
इन दोनों ज्योतिर्लिंगों के बीच पांच ऐसे शिव मंदिर हैं जो ब्रह्मांड के पांच तत्वों यानी जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करते हैं।


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
सात मंदिर एक सूत्र में कैसे बंधे हैं?
उत्तराखंड के केदारनाथ, अरुणाचलेश्वर, थिलाई नटराज, जम्बूकेश्वर, तमिलनाडु के एकम्बेश्वरनाथ, आंध्र प्रदेश के श्रीकालहस्ती शिव मंदिर और अंत में रामेश्वरम मंदिर को एक सीधी रेखा में स्थापित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि श्रीकालहस्ती शिव मंदिर जल का प्रतिनिधित्व करता है, एकम्बेश्वरनाथ मंदिर अग्नि का, अरुणाचलेश्वर मंदिर वायु का, जम्बूकेश्वर मंदिर पृथ्वी का और थिलाई नटराज मंदिर आकाश का प्रतिनिधित्व करता है। ये सभी मंदिर 79 डिग्री देशांतर की भौगोलिक सीधी रेखा में बनाए गए हैं। इस रेखा को ‘शिव शक्ति अक्ष रेखा’ भी कहा जाता है।
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ये मंदिर करीब 4,000 साल पहले बनाए गए थे, जब स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई उपग्रह तकनीक उपलब्ध नहीं थी। लेकिन ये सभी मंदिर योगिक गणना के आधार पर बनाए गए हैं। इस रेखा के एक छोर पर उत्तर में केदारनाथ और दक्षिण में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग है। यह रेखा उत्तर को दक्षिण से जोड़ती है। ऐसा माना जाता है कि जब भी इन मंदिरों की स्थापना की गई होगी, तो अक्षांश और देशांतर का पूरा ध्यान रखा गया होगा।
भारत का ग्रीनविच है उज्जैन
इन सभी मंदिरों के बीच में भारत का खास महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग जो उज्जैन में स्थापित है, मौजूद है। पश्चिमी देशों से पहले ही उज्जैन में काल गणना की अवधारणा थी। उज्जैन को भारत की मध्य मध्य रेखा माना जाता था। समय के लिहाज से उज्जैन को धरती और आकाश के बीच में माना जाता है। शास्त्रों में काल गणना के हिसाब से उज्जैन का उपयोग किया गया है। भौगोलिक गणना के आधार पर प्राचीन विद्वानों ने उज्जैन को शून्य देशांतर पर माना है। ऐसा भी माना जाता है कि कर्क रेखा भी यहीं से होकर गुजरती है। यूनानी गणितज्ञ क्लॉडियस टॉलेमी ने भी माना था कि भौगोलिक दृष्टि से उज्जैन बहुत खास है। यूनानी सभ्यता में उज्जैन को ओजेन के नाम से जाना जाता था। उस समय उज्जैन दुनिया के प्रसिद्ध शहरों में से एक था।
आइए जानते हैं कि ये सात मंदिर एक ही रेखा में कैसे बने हैं
1. केदारनाथ धाम
यह मंदिर 79.0669 डिग्री देशांतर पर स्थित है। केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। इसे अर्ध ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। यह नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर को मिलाकर पूरा होता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल में पांडवों ने करवाया था और फिर आदि शंकराचार्य ने इसकी पुनः स्थापना करवाई थी।
2. श्रीकालहस्ती मंदिर
यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर में है। तिरुपति से 36 किलोमीटर दूर स्थित श्रीकालहस्ती मंदिर को पंच तत्वों में जल का प्रतिनिधि माना जाता है। यह मंदिर 79.6983 डिग्री पूर्वी देशांतर पर स्थित है।
3. एकम्बरेश्वर मंदिर
यह मंदिर 79.42’00’ पूर्वी देशांतर पर स्थित है। यहाँ भगवान शिव की पूजा पृथ्वी तत्व के रूप में की जाती है। इस विशाल शिव मंदिर का निर्माण पल्लव राजाओं ने करवाया था और बाद में चोल और विजयनगर राजाओं ने इसमें सुधार किया। इस मंदिर में जल की जगह सुगंधित चमेली का तेल चढ़ाया जाता है।
4. अरुणाचलेश्वर मंदिर
यह मंदिर 79.0677 डिग्री पूर्वी देशांतर पर स्थित है। इसका निर्माण तमिल साम्राज्य के चोल वंश के राजाओं ने करवाया था।
5. जम्बुकेश्वर मंदिर
यह मंदिर करीब 1800 साल पुराना है। इसके गर्भगृह में हमेशा पानी की एक धारा बहती रहती है।
6. थिलाई नटराज मंदिर
यह मंदिर 79.6935 डिग्री पूर्वी देशांतर पर स्थित है। इसका निर्माण आकाश तत्व के लिए किया गया है। यह मंदिर महान नर्तक नटराज के रूप में भगवान शिव को समर्पित है। नृत्य की 108 मुद्राओं का सबसे पुराना चित्रण चिदंबरम में मिलता है।
7. रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग
ऐसा माना जाता है कि श्री राम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
