और फिर उस जन्नत को भी जहन्नम बना दिया गया, जिसके राजा ने बड़ी उम्मीदों के साथ अंग्रेजों से अपनी रियासत को हिंदू-मुस्लिम की सियासत से दूर रखने की गुजारिश की थी. मगर उनकी रियासत की सरहदों के नज़दीक बैठे मुसलमानों के लिए पाकिस्तान बनाने वाले कायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्नाह कश्मीर की इस आज़ादी के लिए तैयार नहीं थे.

उनकी दलील थी कि जिस तरह गुजरात के जूनागढ़ में हिंदू आबादी के आधार पर उसे भारत में मिलाया गया, उसी तरह कश्मीर में मुस्लिम आबादी के हिसाब से उस पर पाकिस्तान का हक है. अपनी इसी ज़िद को मनवाने के लिए जिन्नाह ने कश्मीर के महाराजा हरि सिंह पर दबाव बनाना शुरू कर दिया और कश्मीर को जाने वाली तमाम ज़रूरी चीज़ों की सप्लाई बंद कर दी. पाकिस्तान अब कश्मीर को अपने साथ मिलाने के लिए ताक़त का इस्तेमाल करने लगा. मगर महाराजा हरि सिंह अब भी अपने फैसले पर कायम थे- आज़ाद कश्मीर

22 अक्टूबर 1947
आज़ादी मिलने के महज 9 हफ्ते बाद, जिन्नाह के इशारे पर पाकिस्तान की तरफ से हज़ारों कबायली कश्मीर में घुस आए. उन्होंने लूटपाट, हत्या, बलात्कार और तबाही मचाई. उनके हाथों में बंदूकें, मशीन गनें और मोर्टार थे. उन्हें मुजाहिदीन का खिताब दिया गया था. इन आतंकियों ने मुज़फ्फराबाद और डोमेल जैसे शहरों पर कब्ज़ा कर लिया और श्रीनगर के करीब उरी तक पहुंच गए.

मुस्लिम सैनिकों को भड़काकर विद्रोह फैलाने की कोशिश भी हुई, जिन मुसलमानों ने समर्थन किया, वे महफूज़ रहे. जो खिलाफ थे, उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया. घाटी खून से लाल हो गई थी. महाराजा के पास अब तीन विकल्प थे:

– पाकिस्तान को कश्मीर सौंप देना
– खुद लड़ाई करना (जो संभव नहीं था)
– भारत से मदद लेना

भारत के साथ समस्या यह थी कि कश्मीर अब तक भारत का हिस्सा नहीं था, इसलिए भारत सैन्य कार्यवाही नहीं कर सकता था. मगर महाराजा के भारत के साथ विलय के फैसले के तुरंत बाद भारत ने सेना भेजी. रातों-रात विमान से सैनिक और हथियार श्रीनगर पहुंचाए गए. कबायली श्रीनगर से सिर्फ एक मील दूर थे. भारतीय सेना ने सबसे पहले श्रीनगर की सुरक्षा की और फिर युद्ध का रूप बदल गया.

नक्शों और सप्लाई की कमी के बावजूद भारतीय सेना ने बहादुरी से मुकाबला किया. बारामुला, उरी और आसपास के इलाके वापस लिए गए. भगदड़ मच चुकी थी. एक एक इंच जमीन के लिए युद्ध हुआ. भारत ने दो-तिहाई कश्मीर पर फिर से कब्जा कर लिया.

इस युद्ध के बाद मामला संयुक्त राष्ट्र पहुंचा. 5 जनवरी 1949 को सीज़फायर का एलान हुआ और लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) का निर्माण हुआ. पाकिस्तान के कब्जे में गया इलाका आज POK यानी Pakistan Occupied Kashmir कहलाता है जिसमें गिलगित, मीरपुर, मुज़फ्फराबाद और बाल्टिस्तान शामिल हैं.

कश्मीर की जंग यहीं नहीं रुकी. इसके बाद पाकिस्तान ने भारत से और तीन युद्ध लड़े:

1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध
भारत ने पाकिस्तान में घुसकर 2,000 वर्ग किमी इलाके पर कब्जा किया. 3,264 भारतीय जवान शहीद हुए, पाकिस्तान के 3,500 सैनिक मारे गए इस जंग में भारत $200-$300 मिलियन जबकि पाकिस्तान $500 मिलियन खर्च हुए.

1971 भारत पाकिस्तान युद्ध
पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंटा, बांग्लादेश बना. भारत ने 15,000 वर्ग किमी पर कब्जा किया, लेकिन शिमला समझौते में लौटा दिया. पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने सरेंडर किया. भारत के 3,843 जवान शहीद हुए इस पूरी लड़ाई पर $500 मिलियन खर्च हुए.

1999 करगिल युद्ध
ये अब तक का सबसे खर्चीला युद्ध था. पाकिस्तानी सेना LOC पार कर गई थी. भारत ने लड़कर पोस्ट वापस लिए. भारत के 522 जवान शहीद हुए, पाकिस्तान के 700 सैनिक मारे गए. इस युद्ध में $1.5 बिलयन खर्च हुए.

2001 संसद पर हमला
जब पाकिस्तानी आतंकियों ने भारत की संसद को निशाना बनाया तो सीधी जंग नहीं हुई लेकिन LOC पर भारी सैन्य तैनाती की वजह से $1 बिलयन का खर्च आया.

पहलगाम आतंकी हमले के बाद हालात
इसी 22 अप्रैल को जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद एक बार फिर युद्ध जैसे हालात बन गए हैं. सेना को खुली छूट दी गई है. जंग की सुगबुगाहट तेज है. अगर भारत-पाकिस्तान के बीच आज युद्ध होता है तो यह अब तक की सबसे महंगी जंग साबित हो सकती है.


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