इस दिन का धार्मिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व है। इस समय उत्तर भारत में शीतलाष्टमी व्रत, बिहार में शीतलाष्टमी परंपरा, राजस्थान की शीतलाष्टमी पूजा के रूप में यह पर्व मनाया जाता हैं। आइए जानें कि शीतलाष्टमी के दिन की पौराणिक मान्यता, महत्व, बसौरा क्यों मनाया जाता है और विधि….


पौराणिक मान्यता: स्कंद पुराण में शीतला माता की महिमा का उल्लेख मिलता है। माता शीतला को हाथ में झाडू, जल का पात्र और नीम की पत्तियों के साथ चित्रित किया जाता है। यह मान्यता है कि जो भक्त शीतलाष्टमी को श्रद्धा से मनाते हैं, उनके घर में महामारी या गंभीर रोग नहीं आते।
शीतलाष्टमी का महत्व: शीतलाष्टमी का मुख्य उद्देश्य शीतला माता की पूजा करना होता है, जो रोगों से रक्षा करने वाली देवी मानी जाती हैं, विशेष रूप से चेचक या स्मॉलपॉक्स और अन्य संक्रामक रोगों से। मान्यतानुसार माता शीतला की पूजा करने से घर में स्वास्थ्य और शांति बनी रहती है।
बसौरा (बासी भोजन) का महत्व: धार्मिक पारंपरिक आस्थानुसार इस दिन ताजा खाना नहीं बनाया जाता। पूजा में सिर्फ एक दिन पहले का बना हुआ बासी भोजन ही ग्रहण किया जाता है। यह परंपरा शीतला माता को ठंडा भोजन पसंद होने की मान्यता पर आधारित है। पुराने समय में जब मेडिकल सुविधाएं नहीं थीं, तब यह त्योहार जन-स्वास्थ्य चेतना का प्रतीक भी था, यह व्रत स्वास्थ्य का संकेत होता था, जो कि यह दर्शाता है कि रोगों से बचाव हेतु शुद्धता और ठंडक का पालन।
व्रत और पूजा विधि:
– इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और माता शीतला की पूजा करते हैं।
– पूजा में ठंडा भोजन/ बासी खाना चढ़ाया जाता है, जो खास बात है। इसलिए इस दिन एक दिन पहले भोजन बनाकर रखा जाता है।

